जननायक कृष्ण


यशोदा की गोद से लेकर मूसल-युद्ध की पीड़ा की साक्षी उस दिव्य आत्मा के एक सौ बीस साल इस पृथ्वी ग्रह के सर्वाधिक शुभवर्ष थे, धन्य थे वे लोग, जिन्होंने कृष्ण को देखा, वे भी धन्य हैं जिन्होंने उन्हें समझा और वे कि जिन्होंने अपना अस्तित्व कृष्ण में घुल जाने दिया है। कृष्ण के चारों ओर ज्ञान भक्ति रास और  श्रद्धा के वार्षिक  उत्सव रचाने वाला भारतीय समाज यदि कृष्ण को समझता है तो उसके राजनैतिक जीवन में श्री क्यों नहीं है?
कृष्ण वैसे भगवान नहीं थे, जैसे इलि-गिली तरीके से महाभारत सीरियल वाले बीआर चोपड़ा ने उन्हें दिखाया / द्रोपदी की पुकार पर आकाश से थान के थान कपड़े फेंकने वाली कोई शक्ति यदि होती तो देश में कपड़ों की इतनी फैक्ट्रियां नहीं लगती...परन्तु मुम्बई में बैठे ये बुद्धिमान लोग, अपने बिक्री बट्टे के चक्कर में हमारे देवी-देवताओं से जैसे शीर्षासन करवाते हैं वह हास्यास्पद तो है ही, आम जनता में भक्ति और दर्शन का गंवारू-संस्करण प्रस्तुत कर अन्ध-विश्वासों को बढ़ाता है। धारणा बना दी गई है कि कृष्ण मां के गर्भ से ही भगवान थे अतः उन्होंने जो भी पराक्रम किये, वह उन्हें देवता होने के नाते करने ही थे। और इस तरह सारी उम्र एक-एक क्षण चिन्तन करने वाले, सांस की तरह नित्य सक्रिय उस अद्वितीय  मानव के असाधारण पुरूषार्थ को मनुष्य की दृष्टि से देखने का प्रयत्न नहीं किया गया।
कृष्ण ने  सोलहवें साल में कंस का बध कर डाला / जो राजा एक शक की बुनियाद पर अपनी सगी बहिन के निपराध बच्चों को मार सकता है उसके शासन की क्रूरता की कल्पना की जा सकती है। कृष्ण अपने मामा कंस का बध करने के लिये बाध्य थे/ कंस का बध करते ही कृष्ण चारों ओर संकट से घिरे गये / कंस क्योंकि मगध के महाप्रतापी राजा जरासंध का दामाद था, जरासंध अपने समय का सर्वाधिक चतुर कूटनीतिज्ञ था। उसके चक्रवर्ती सम्राट बनने की चाल में, कंस मध्य भारत का पहला मोहरा था / कंस को अपना दामाद बनाने के बाद जरासंध ने पश्चिमी राज्य चेदि के दमघोष के पराक्रमी पुत्र शिशुपाल को अपना शिष्य बना लिया / विदर्भ के राजा भीष्मक का पुुत्र रूक्मी भी जरासंध का प्रशंसक था। जरासंध ने कंस की मृत्यु का बदला लेने के लिये कृष्ण पर धावा बोल दिया और गोमान्तक की पहाड़ियों तक उनका पीछा किया, इसी आक्रमण से कृष्एा का कृष्णत्व जनता ने देखा / कृष्ण और बलराम ने गोमान्तक पहाड़ी पर बसी गरूड़ जाति से मैत्री कर जरासंध को न सिर्फ पराजित किया, बल्कि बलराम के हाथों मारे जाने वाले जरासंध को अनेक राजाओं के समक्ष कृष्ण ने जीवनदान दिया...उसका राजाओं की तरह सम्मान किया / कृष्ण की इस दया से जरासंध की छवि, पराक्रम, सब कुछ धूमिल हो गया। उधर कृष्ण की बढ़ती कीर्ति से खार खाये हुये श्रृतश्रवा का बेटा शिशुपाल और कुन्तिदेश का दन्तवक्र, जरासंध के और निकट आ गये। कृष्ण के चाचा की बेटी पृथा, हस्तिनापुर की साम्राज्ञी और तीन पाण्डवों की मां बन चुकी थी, नकुल सहदेव माद्री के पुत्र थे।
कंस की मृत्यु और कृष्ण से पराजित होने के कारण जरासंधस की सारी गणित फेल हो गयी...उस समय सार्वभौम और  गणराज्यों में चलने वाली सार्वभौम और पारमेष्ठय दो तरह की शासन प्रणालियां थी...सार्वभौम प्रणाली में अनेक जनपदों में से एक राजा अपने प्रभाव के कारण सार्वभौम अधिपति बन जाता था। जबकि गणराज्यों में अनेक कुल अपने बीच के किसी राजा को श्रेष्ठ चुनते थे जिसे पारमेष्ठ्य कहते थे / पारमेष्ठ्य बदलते रहते थे।
जिस समय कृष्ण हस्तिनापुर के कलह सुलझाने का प्रयत्न कर रहे थे उस समय जरासंध ने एक चाल चली / उसने विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रूक्मिणी का विवाह चेदिराज शिशुपाल से पक्का करवा लिया / कुन्तिदेश का दन्तवक्र, प्राग्ज्योतिष  का भगदत, वंग का पौन्ड्रक, शिशुपाल और रूक्मी एवम् अनेक छोटे राजाओं को अपने गुट में शामिल कर जरासंध ने देश का मध्य भाग को अपने प्रभुत्व में कर लिया...अब जरासंध के सम्मुख पांचाल और हस्तिनापुर के सुदृढ़ शासन का सामना करना बाकि था / अभी जरासंध कुछ और सोचता कि ठीक इसी समय कृष्ण ने रूक्मिणी हरण कर उसे अपनी पटरानी बना दिया /जरासंध का खेल फिर बिखर गया। तभी कृष्ण ने शिशुपाल का भी बध कर डाला / मगध नरेश जितना चतुर राजनीतिज्ञ बनता था कृष्ण हमेशा उससे दो कदम आगे जाकर उसे मात देते रहे।
जरासंध ने तीसरा दांव पांचाल नरेश द्रुपद की बेटी द्रोपदी स्वयंवर में चला / द्रोपदी और उसके भाई धृष्टधुम्न का प्रण था कि द्रोपदी अपना विवाह उस वीर से करेगी जो द्रोण को पकड़कर उनके पिता द्रुपद के चरणों में ला पटके और चार व्यक्ति ही उस समय ऐसा पराक्रम करने में सक्षम थे / पहले थे कृष्ण, दूसरा अर्जुन, तीसरा कर्ण और चैथा स्वयं जरासंध। कृष्ण क्योंकि राजा नहीं थे इसलिये जरासंध ने जानबूझकर द्रोपदी स्वयंवर की सलाह दी ताकि कृष्ण इसमें भाग न ले सके। अर्जुन मृत समझे जा रहे थे, कर्ण सूत पुत्र थे और स्वयं जरासंध वृद्ध होने के कारण अपने पुत्र को आगे कर पांचाल कर दामाद बनाना चाह रहे थे। ताकि वहपांचाल नरेश  समधी बन कर हस्तिनापुर को भी घेर सके।
समस्या कृष्ण को आगे विकट थी, द्रोपदी द्रोण के किसी भी शिष्य को अपना पति नहीं बनाना चाहती थी, क्योंकि ऐसा करके वह द्रोण को अपमानित नहीं कर सकती थी / कृष्ण स्वयं इस प्रतियोगिता से हट गये क्योंकि दो बार राजकुमारियों का अपहरण करने पर जनमानस में गलत सन्देश जाता और जरासंध समस्त राजाओं को भड़का कर उनके विरूद्ध कर सकता था / दूसरे कृष्ण यह भी नहीं चाहते थे कि पांचाल और मगध के बीच कोई संबंध बने / तभी पान्डवों के जीवित होने के समाचार ने कृष्ण का उत्साह दुगुना कर दिया। उन्होंने दिन-रात की अथक-परिश्रम और कूटनीतिक दांव-पेंच लगाकर द्रुपद और द्रोपदी को जिस तरह हस्तिनापुर की कुल वधु बनने के लिये राजी किया, वह अकल्पनीय था / द्रोपदी जैसे ही पाण्डवों की पत्नी बनी कि लोग कृष्ण की परालौकिक प्रतिभा / उनकी दूरदृष्टि से हतप्रभ रह गए....जरासंध की मनोवैज्ञानिक मृत्यु उसी दिन हो गई थी...शेष काम भीम ने किया...कृष्ण वहीं थे। मगध का साम्राज्य भरभरा कर गिर पड़ा।
अपने समय को लांघकर घटनाक्रम को अपना दास बना देना ही कृष्ण का पुरूषार्थ था / वे आराम से द्वारिका में बैठकर राज्य कर सकते थे परन्तु वे भारत भूमि के ठीक मध्य खड़े होकर महाभारत के साक्षी बने / वेद-वेदान्त को निचोड़कर गीता के प्रवक्ता बने / लोकाचार के रंगों को कृष्णत्व में रंगकर वे नटवर, भक्ति ग्रंथों की गायकी बनकर श्रवण को तृप्त करते रहे हैं।
पंचरात्रिक जो कि नर-नारायण के पूजक थे और भागवत जो कृष्ण के बालस्वरूप को पूजने लगे थे, उन्होंने ही गुप्तकाल में महाभारत का नया संस्करण तैयार करवाया  और भक्ति के आनंद में कृष्ण पराक्रम के जैसे अतिशोयोक्तिपूर्ण क्षेपक उन्होंने ग्रन्थ मे ंजोड़ दिये, वह कृष्ण के पुरूषार्थ को समझने में बाधक बना।
उनकी बंशी ने दिनचर्या को संगीत बनाया, उनके रास ने काम को देव पद पर पुर्नस्थापित किया...उपकरण बना दी गई स्त्री को कृष्ण ने मित्र बनाया। अर्जुन को योद्धा बनाने वाली उस कृष्णकाया ने हिंसा को कभी भी महिमा मण्डित नहीं किया। सत्ता के केन्द्र में रहकर भी वह निर्लिप्त जननायक राजनीति को लोक सेवा का अस्त्र बनाने वाला सबसे बड़ा समाजशास्त्री था। जन्माष्टमी पर अवतरित होने वाला वह अनोखा मनुष्य एक महान अवसर था, थोड़ा सा मक्खन चुराकर वह भारतीय समाज को कितना कुछ दे गया।