बग्वाळ अर गढवाळ (गढ़वाली )

 



दीपावली आज की भागदी ब्यस्त जिंदगी मा पटाका, बम का भिभडाट का अलावा, चाइनीज लैट की लड्यों माळा लटकोण तके चकाचौंध तक ही सीमित रैगि।
गढवाळ मा छोटी दिवाळी तै बग्वाळ का तौर पर क्या जोरशोर से मनौंदा छा। रात-रात तक गौं का बड़ा-बुजुर्ग अर बच्चा झुमेळो मा झूमदा छा।
रात जल्दी खाणौ खैक, सबि एक जगा कठ्ठा हवेतै, झुमकेलो-तांदि लगै एकभौंण मा सुनकार पड़ी रात बिजांल्दा छा।
मेरु माधो नि आई माधो सिंग----
बार ऐन बग्वाळ माधो सिंग ----
सोल ऐन सराद माधो सिंग------
त्वेन दारू नि प्योंण माधो सिंग ----
क्वे मारी ढोळि द्योला माधो सिंग -----


यूं पंक्तियों मा जख समाज तै रैबार भी छो तखि मनोरंजन अर संस्कृति कि मिलौट भी छे।


जुन्याळि रात का बीच रैंणा सैंणा पुंगणा मा भैळो खेलदा ज्वान-जवान नौन्याळ त आग दगडि खेल-खेल मा, कै करतब दिखै जांदा छा।
तिल  का तिलछंट्टा अर त्वोर का सूख्या कठ्येडो कठ्ठगळ बांधि-बूंधी लंबी ड्वोरणी पर लगै, आग जगेतै कन घुमोंदा छा!
मनोरंजन का असीम साधन छा तबार, जैमा गायन झुमेलो अर ख्वोटयू का रिदम दगडि, जख परम्परा अर संस्कृति सळबट्ट पुराणि पीढ़ी बिटि, नै छवाळि तक सौरि जांदि छे।
नै छवाळि भी त बढिचढीतै भाग ल्यौंदा छा, यू कार्यक्रमों मा।
पहाड़ मा आमणि-सामणि का गौं का झुमेलो दूर-दूर तक सुणेंदा छा, अर हम लोग झटपट रोटि खैक झुमेलो का चौक पौछि जांदा छा।
क्या संस्कार अर संस्कृति छे स्या, जेमा सैरु गौं रमि जांदू छो।
दिन मा ऊर्खय्ळा मा बुखणां चूडों की घाण कूटदि माँ- बैंणी अर चुळा पर दाळा भर्या पक्वोडो दगडि बणदि स्वाळि पूरि, अहा! रस्यांण ए जांदि छे ईं मैमानवाजी मा।
गौं ख्वोळा मा जख अबाजु होंदु छो तख तक पैंणू पक्वोडि पौछोण कि जिमवारि रंदि छे। सैरा गौं का पैंणान ट्वोखरि भरि जांदि छे, त कैका खदराऽ।
ब्याखुनि कि गोधूलि बेला पर चुळों, पींडू थडकोण पकोणो रखि दैंदा छा।
सुबेर उठीतै सबसे पैलि हम ग्वोरु- बाछि अर बळदों का गौळा,  फूलू माळा डाळदा छा, धूप-अर्घ अर पिठै लगै, गौ माता की पूजा करी, पींडू द्यैंदा छा।
जौं अर सत्तू का लड्डू बणै खवोंदा छा अर गौ माता से सुखि आरोग्य अन्न धन्न की बरकत मांगदा छा।
दरअसल हम बग्वाळ तै यम चतुर्दशी भी बुळे जांदू, गौ सेवा से भगवान यमराज खुश हवेतै अकाल मृत्यु हरि दैंदा यन भी मान्यता रे गढवाल मा।
खरीफ फसल कु पैलू भोग हम चूडा बुखणां अर पकोडि बणै भगवान तै चढेतै गौ माता तै दैंदा छा यु नया अन्न कु खरीफ की फसल कु पैलु भोग होंदू छो।
ठिक बग्वाळ का ग्यारह दिन बाद इगास या यगास मनै जांदि छे।
बग्वाळ यानि छोटि दिवाळि तै क्या जोश उलार मा मनौंदा छा, घ्यू  का दिवा जगै सैरि मकान कन चम चमकदि छे।  आज रीति रिवाज अर संस्कृति दगडि हम बग्वाळ का चाल चलन तै भी बिगाडि गैन आज हजारों का पटाका फूकी हम भगवान राम का आदर्श अर मर्यादा तै बिसरि दारू नशा जन नकारात्मक प्रभाव की तरफा झुकदि जांणा छिन।
( दानकोट अगस्त्यमुनि बटि)
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