गाँव बदलेगा तो देश बदलेगा


आजकल उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की सरगर्मी है। घर गांवों में अचानक शिक्षित, कर्मठ, जुझारू और मिलनसार समाज सेवकों की बाढ़ आ गयी है जो आपके न चाहने के बावजूद आपकी सेवा करने को तत्पर हैं। पहाड़ के गांव भी भारत के दूसरे गांवो की तरह बेवा की सूनी माँग हो गए हैं जहाँ आज भी शिक्षा, सड़क, स्वास्थ्य, संचार और रोटी रोजगार की समस्याएं मुँह बाये खड़ी हैं। गांव यानी अनपढों, अनगढ़ों और आधुनिकता की दौड़ में पिछड़ चुके लोगों के ठिकाने। आजादी के 70 साल बाद भी इस देश के गांवों की दशा दिशा नहीं बदली है तो फिर भारत के बदलने की मुनादी कैसे की जा सकती है? गांव और गांववासी, सरकारों-लोकसेवकों और जनप्रतिनिधियों की प्राथमिकता में नहीं हैं। गंवई उल्लास और संस्कृति की ठसक अब हमारे लिए भावनात्मक लगाव और रचना कौशल का विषय ज्यादा हो गया है बजाय व्यावहारिक संबंधों और सरोकारों के। कवि कोविद बार बार गला फाड़ते हैं कि गांव ही हैं जहाँ भारत की आत्मा बसती है, जहाँ उसका सांस्कृतिक हिमनद अपनी जड़ों को खाद पानी देता है, जहाँ उसकी सभ्यता और साहित्य का मेरुदंड टिका हुआ है, जहाँ उसकी गँवारू खिलखिलाहट का सौरभ बाकी है...लोकतंत्र आया, नए नए नारों और वैचारिक पताकाओं वाले निजाम आये लेकिन विकास गांव में नहीं आया। लोकतांन्त्रिक प्रक्रिया के कारण गांववासी, दलों और विचारों की दलदल में फँसे लेकिन उन योजनाओं और प्रक्रियाओं में उन्होंने अपने को निष्णात नहीं किया जहाँ से धानी और धूसर का अंतर समझा जाता है...गांव से जो पढ़ लिखकर उन्नत जमात में शामिल हुआ उसने दुबारा गांव का रुख नहीं किया...और अपराधबोध में ज्यादा से ज्यादा पलायन पर कविताएं लिखीं या गंवई संस्कृति की बाजारू नुमाईश लगाकर वादियों की तरह सिक्कों को समेटने का काम किया।
ये चुनावी मौसम का ही असर है कि पहाड़ के गांव भी आजकल गुलजार हो गए हैं। सारे ठग और ठेकेदार आजकल कर्मठ और मिलनसार हो गए हैं। पैसे की हनक के दम पर युवा पीढ़ी को नशे का आदी बनाकर ये लोग भविष्य के लिए कैक्टस तैयार कर रहे हैं। गांववासियों के लिए ये सजग होने का समय है। उन्हें फैसला करना होगा कि अपने ईमान को गिरवी रख दो हफ्ते तक दारू मुर्गे की खुमारी में जीना है या फिर विचारशील होकर अपने गांव और नौनिहालों के लिए शिक्षित और स्वर्णिम भविष्य की नींव रखनी है। शिक्षा और जागरूकता के अभाव में गांवों में जाति, धर्म, ऊंच नीच और अमीर गरीब की खायी ज्यादा गहरी दिखाई देती है। विकास और श्रेष्ठ लोकतान्त्रिक भावना का सम्मान करते हुए हमें इस संकीर्णताओं पर काबिलियत और नेतृत्वक्षमता को तरजीह देनी चाहिए तभी गांव का भविष्य सुधरेगा। पहाड़ी लोग उन उम्मीदवारों का चयन करें जो सुख दुःख में ग्रामीणों के बीच रहे, शिक्षित, ईमानदारऔर जागरूक हों और लोकतान्त्रिक प्रणाली के साथ साथ सरकारी योजनाओं की अच्छी जानकारी रखते हों। इसके साथ साथ अपने गांव, क्षेत्र और जिला पंचायत क्षेत्र के लिए जिसके पास विकास का पूरा विजन हो। जो अधिकारियों से सवाल करे, हिसाब मांगे और जरुरत पड़े तो लोकतान्त्रिक प्रतिरोधों के जरिये जनता के लिए लड़े। 
एक औसत पहाड़ी गांव में डिस्पेंसरी तक नहीं होती। रोटी रोजगार के साधन नहीं होते। शिक्षा और स्वास्थ्य, सड़क और संचार की दशा सोचनीय होती है। प्रधान, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत में उन लोगों को कमान सौंपी जाय जो इस सभी समस्याओं पर काम कर सकें। स्वरोजगार की अनेक योजनाएं सरकार चला रही है लेकिन जानकारी और जागरूकता का अभाव इन योजनाओं को गांवों तक नहीं पहुँचने देता है। खेती किसानी के पारंपरिक तरीकों को बदलकर नयी प्रणाली अपनाने की जरुरत है। प्रधान वह बने जो किसानों को बीज, खाद और मिटटी की तासीर के हिसाब से किसानी के लिए प्रेरित करे। गांव में महिलाओं के लिए स्वास्थ्य और रोजगार केंद्र खोले। स्कूली बच्चों के लिए मनोरंजन केंद्र और वाचनालय खोले जाने की जरुरत है। ग्रामीण युवाओं के पास ताश और कैरम खेलने के अलावा कोई काम नहीं रह गया है, उनसे बात करने की जरुरत है, उन्हें रोटी रोजगार के लिए प्रशिक्षित किये जाने की जरुरत है। बदलते समय के साथ कई तरह की अपसंस्कृतियां गांव में पनप रही हैं। मोबाइल और टीवी को लेकर सही चेतना स्तर न होने के कारण इनका दुरुपयोग ज्यादा हो रहा है जिसकी जद में युवा पीढ़ी सबसे ज्यादा है। पिछले दो दशक में जंगली जानवरों ने पहाड़ में खेती करना दूभर कर दिया है, हमारे प्रतिनिधियों के पास इन चुनौतियों से निपटने का हल होना चाहिए। ग्राम सांस्कृतिक समिति के जरिये सांस्कृतिक, धार्मिक धरोहरों का दस्तावेजी करण किया जाय। ग्रामीण हाट, ग्रामीण पर्यटन, फल, सब्जी, मधुमख्खी पालन और दुग्ध उद्योग जैसे सरल उपायों के जरिये गांव में ही रोटी रोजगार के साधन जुटाये जाएं। नौकरी और अन्य विवशताओं के कारण गांव के जो लोग शहरी हो गए हैं उनके हुनर और कौशल का उपयोग गांव की तकदीर बदलने के लिए किया जाय। 
पंचायत चुनाव में इन सभी मुद्दों पर बात होनी चाहिए तभी गांवों के साथ साथ भारत की तकदीर बदलेगी।