ओ लड़की.!


रोकने पर तू
बांध बन गयी
क्रोध से तनकर
दीवार बन गई
अपने अन्तस की चमक से
तूने शब्द 
आवेशित किये
शास्त्रों के पृष्ठ 
सुवासित किये
तटबन्ध तोड़कर तूने
वर्जनाओं को पाठ पढ़ाये
आलिंगन में बंधकर 
प्रकाश के सूत्र खोले
स्वेच्छा से धार बनती,
तारणहार बनती,
पानी की छलार बनती है
बंधने पर नाद बनती है
समय आने पर
यही लड़की...!
बाढ़ सी विकराल बनती है