कचरा














 

कल रात मेरी लाड़ली  मुझसे बोली-"मम्मी आप फेसबुक पर छोटी-छोटी बातें क्यों पोस्ट कर देती हैं पहले तो ऐसा नहीं करती थीं बचपन में हमें  सिखाती थीं-सदा अच्छे काम करो लेकिन जतलाने की कोशिश कभी मत करो और अब स्वयं ही..️" मैं सोच में पड़ गई, रात भर सो भी नहीं पाई ,क्या और लोग भी यही सोचते होंगे...मैं स्वयं को सिद्ध करने की कोशिश कर रही हूँ ---1985 में जब पहली बार राजेन्द्र नगर(पटना)की  पॉश कही जाने वाली कॉलोनी में रहने आई तो हैरान रह गई कि लोग अपने घरों का कचड़ा रोड़ पर फ़ेंकवाने में ज़रा भी संकोच नहीं कर रहे थे/ मेरी बाई भी समझाने के बावज़ूद मेरे घर का कचरा कूड़े दान में न डालकर(क्योंकि उसमें थोड़ा परिश्रम करना होता था/ सड़क पर ही फेंक आई/ यह कहते हुए कि सब लोगफ़ेंकते ही हैं ,केवल आपका ही थोडे है/ दूसरे दिन उसे अलग से पैसे देने का लालच देकर सारा सभी के घर का कचड़ा इकट्ठा करवा कर जलवाया,क्योंकि सबका कचड़ा उठा कर कूड़ेदान तक ले जाने के लिए वह तैयार न थी/ यह सिलसिला चलता रहा और मुझे रोज़ सुनने को मिलता रहा कि यह अपनी सुंदरता का प्रदर्शन करने  सड़क पर खड़े होकर 

रोज़ सुबह यह काम करवा रही है / क्योंकि यह तो सच है कि युवावस्था में सुंदरता तो चरम पर होती ही है/ ख़ैर....कुछ दिनों तक छींटाकसी का सिलसिला जारी रहा/ मैं भी एक कान से सुनकर दूसरे से निकालती रहीदुःख / ज़रूर होता था लेकिन एक ज़ुनून था कि सफाई तो हो रही है न...कुछ दिनों बाद सफ़ाई सबको भाने लग गई और सबके घरों का कचड़ा अब कूड़े दान में जाने लग गया था, मेरी ख़ुशी को तो मानो पंख लग  गए थे/ छींटाकसी करने वाले अब प्यार से मुस्कराने लग गए थे