जयघोष बने स्तूप लेख
"विजित", काष्ठ बन जलते हैं
छल कहलाते हैं रण कौशल
कपट, कमल बन खिलते हैं
सुनो समय के न्यायाधीशों
नियमावली भुज-मलंग कहाँ
किसमें नहीं थी, मूल्यहीनता
निष्कलंक था कौन वहां
सिया हरण ने हरा ज्ञान-बल
दर्पानन, शिव, शौर्य हरे
भ्रातृद्रोह ने हरा नाभि जल
प्रभुता ने इतिहास हरे