राजनीति को नोचते गिद्ध


गिद्ध  प्रजाति के पक्षी असल में कुदरत के सफाई कर्मचारी होते हैं जो मरे-पड़े जीवों का भक्षण कर प्रकृति को स्वच्छ रखने के साथ-साथ जानलेवा बीमारियों के संक्रमण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इसीलिए ये बृहद आकार के पक्षी प्राकृतिक आहार शृंखला में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करते हैं। इनकी विशेषता है कि ऊँचे गगन में उड़ते हुए भी इनकी तीखी नजर जमीन पर मरे पड़े जीव को खोजती रहती है। इन्हें इन्तजार होता है कि कब कोई जीव मरे और उन्हें भोजन प्राप्त हो और इसीलिये प्रकृति के स्वच्छता प्रहरी होते हुए भी गिद्धों  को अधिक सम्मान के साथ नहीं देखा जाता। ठीक यही प्रवृति कुछ मनुष्यों में भी पाई जाती है जिसके तहत वे दूसरों की क्षति को अपने लाभ में बदलने के लिए तत्पर रहते हैं। मनुष्य में मौजूद गिद्ध प्रवृति उसे जीवन के सबसे निचले स्थान पर ले जाती है क्योंकि वह लोगों की लाचारी और बेबसी से अपना फायदा सोचते हैं। देश में आज हर क्षेत्र में, जैसे राजनैतिक, धार्मिक और इलेक्ट्रानिक एंड प्रिंट मीडिया आदि में इन 'वल्चर माइंडस' ने अपना कब्ज़ा कर रखा है। आंकडे बताते हैं कि यद्धपि  भारत में प्रकृति के स्वच्छता प्रहरियों की संख्या में कमी हो रही है लेकिन हमारे प्रजातंत्र में राजनीतिक गिद्धों की संख्या में कई गुणा वृद्धि  देखी जा रही है। नये सशक्त भारत के निर्माण कार्यों के चलते जम्मू कश्मीर से धारा ३७0 हटाये जाने से बौखलाये मुफ्तखोरों ने इस बिरादरी की संख्या में और अधिक बढोत्तरी कर दी है। डेमोक्रेटिक प्रणाली में सत्ता प्राप्ति के लिए कुछ चालाक भेड़ियों ने देश-समाज को बांटने, हिंसा फ़ैलाने और देशद्रोह जैसे षड्यन्त्रकारी कार्यकलापों को सीढ़ी बनाने का जघन्य पाप किया, जिससे देश जातियों और धार्मिक वोट बैंक के चंगुल में फंसता चला गया। ये पोलिटिकल वल्चर जिस जाति को ढाल बनाकर सत्ता हासिल करते हैं, उस जाति से संबंधित लोगों पर अत्याचार की अप्रिय खबर की तलाश में रहते हैं ताकि घटना पर कुछ दिन शोर शराबा करके उस जाति विशेष का वोट हासिल कर सकें। यहाँ तक कि ज्यादातर मामलों में अपने राजनीतिक लाभ के लिए ये गिद्ध  षड्यन्त्र के तहत सोच समझ कर दुर्घटना को अंजाम देते हैं और फिर मिडिया को हड्डी डालकर षड्यंत्र के शिकार हुए लोगों की लाशों पर बैठकर राजनीति की रोटी खूब मजे से सेंकते हैं। वल्चर के लिए मरा जीव सिर्फ भोजन होता है लेकिन राजनितिक गिद्ध  मरे इंसानों में भी फर्क करते हैं। जहाँ ये गिद्ध  हिन्दू धर्म के व्यक्ति या समाज पर हो रहे बड़े अत्याचार में चुप्पी साधे रखते हैं, वहीं ये मुस्लिम धर्म के व्यक्ति या समाज में थोड़ी सी भी खरोंच आने पर आसमान सर पे उठा लेते हैं। भारत में 'असहिष्णु गैंग' नाम से एक प्रसिद्ध  वल्चर गैंग है जो सिर्फ एक धर्म और एक राजनैतिक पार्टी के लिए काम करता है। देश के किसी कोने में किसी मुसलमान के साथ कोई अनहोनी भी हो जाय तो वामपंथी सोच के लोग, मुस्लिम परस्त राजनैतिक पार्टियाँ, फिल्म इंडस्ट्री के कुछ मुस्लिम भांड, अवार्ड वापसी गैंग, टुकड़े -टुकड़े गैंग से लेकर बिका हुआ मिडिया सभी सक्रिय हो जाते हैं। पीड़ित के दुःख दर्द से इनको कोई मतलब नहीं होता है मगर देश की छवि को ख़राब करने का कोई भी अवसर ये हाथ से जाने नहीं देते। आतंकियों की मौत की सजा को रुकवाने के लिए ये हस्ताक्षर अभियान चलाकर रात को सुप्रीम कोर्ट खुलवाते हैं और उनके जनाजों पर आंसू बहाते हैं, लेकिन देश की रक्षा में पराक्रम दिखाने वाले जवानों पर इनको कभी गर्व नहीं होता है और ना ही सीमा रक्षकों की शहादत पर अफ़सोस होता है। दुनियां भर में मुस्लिम देशों के बीच कितने भी मतभेद क्यों न हों परन्तु सर्व-इस्लामवाद के एजेंडे के तहत इनकी हर कोशिश रहती है कि हिन्दुओं को अधिक से अधिक बाँट दिया जाय ताकि भारत में ये अपने मकसद में कामयाब हो जायें। हमारे देश में पलने वाले अधिकांशतः 'पोलिटिकल वल्चर' इसी वैचारिक संगठन के नुमाइंदे होते हैं जो बाहरी मूल की शक्तियों की बैशाखियों के सहारे देश में हिन्दुओं को कमजोर करना चाहते हैं। चूँकि विदेशों से मिलने वाले फंड पर सरकार की पैनी नजर है, इसलिए इन देशद्रोहियों की असहिष्णुता अधिक बढ़ गयी है। उदाहरण के तौर पर चंद्रयान-२ की सफलता पर जब सम्पूर्ण देश भारतीय वैज्ञानिकों को बधाई दे रहा था तब यह 'वल्चर गैंग' देशवासियों की ख़ुशी को फीका करने, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश के गौरव और सम्मान को कम करने के लिए सक्रिय हो गया ताकि सोशल मिडिया पर गौरवान्वित करने वाली उपलब्धि के बजाय देश को शर्मसार करने वाली पुरानी ख़बरों पर चर्चा हो। परन्तु अब इन जहरीले तथाकथित सेकुलरों के लिए देश के बहुसंख्यक समाज के स्वाभिमान को गिराना इतना आसान नहीं रह गया क्योंकि आज देश में उन लोगों की सत्ता है जो  भारतीय संस्कृति, और राष्ट्रप्रेम को सर्वोपरि मानते हैं। आज हमें नाज है कि हिंदुत्व और देश दोनों सुरक्षित हैं, क्योंकि देश की बागडोर लुटेरों से छीनकर भारत माँ के सच्चे सपूतों के हाथ में आ गयी है।  
देश में पांच साल पहले तक गाय, हिन्दू, हिंदुत्व, वीर सावरकर, आरएसएस.. आदि के पक्ष में कोई जरा भी वक्तव्य देता तो सेक्युलर अर्थात् 'हिन्दू विरोधी' मीडिया मधुमक्खियों की तरह भिनभिनाने लग जाता और भारत के सेकुलरिज्म का बखान करते हुये ये दलीलें देता कि यहाँ सिर्फ एक धर्म विशेष के लोगों के हितों की ही बात होनी चाहिए, भले वे बंगलादेशी या फिर रोहिंग्या ही क्यों न हों। हिन्दुओं की सुरक्षा और स्वाभिमान की चर्चा के अलावा मीडिया पर सब कुछ जायज होता था। आज टीवी चैनल और सोशल मिडिया पर राष्ट्रवादी शक्तियां इन गि(ों को मुहंतोड़ जवाब देने लगी हैं। कुछ ही समय में ऐसा क्या बदल गया कि आरएसएस के नाम पर जिन लोगों को डराया गया था वे खुद ही बीजेपी के साथ आ गए हैं। सबसे पुरानी राजनितिक पार्टी के वफादार गुलामों ने अपने कुकृत्यों से हिंदुत्व को मिटाने की भरसक कोशिश की, लेकिन अब वे खुद मिटते जा रहे हैं। क्योंकि भारत का जनमानस अब ये समझ चुका है कि इनकी नफरत 'आरएसएस' से नहीं बल्कि हिन्दुओं से रही है। इनमें खुलेआम हिन्दुओं को गाली देने की तो हिम्मत नहीं थी इसलिए 'आरएसएस' शब्द की आड़ लेकर ये गाली देते थे। हिन्दू धर्म और संस्कृति से इनकी नफरत के जीते जागते सबूत हर जगह मिल जायेंगे। पचास वर्षो से अधिक के राज में देशभक्तों की जगह विदेशी लुटेरे, आक्रमणकारी, बलात्कारी, देशद्रोहियों, और सोच से बौने लोगों को महिमामंडित करने का काम अधिक किया गया है तथा देश में सड़कें, शिक्षा संस्थान, राज्य, शहर उनके नाम पर रखकर हिन्दुओं को कुंठित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इतिहास के गुनाहगारों पर प्रश्न करने का अधिकार हर नयी पीढ़ी का होता है लेकिन बच्चों के पाठ्य पुस्तकों में देश के विभाजनकारियों को बाप और चाचा बनाकर बड़ी चालाकी से उन्हें उनके कुकर्मों के आंकलन से भी बचा लिया गया। हम दो पीढ़ियों तक आँख बंद किये आधे अधूरे इतिहास को ही सच मानकर चलते रहे हैं। उदाहरण के लिए, १९४२ 'भारत छोडो' आन्दोलन को एक व्यक्ति के नजरिये से अलग रखकर पूरी वस्तुस्थिति के साथ देखें तो असल में देश के विभाजन की राह इसी आन्दोलन से निकली है। सोचिये, द्वितीय विश्व यु( में, भारत की पांच सौ से अधिक सभी छोटी बड़ी रियासतों के पच्चीस लाख भारतीय सैनिक ब्रिटिश इंडियन आर्मी के झंडे तले मित्र देशों के पक्ष में लड़ाई लड़ रहे थे। लाखों जवान शहीद हो गये, लाखों घायल और हजारों यु(बंदी बनाये गए। यही नहीं, इस दौरान पश्चिम बंगाल अकाल की विकट स्थिति से गुजर रहा था, कैसी त्रासदी रही होगी जिसमें तीस लाख लोग भूख से मर गए लेकिन ये आश्चर्य की बात लगती है कि 'भारत छोडो' आन्दोलन के नेताओं को इससे कोईई सरोकार नहीं था। इस यु( में अंग्रेजी हुकूमत भारत के सारे संसाधनों को लगभग रिक्त कर चुकी थी और उन्हें अब इस रिक्त देश में कोई रूचि नहीं थी। जिन्ना की राजनैतिक गि( दृष्टि क्विट इंडिया मूवमेंट का समर्थन न करने से होने वाले फायदे को देखने में सफल रही और वह इंगलैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री चर्चिल की नजरों में युद्ध  में ब्रिटेन का समर्थन करने वाला दूरदर्शी व्यक्ति बन गया और सत्ता का पहला हकदार भी।  
नयी पीढ़ी इन गिद्ध  प्रवृति के मिथ्याचारियों को समझने में अधिक निपुण है, फलस्वरूप देश में हिंदुत्व के एकीकरण का दौर शुरू हो गया है। देश की सुरक्षा और प्रगति के लिए राजनैतिक पटल पर इस एकीकरण की बहुत आवश्यकता है क्योंकि हिन्दू राष्ट्रवाद की छत्रछाया में समाज का कोईई भी धर्म-पन्थ बिना किसी भय और भेदभाव के जी सकता है। सात  सौ सालों का इतिहास इसका सबूत है कि 'सर्वधर्म समभाव' एक मिथ्याप्रचार है जो भारत में बहुसंख्यक समाज को कमजोर करने के लिए सिखाया गया है। हकीकत में ये मिथ्याचारी शब्द हिन्दुओं के कभी काम नहीं आया है। इतिहास गवाह है कि १९४0 में लाहौर पाकिस्तान में जो लोग ये मानते थे कि हिन्दू-मुस्लिम एक हैं और सदियों से हमारा प्रेम है, वे १९४७ में वहां से उखाड़ दिए गये। कश्मीर के पंडितों को अपने भाईईचारे पर बहुत भरोसा था, उन्होंने धर्मनिरपेक्ष प्रेम के सबूत के रूप में मुस्लिम परिवारों से रिश्ता नाता भी जोड़ा था, लेकिन उन संभ्रांत लोगों को उस भाईईचारे ने दिल्ली की सडकों पर पान बीड़ी बेचने के लिए मजबूर बनाया। ये तमाम तथ्य हमारे धर्म ग्रंथों में कही गयी इस बात का सत्यापन करते हैं, 
'गुणानामन्तरं प्रायस्तज्ञो वेत्ति न च परम। 
मालती मल्लिकामोदम घ्राणं वेत्ति न लोचनम'।


अर्थात गुण धर्म की विशेषताओं में अंतर प्रायः ज्ञानीजनों द्वारा ही संभव है दूसरो द्वारा नहीं। जिस प्रकार चमेली की गंध नाक से ही जानी जा सकती है आँख से नहीं। साधारण शब्दों में हम ये कह सकते हैं की धर्म और सत्य को इन्सान अपनी अपनी समझ के स्तर के अनुसार ही ग्रहण करता है। विज्ञान रटने से कोई आइंस्टीन नहीं बन सकता है तो धार्मिक प्रवचनों से कोई शंकराचार्य नहीं बन जाता है। आज सूचना तकनीक भगवान शिव की तीसरी आँख के रूप में जनमानस के पास उपलब्ध है, इसका सदुपयोग अज्ञान के अंधकार को दूर करने, सत्य और वास्तविकता को देखने समझने के लिए करना चाहिए। सबसे पहले धर्म के नाम पर अकर्मण्यता और नपुंसकता का पाठ पढाने वाले तथाकथित ज्ञानियों की प्रवृति की असली पहचान करनी जरुरी है। जो जैचंद यहाँ पर राजनैतिक इस्लाम की पैरवी करते हैं, उन्हें साफ साफ संदेश जाना चाहिए की तुम्हारी बिना परिश्रम के सत्ता हासिल करने और प्रसि( होने की गन्दी नीयत अब कारगर नहीं होगी। ये जैचंद राजनैतिक लाभ के लिए 'ईश्वर अल्लाह तेरे नाम..या मंदिर मस्जिद एक सामान.. जैसे मन्त्रों का ढिंढोरा तो पीटते हैं लेकिन अल्लाह के नाम से चलने वाले आतंकी संगठनों पर कभी ऊँगली नहीं उठा सकते हैं।  हाँ, भगवा आतंक का षड्यन्त्र रचकर हिसाब बराबर करने का पाप जरुर कर सकते हैं। खुद को धर्म के ज्ञानी कहने वालों ने अपने समाज को अशिक्षा और गरीबी के दल दल में धकेला और उनके भोलेपन का फायदा उठाकर अपना भला किया है। अच्छा हो इन देश के गद्दारों की सोच को भांप लिया जाय और समय रहते स्वयं और देश के हितों के लिए काम किया जाय। जो समय के बदलाव को नहीं देख पाते तथा समाज में सामंजस्य नहीं बना पाते हैं उनकी जिद ही उनको मिटा देती है। अच्छाईयों का विरोध करने वाले लोग देश और धर्म का कल्याण कभी नहीं कर सकते हैं। इस लेख में अगर देवभूमि में पल रहे राजनैतिक गि(ों का जिक्र न हो तो यह एक अन्याय साबित होगा। अफ़सोस की बात है कि इन गि(ों ने देवभूमि को भी नहीं छोड़ा। दिल्ली के एक परिवार के एजेंडे को पूरा करने के लिए इन्हांने पहाड़ की संस्कृति के साथ सालों तक गद्दारी की और फलस्वरूप यहाँ १८प्र. से अधिक बंगलादेशी, रोहिंग्या आदि को बसा लिया गया। यह सब एक साजिश के तहत किया जाता रहा है और फिर भी देवभूमि की भोली जनता इन गि(ों वोट देती रही है। देवभूमि के हर घर से देशभक्त सिपाही तैयार होता है जबकि ये गि( हर घर से आतंकवादी पैदा करने का समर्थन करते हैं। ये हमारे सैनिकों को देर-सवेर गाली देते हैं और हमारे सेनाध्यक्ष को गुंडा कहते हैं। फिर इनका देवभूमि में क्या काम? ध्यान रहे कि देवभूमि से इस देशद्रोही सोच का पूरी तरह से समाप्त करना होगा। जम्मू कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय होने पर इनमें बौखलाहट मची है, ऐसी कंटीली सोच से सम्बन्धित लोगों का देवभूमि में हुक्का पानी बंद करना होगा। इनका पूर्ण सामाजिक बहिष्कार बहुत जरूरी है।
इन सभी प्रकार के गिद्धों  द्वारा फेंके जाल से अगर बाहर निकलना हो तो 'यूटयूब' और सोशल मिडिया के माध्यम से श्री पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ और संदीप देव जैसे बुद्धिजीवियों के ज्ञान और अनुभव का सभी को फायदा उठाना चाहिए। ये भारत माता के लाल अपनी जान को खतरे में डालकर गिद्धों  के अनेकों षड्यंत्रों के बारे में बताकर हिन्दू समाज को जागृत करते हैं, तांकि हम अनजाने में इतिहास को फिर से  दोहराने का मौका न दे दें।