स्व निरीक्षण


यदि हम अपने मन का अध्ययन करें तो हम स्वयं ही अपने निरीक्षक बन सकते हैं / आज हम अपनी हर मुसिबत, तकलीफ़ और अभावों के लिए दूसरों को दोष देने लगते हैं या ईश्वर को ही कठघरे में खड़ा कर देते हैं, यह कह कर कि मेरे  स्राथ ही ऐसा क्यों? मन:शास्त्र का यदि अध्ययन किया जाय तो स्वत: ही दृष्टि गोचर होने लगता है कि जिन विचारों पर हम विश्वास करते हैं, बार- बार चिन्तन करते हैं, मन्दिर सदृश्य हृदय में स्थान देते हैं, वे,ही हमारे अन्तः करण की नींव बनने लगते हैं । हम सौभाग्यशाली हैं कि हमने मनुष्य योनि में जन्म लिया है, इस दुर्लभ प्राप्ति को क्यों न हम ऐसा बनाने की कोशिश करें जिसमें सबके लिए प्यार, सौहार्द और सद्भावना समाहित होती रहे / यह तभी सम्भव है जब हम कुटिल एवं असत्य विचारों को अपने हृदय रूपी मन्दिर में कोई स्थान न दें। पूर्व से मौजूद उन कुटिल विचारों को हम लड़ -झगड़ कर तो निकाल नहीं सकते / इससे छुटकारा पाने का सरल उपाय है कि हम सुविचारों के लिए हृदय रूपी मन्दिर के पट खुले रखें / प्यार-सौहार्द से परिपूर्ण एक विचार के अन्तःकरण में प्रवेश करते ही एक दुर्विचार निष्काषित हो जाएगा / हर पल सजग रहते हुए हम एक -एक कर उन सभी दुर्विचारों से मुक्तपिा सकते हैं और शांतिदायक सुविचारों की गङ्गा बहा कर मानसिक दुर्बलताओं से मुक्ति पा सकते हैं । हर क्षण हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम अपने हृदय-मन्दिर में सकारात्मक-रचनात्मक उत्तम विचारों को ही प्रवेश करने दें। खरपतवार रूपी कुत्सित विचारों को पनाह लेने से पहले ही उखाड़ कर बाहर कर दें। ईश्वर ने हमें अद्भुत शक्तियों से नवाजा है लेकिन हम अज्ञानतावश उन्हें जागृत करने की कोशिश नहीं करते हैं / इन विद्यमान शक्तियों से कोई कार्य न ले हम उन्हें कुठिंत करते जाते हैं और दूसरों की प्रगति देख -देख कर दुखी होते रहते हैं / इन जागृत शक्तियों को सही और ग़लत दिशा में मोड़ना भी हमारे ही हाथ में है/  चाहें तो विकास में लगाएं अन्यथा विध्वंसक बन अपने साथ औरों के लिए भी दुःख का कारण बनते जाएँ। अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं जिन्होंने इन शक्तियों को जागृत तो कर लिया, लेकिन  कल्याण की जगह विध्वंश में लगा कर समाज के लिए नासूर बने हुए हैं / स्वयं को उत्तम अवस्था में रखने और अपनी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने के लिए मानसिक रूप से अपना हितैषी  बनना होगा।यदि हम विक्षुब्ध तो इसके जिम्मेदार स्वयं हम ही हैं क्योंकि यह स्थिति तब बनती है जब हमारा मन चिंता,सन्देह,कृपणता और कुत्सित चिंतन में घिरा रहता है / अतः इस  अमूल्य जीवन को जीने के लिए स्व चिन्तन,स्व निरीक्षण महत्वपूर्ण है।