गढ़वाल में तंत्र मंत्र

गढवाल के तृण-तृण में साक्षात देवताओं का वास है। देवतुल्य संस्कृति का वाहक यहाँ का एक-एक मानव कई चमत्कारों तथा प्राकृतिक आबोहवा के बीच निर्विघ्न अपना जीवन जीता है। धार्मिक पृष्ठभूमि होने से यहाँ तंत्र-मंत्रों को बढ़ावा मिलना लाजिमी है। यहां के साधनहीन संघर्षमय व कठोर लोकजीवन ने किसी अनिष्ठ या रोग को दैवीय प्रकोप समझा तथा माना कि इसे किसी आवेश, रोष या विनती से भगाया जा सकता है। वेद भी प्रत्यक्ष गवाह है कि तन्त्र-मन्त्र कितने प्रभावी ढंग से कार्य करते हैं। अथर्ववेद जादू-टोना, तंत्र-मंत्र का प्रतिनिधित्व करता है। आर्य, अनार्य दोनों पर इसका प्रभाव पड़ा है। मध्यकाल में सिद्धों व नाथों का तन्त्र-मन्त्र पर इतना प्रभाव पड़ा कि तत्कालीन सारी परम्परायें उन्हीं के रंग में रंग गयी। बोक्सा जाति ऐसे कामों में सिद्धहस्त थी। कई लोग इसे बोक्साई विद्या कहते हैं। किसी दुर्घटना महामारी या आत्महत्या में मृत व्यक्ति की आत्मा को उसके सगे सम्बन्धियों पर चिपटा माना जाता है। जिसे मंत्रों से उखेल कर उतारा जाता है। किसी से दुर्भावना व राग रखने वाला व्यक्ति अपने कुलदेवता (नरसिंह, सिद्धनाम, दक्षिणकाली, नाग, सिध्वा आदि) के पास आवेश में उसके लिये अनिष्ट की कामना (घात लगाना) करता है, वह प्रमाणित व्यक्ति पूछे या 'वाक्या' के पास जाकर अनिष्ट के बारे में पूछता है, पूछेर उसे अमुक व्यक्ति के घात लगाने की बात करता है, तांत्रिकों से घात का उखेल करवा सकते हैं। छल, मसाण, पिशाच आदि उतारने के लिये मंत्रों से रख्वाली की जाती है। सभ्य समाज हालांकि इन बातों का पारम्परिक अंधविश्वास कहे, मगर महिलाओं पर छल, खबेश, मसाण, छाया, वणद्यौ, वच्चों पर हाक, पीलिया, दांत दर्द, गाय के दूध न देने, विष उतारने के लिये आज भी कतिपय इलाकों में लोग तंत्र-मंत्रों का सहारा लेते हैं। गढ़वाल में मंत्रों के गुरू गोरखनाथ का प्रमुख स्थान है। 16 वीं सदी के प्रारभिक काल में गढ़ नरेश अजय पाल ने नाथ योगी के संसर्ग में रहने से ही पूरे गढ़वाल पर अपना आधिपत्य किया। यहां के मंत्र साहित्य में राजा अजयपाल को भी नाथ सम्प्रदाय का माना जाता है। किसी व्यक्ति के रोग देर करने हेतु शिव-पार्वती, हनुमंत नाथ, गोरखनाथ, धन्वन्तरी, कुलदेवता के साथ-साथ राजा अजयपाल का ही आह्वान करते हैं। गढ़वाल में सभी प्रकार के रोगों को झाड़कर दूर करने की प्रथा प्रचलित है कांैलवायु (पीलिया) घुणदा (दांत कीड़ी) जरतोड़ा (ज्वर तोड़ना) लकवा आदि सभी रोगों को दूब, गरूढ़ पंखा, कांटेदार घास (कण्डाली, झिरणा) से झाड़कर दूर किया जाता है। इसके साथ किसी व्यक्ति के अरिष्ट, हाक दूर करने के लिये नाखून, बाल, कपड़ा आदि का प्रयोग किया जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि गढ़वाल की संस्कृति में तंत्र-मंत्रों का विशिष्ट महत्व है। मगर आधुनिकता की इस दौड़ में इसे अंधविश्वास से बढ़कर कुछ नहीं माना जा रहा है। समय के साथ-साथ कई वृद्ध तांत्रिक परलोक सिधार गये हैं। और उनकी इस विद्या को स्वीकार करने के इतर उनके बच्चे कम्प्यूटर से रूबरू होने की इच्छा जताते हैं। इसलिये तंत्र-मंत्रों की प्रभावी शक्ति का वाहक निकट भविष्य में ही कोई होगा,इसमें कोई संदेह नहीं है।