मठ, मंदिर
सब जगह माया,
....आया चुनाव।
हठ का रास्ता
सांसदों के जैसे ही
देश के लोग..।
रोयें या गायें
बर्दाश्त नहीं होती
सत्ता से दूरी।
संतरे जैसी
विपक्षी एकतायें
फांकों में बंटी।
तीन बंदर
चैथे की तलाश है
...कहां मिलेगा।
याद का पंछी
जाने किधर उड़ा
हाथ न आया।
दोगली चाल
अब्दुल्ला से अब्दुल्ला
अब्दुल्ला तक।
वृ( समाज
सम्मान से वंचित
कबाड़ जैसा।
करो प्रयास
पलायन रूकेगा
पराक्रम से।
व्यक्ति केन्द्रित
राजनीति औ' धर्म
दोनों घातक।
बीच की खाई
कभी पटे न पटे
...पुल बनाओ।
माटी से दूर
एक बार गये सो
गये ही गये।
शब्द सारथी
अर्थ को दूर तक
खींच ले जाते।
श्वांस सीमित
इच्छा अपरिमित
...कैसी हो पूरी।
बाबा का दम
संतन की सीकरी
हम ही हम।
कब जियेगा
अपनी शर्तों पर
आम आदमी?
कितनी बार
संयम की परीक्षा
...फूंकिये शंख।
कहां उगते
बिना राम कृष्ण
भक्ति के बीज।
प्रेम और स्रोत
एक बार सूखा तो
सूखा ही सूखा।
काश मिलती
अंजुरि भर धूप
जीने के लिये।
ब्रह्म चेतना
जागृत करो स्वर
शांति के लिये।
सत्ता के बिना
जल बिन मछली
...चैन कहां रे।
लोक चातुर्य
सांप भी मर जाये
लाठी न टूटे।
मन की पीर
किससे करें साझा
...कोई भी नहीं।
चुनावी प्रेम
बिखरा जाता शीशे
प्रीत-प्यार के।
कठपुतली
तख्त के इर्द-गिर्द
नाचना भाग्य।
चर्म उद्योग
जीवित या मृत का
सौदा तो सौदा।
गुरू, कुम्हार
दोनों के समतुल्य
मां की भूमिका।
रेप दरिंदे
मौत के हकदार
व्यर्थ विचार।
योग से योग
योग से ही संयोग
जीवन भर।
कलाबाजियां
बंदर पीछे दूटा
आदमी आगे।