देहरादून में डेंगू!


देहरादून से डेंगू को लेकर आ रही खबरें भयावह हैं। पिछले साल तक इसी तरह की खबरें दिल्ली से आती थीं, लेकिन दिल्ली सरकार, दिल्ली के पांचों स्थानीय निकायों की मेहनत रंग लाई और इस बार स्थिति नियंत्रण में रही।
जो देहरादून कभी लीची और बासमती चावल के लिए प्रसिद्ध था, आज डेंगू के लिए चर्चा में है। देहरादून वैसे भी अब वह देहरादून नहीं रहा, जो मुझे बहुत पसंद था। डीबीएस कॉलेज में पढ़ते हुए वहां की हरियाली देखने लायक थी। हालांकि तब वहां चूना भट्टा भी थे लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वे बंद कर दिए गए थे। आज लीची के बागों की जगह मकान खड़े हो चुके हैं। घरों में एसी लगे हैं। सडक़ों पर लाखों की संख्या में वाहन रेंगते हैं। 18 घंटे धुवां फेंकते विक्रम पहले से प्रदूषण रूपी राक्षस हैं।
और लोग हैं कि अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को लेकर ज्यादा चिंतित हैं। जैसे कि इन मुद्दों के बिना इनका दम घुट जाएगा। कई मशहूर क्रांतिकारी और पर्यावरवादी भी देहरादून में रहते हैं, लेकिन मजाल है कि किसी ने सरकारी तंत्र से कहा हो कि यहां के लोगों के जीवन को नारकीय बनाने से रोको। इन विक्रमों की बजाए ई- रिक्शा चलवाओ। दिल्ली व उत्तर प्रदेश से गए प्रोपर्टी डीलरों पर शिकंज कसो आादि-आदि। एक दिन देखो और घरों के आसपास जमा साफ पानी को हटाओ। लेकिन वे कहेंगे नहीं। उन्हें तो बस गंगा के बांधों को रोकना है, सडक़ों का निर्माण रुकवाना है। विकास कार्यों में बाधा डलवानी है।
इसलिए अब देहरादून वालो दिल्ली की बीमारी वहां पहुंची है तो उससे लडऩे का रास्ता खुद तलाश करो। न तो सरकारी तंत्र न पर्यावरविद ही आपकी मदद करने आएगा।