अधिपति रावण


जयघोष बने स्तूप लेख 


"विजित", काष्ठ बन जलते हैं


छल कहलाते हैं रण कौशल


कपट, कमल बन खिलते हैं


सुनो समय के न्यायाधीशों


नियमावली भुज-मलंग कहाँ


 किसमें नहीं थी, मूल्यहीनता


निष्कलंक था कौन वहां


सिया हरण  ने हरा ज्ञान-बल  


दर्पानन, शिव, शौर्य हरे


भ्रातृद्रोह ने हरा नाभि जल  


प्रभुता ने इतिहास हरे