हलन्त एक जन आंदोलन

                                                          


अक्षर ब्रह्म है ब्रह्मास्त्र भी....अक्षर की उस अविनाशी ऊर्जा को, 'लाठी' की तरह प्रयोग करना, 'भाषा' को सशस्त्र बना देना है। शब्द-सेना की हुंकार को, भ्रष्ट-प्रतिष्ठानों के लिए 'भय' बना देना ही पत्रकारिता है...भगवान 'श्री गणेश' का स्मरण करते हुये, पत्र-पत्रिकाओं की घनी-आबादी के मध्य से, गूगल के संसार में एक नयी पत्रिका का तुतलाता प्रणाम स्वीकार हो। लेखन, पाचवां-पुरूषार्थ है... कलम-ध्वजों के लिए प्राकृत-आदेश है... इच्छाओं, लक्ष्यों, कल्पनाओं की अक्षौहिणी-सेना लेकर, कलम को अस्त्र बनाते एक नये जनयु( का नाम है... हलन्त।
हलन्त एक भाषा चिह्न है। भावनाओं को व्यंजन करते, अक्षरों की सत्ता से, अलखनाद की ध्वनि का अनुपस्थित होना, उसकी अपूर्णता है। स्वरहीन हुये अपूर्ण अक्षरों के अन्त में, लगाया जाने वाला 'हल' का चिह्न 'हलन्त' कहा जाता है। ... मनुष्य भी अपूर्ण है, पूर्णता की ओर बढ़ते हुये कदमों का नेता मनुष्य ही है... पशुता उसका अतीत था, देवत्व उसका भविष्य है... प्रयत्नों, संघर्षों और सृजन का 'हल' उठाये, मनुष्य-जाति का वर्तमान, उसकी ऊर्ध्वगामी यात्रा और जिजीविषा का प्रतीक है,... 'हलन्त' उन्हीं आरम्भिक दिनों का स्मृति-चिह्न है, उस आदिम-सृजन का लिप्यात्मक रूप है... मनुष्य के इसी जीवट का मासिक स्मरण करते हुये, हमारी पत्रिका का नामकरण हुआ है... हलन्त-व्यंजनों को पूर्ण करते उन आदि स्वरों, उस आप्तनाद के प्रबन्ध सम्पादक भगवान श्री गणेश का स्मरण करते हुए वेब मीडिया के चकाचौंध संसार में हमारा प्रणाम भी स्वीकार करें।
सम्भाषण, समाचार, सम्वेदना और एक अच्छे कल की सम्भावना के इस नवजात-अभियान का मेरूदण्ड, अन्ततः पाठक ही है। वरिष्ठ नागरिक हमें आशीर्वचन दें... युवा-मांसपेशियों की मछलियां, विसंगतियों के इस गंदले जल में रहने की उस मजबूरी, उस छटपटाहट को, हमारे साथ महसूस करें... और प्रभुरूप, बालपीढ़ी के इन्द्रधनुषी-स्वप्न हमारे मासिक-लेखन को सतरंगी करते रहें, आशावान बने रहने में हमें अपनी किलकारी देते रहें....। अपने प्रबु( पाठकों से, संवाद की आत्मीय तकनीक द्वारा, सार्वजनिकता के नये कीर्तिमान स्थापित करना इस पत्रिका का ध्येय है...क्लिक करते रहें...
यह मासिक सुविधा की नीम छांव में जुगाली करते हुये, राजपथ पर दौड़ते नेताओं की टापें नहीं गिनेगा, बल्कि राजनीति को, समाज की सबसे सशक्त ढाल बनाकर लोकधर्म की आधुनिक )चायें गढ़ने का प्रयत्न करेगा... व्यवसाय बनती जा रही राजनीति को, लोकहित की अर्गला से बांधकर, शुचिता के चतुष्पथ पर खड़ा करने का प्रयत्न करेगा... अपराधों, तिकड़मों, घटनाओं को धन्धा बनाकर, विज्ञापन के पृष्ठों से मुटियाने वाली चरण-पत्रिका, 'हलन्त' कभी नहीं बनेगी...ये हमारा 'वचन' है।
अभिव्यक्ति के असरदार साधन, सिनेमा को भी, राजनीति की तरह, व्यवसाय बना दिया गया है ... मन की पीड़ा और सामाजिक सरोकारों के मूर्खतापूर्ण समाधान परोसने वाला फिल्मी उद्योग, पाकिस्तान से भी बड़ा दुश्मन है। लोक-संस्कृतियों से छेड़-छाड़ करने वाले बालीवुड और उसकी मांसलता को पत्र-पत्रिकाओं में, साप्ताहिक-हाट की तरह सजाया जा रहा है। हलन्त, इस चर्म-उद्योग को नाखुनों से खुरचकर, क्रीम-पुते चेहरों के, इस गरीब-संसार को सरेआम करेगी। उत्तराखण्ड के साहित्य और विभिन्न साहित्यिक-सांस्कृतिक मंच की पीठों पर धूनी जमाये, महन्तों के नीचे की जमीन हिलायी जाती रहेगी, टुच्चे-चुटकुलों को श्लील-अंगवस्त्र पहनाकर, साहित्य की हमारी वाचन-परंपरा को गंदलाने वाले लोगों की 'खबर' ली जाती रहेगी। हलन्त, उत्तराखण्ड के सांस्कृतिक कर्म और रंगमंच की वीथिकाओं के आत्मविलास को, लोकअस्त्र बनाने की पक्षधर है...
कई लोगों को, एक नवजात पत्रिका की यह वाणी धृष्ट और कर्कश लग सकती है, लगती रहे... हमें अपने पाठकों की पैनी और समदृष्टि पर पूरा भरोसा है... 'हलन्त' अपने विशिष्ट पाठकों की उंगली पकड़कर चलना सीखेगी, उनके साथ लेखन का ककहरा तुतलाकर, वह एक दिन प्राज्ञ भी बनेगी... कहते हैं, भगवान बु( पैदा होते ही सात कदम चले थे, क्योंकि बु( के साथ उनके सात जन्मों का संचित पुण्य था और वे मुक्त हो सके...'हलन्त' के पास, सात जन्म सरीखी पीड़ा का अनुभव है। अन्याय, अज्ञान, भेदभाव, शोषण जैसे मारक-अस्त्र यदि आपके मूल्यों पर भी कटाक्ष मार रहे हैं, तो 'हलन्त'  से जुड़िये ... यह पत्रिका, अन्धेरे में पीड़ा भोगती जड़ों की तरह, उन लोगों का प्रयास है, जो जीवन की अमावस्याओं से भिड़कर, आने वाली पौध के लिए, एक चमकदार पुष्प ढूंढना  चाहते हैं।
'हलन्त' जीवन की मुस्कान के लिए, एक ऐसा रोशनदान बनना चाहती है, जहाँ सत्यनिष्ठ आचरण को लगातार आक्सीजन मिलती रहे... परिवारों का मंगल-कलश, मुक्ति की संयमपूर्ण )षि-परंपरा का स्मरण कराता रहे... हमारी आने वाली पीढ़ी विज्ञान के लिए सागर में गोता लगाकर, 'ज्ञान' के उस जल को, किसी कांवड़िये की तरह, अभावग्रस्त, किसी अन्तिम व्यक्ति की अंजुलि को भर दे... यही इस मासिक का स्वप्न है... यही भारत के पुरातन समाज का सनातन अलख है... यही हमारे पुरखों का आदेश है ... हलन्त, उन्हीं आशीर्वचनों का समयब( मुद्रण है...प्रणाम...। हम वेब के संसार में एक नई किस्म की पत्रकारिता का शुभारंभ कर रहे हैं...आप भी अपनी कलम से सहयोग करें...गूगल के संसारियों तक अपनी आवाज पहुंचायें...हम आपके साथ हैं।....