پاکستان کی نئی تاریخ
यह आसान था कि पाकिस्तान के फलसफे को सही सिद्ध करना। सरल हल जिन्ना और पाक-परस्तों के पास था-नया इस्लामिक, किन्तु अवैज्ञानिक, इतिहास लाया जाए। उस धरा के हज़ारों वर्षों के इतिहास को नष्ट कर दिया जाए। इतिहास के वे महापुरुष, जिनके किरदार उनसे प्रश्न पूछते नज़र आते हैं, लोगों की स्मृतियों से परे धकेल दिए जाएं।
मुहम्मद गज़नी सरीखों की बुत-शिकनी, नए खुदा, नए नायक ..... और 1400 साल पुराना फलसफा। मूक जनता, नपुंसक मनसबदार-मौलाना। ऐसी ही दी गई पठकथा पर काम हुआ। अलामा इकबाल कश्मीरी पंडित से मुस्लिम हुआ। मुस्लिम से विद्वान या आलम। उर्दू-फ़ारसी अदब का माहिर कवि या शायर। फिर मुस्लिम लीग का नेता। फिर गायब। फिर एक नया बाप। रेत के बुर्ज बनाने का क्रम जारी रहा।
व्यवस्था ने इसी सोच से नये इतिहास की कूटरचना की। पाकिस्तान बनते ही पंजाब राज्य की भाषा पंजाबी या सिंध प्रांत की सिंधी या बलोचिस्तान की बलोच भाषा नही घोषित हुई। पाकिस्तान को अपनी ज़मीन और ज़मीन की भाषा से डर लगने लगा था। मुग़ल की जी हजूरी का अभ्यास अभी खत्म नहीं हुआ था, पड़ोस भी ईरानी प्रभाव के क्षेत्र थे, सो फ़ारसी और उर्दू सरकारी तौर पर चलन में आई । इतिहास के तथाकथित मुस्लिम नायक मीर कासिम, मोहम्मद गौरी, अहमदशाह अब्दाली, मोहम्मद गज़नी बन गए। जो स्थानीय नहीं थे। यानी पाकिस्तानियों के बाप ईरान-अफगानिस्तान के रहने वाले। अहमद सरहन्दी की की किताब "मख्तूबात-ए-इमाम रब्बानी" फ़ारसी भाषा की पुस्तक ईरान या अफगानिस्तान में धार्मिक पुस्तक नहीं मानी जाती। परन्तु पाकिस्तान में मज़हबी किताब है।
आजकल वहाबी इस्लामी प्रचारक, सऊदी समर्थन पर टिकी राजनीति, शिया व ईरान विरोध की मजबूरी ने फ़ारसी और उर्दू भाषा को नुक्सान पहुंचना शुरू कर दिया है। धीरे धीरे अरबी भाषा अपनी जड़ें जमा रही है। चूंकि वहाबी इस्लाम का प्रचार मोहम्मद बिन आबिद अल वहाब द्वारा किया गया। जिसके कारण मोहम्मद बिन सऊद शासक बने... सऊदी अरब के। अतः ये दोनों आजकल पाकिस्तान के नए बाप बन गए हैं। अल-कायदा का अरब आतंकी ओसामा, अल-जवाहरी नए नायक हैं।
इस प्रकार पाकिस्तान अकेला ऐसा देश है जिसके नागरिकों का DNA बदल रहा है, ऐतिहासिक नायक और पूर्वज भी, भाषा भी। अगली बार कब पश्तो बोलना ममनुं हो जाये, नहीं कहा जा सकता।
हाँ, पाकिस्तान ने कुछ बातें आश्चर्य तरीके से बर्दाश्त की है-
1. जिन्ना का शिया होना
2. जिन्ना की शराब
बाप बदलने के सूरते-हाल ये भी आज नहीं तो कल बदलेगा।
लेकिन स्वतन्त्रता के लिये लड़ने वाले बलोचिस्तान, पख्तूनिस्तान, सिंध के लोगों को अपनी भाषा, अपने पूर्वज, अपना इतिहास पसन्द है। इस प्रकार पाकिस्तानी एस्टेब्लिशमेंट का इतिहास बम का ढेर है। फटने पे दीवाली....