बुलाएँगे फिर एक बार चिनार के दरख़्त



दुआ खिल गयी है :
जन्नत को मन्नत चाहिए थी,
वो उसे मिल गयी है...


बुलाएँगे फिर एक बार चिनार के दरख़्त,
बर्फीली चोटियों की गवाही में
बेहताशा गुनगुनायेंगे...
तुम्हे पास बुलाएँगे :
शालीमार बाग़ के ट्यूलिप...


प्रेम का जादुई असर देखना :
डाउनटाउन श्रीनगर में,
लौटेंगी धारीदार गेंदें, रंगीन गुब्बारे
और चुपचाप गुलाबी बना देंगे
नफ़रत और अविश्वास के पत्थरों को
संगीत और सिनेमा के एहसास...


खीर भवानी के आंगन में
'शैव' और 'सूफ़ी' मिलकर
गुनगुनायेंगे हमारे समय का
सबसे दिलकश तराना...


झेलम के पुरअमन चेहरे पर
झिलमिलाएगी उम्मीद की सहर...
शिकारे लहरायेंगे... डल के पानी से 
बतियाएंगे : “जो कुछ था, दुः स्वप्न था, बीत चुका है..“


अब हर शाम गुलज़ार होगी
रोजबुल की दरगाह..
और विवेक चूड़ामणि गुंजित होगा
शंकराचार्य की पहाड़ी से...
रुआंसे सितार को, रुठे हुए गिटार को
फिर छेड़ेंगे ' प्रगाश' के तार...


(मोदी जी पाक प्रधानमंत्री से)
मुस्कुराओगे एक दिन तुम भी
मेरी दिलेरी पर 
इस बनावटी ग़ुस्से के बाद !
मुस्कुराना हम दोनों की मज़बूरी है :
दो पड़ोसी बहुत देर तक
दुश्मन नहीं रह सकते !!