वक्रतुण्डोपनिषद


नमन गजानन ओ लम्बोदर!


नमन वक्रतुण्ड गणपति हे!


कार्तिकेय के, व्यास के भ्राता 


उमा के प्रिय बालक हे!


भू-नभ, तारे उदार समाये 


लम्बोदर तू अपरम्पार 


चट  गोबर के बालक बनते 


ऋजुता की जय बारम्बार 


लम्बोदर हो, वक्रतुण्ड हो 


भोजन मोदक, क्या कहने 


पाश, परशुधर , द्विज विराट हो 


मूषक वाहन, क्या कहने