हे कल्याणी विग्यान तुम्हें


 


 हे कल्याणी विग्यान तुम्हें
जग सारा करता वंदन है।
नमन तुम्हारे उपहाराें काे
तन मन से नित अभिनंदन है।
मन करता है गाथा गाऊँ
तुम्हारे नवीन आविष्काराें की
अंतहीन मैं लिखूं कहानी
प्रतिदिन हाेते चमत्काराें की।
हाँ,मन करता है
लिखूं कहानी
अंतरिक्ष अभियानों की
मंगल गृह  व चन्द्रधरा
के सफल प्रक्षेपण यानाें की।
हाँ,लिख डालूं स्वर्ण कथाएं
तीब्र गति के यानाें की
शाेर मचाती धूम गुंजाती
बुलेट ट्रेन तूफानाें की।
सागर पृष्ठ पर तैरा करते
विशालकाय जलयानाें की।
हाँ,मन करता है..   . .
गाथा गाऊँ
खनिज अयस्क खदानाें की
आैद्याेगिक कल  कारखानाें की
नव युग निर्माण निशानाें की।
हाँ,लिख डालूं  अनंत कथाएं
नित हाेते नूतन आविष्काराें की
विस्मयकारी तकनीकी अर
वैग्यानिक खाेज चमत्काराें की।
समस्त धरा पर ,
भाैतिकवादी
सुविधा ढेर लगाने की।
जीवन खुशहाल बनाने की।
आनंद उमंग बढ़ाने की।
हाँ,लिख सकता हूँ
नित नयी कहानी
डब्लू डब्लू डाटकामाें की
इन्टरनेट कम्प्यूटर दुनिया
साइबर प्वाइंट दुकानाें की
शॉपिंग मॉल एस्केलेटर वाले
चमकीले भव्य प्रतिष्ठानाें की।
मेट्राे स्टेशन पाँच सितारा
शाइनिंग इंडिया प्रतिमानाें की।
पर अफसाेस !
मलिन बस्तियां देख
कलम मेरी रुक जाती है।
कूड़ बीनते बचपन की
तस्वीरें बहुत रुलाती है।
झाेपड़ियाें की दीन दशा
मेरा मन अकुलाती है।
लिखना चाहूँ,ताे भी मित्र
कलम तनिक ना चल पाती है।
गुमसुम माैन बनी रहती
पन्नाें आँसू ढुलकाती है।
जँहा दमित हाें, शाेषित पीड़ित
वंचित अपने अधिकाराें से
कैसे लिख दूं रंगीन है दुनिया
भरी विग्यान चमत्काराें से।
जंहा बस्ती में चूल्हे सूने
इक राेटी ना बन पायी हाे
मुफलिसी हालाताें चलते
कंधे बने दुखदायीं हाें।
टूटी हाें सारी उम्मीदें
चेहराें उदासी छायी हाे
हर आँगन पसरा अंधियारा
कोई भाेर ना खिल पायी हाे
तब कैसे लिख दूं
   नयी   सदी में
नयी राैशनी आयी है
चमकीला बनी है दुनिया
जीवन हुअा सुखदायी है।
हां जब हर घर होगा उजियारा
कोई तिमिर ना पांव पसारेगा
बदलेंगी सारी तस्वीरें
नूतन सवेरा आए गा
मैं  दिनकर दिनमान लिखूंगा
नित नये सम्मान लिखूंगा
हां पूजूंगा देव गणों को
पर विज्ञानी को भगवान लिखूंगा।
पर विज्ञानी को भगवान लिखूंगा।



श्रीनगर गढ़वाल