हमें कभी क्षमा मत करना ----(सन्दर्भ रामपुर तिराहा कांड)


उत्तराखंड की वामाओं !


देवभूमि की ओ रण भैरवियों  !


हमें कभी क्षमा मत करना ----


हम जो घरों को छोड़ गए 


जुवे और शराब को मर्दानगी समझ 


पूरे पहाड़ को 


तुम्हारे कन्धों पर रखकर 


पलायन कर गए ------


माफिया ठेकेदारों से मिलकर 


खा गए  सारे जंगल / जड़ी-बूटियां


 गौरा देवियों !  


हमें क्षमा मत करना !


हमने बेच दिया 


तुम्हारा साहस , शौर्य , गरिमा 


एक दारू की बोतल में 


और सो गए कुम्भकरण की नींद 


----तुमने एक बार फिर 


उठाई थी मशाल 


पहाड़ी फेफड़ों में नई सांस के लिए 


हम फिर दुबक गए 


अपने-अपने स्वार्थों में 


आतताइयों द्वारा हतगौरव की गयी 


ओ  खंडित मूर्तियों !


ओ हंसा धनाईओं ! ओ  बेलमतियों !


शाप देना तो हमें देना ----


अमावस की उस रात 


साढ़े पांच सौ भद्रपुरुषों की 


उस, संसद की तरफ जाते 


बीच राजपथ पर 


सरकारी पट्टे बांधे, वे खाकी भेड़िये


तुम्हें  जिन्दा ही नोचते रहे रात भर  


और हम ?


सिर्फ ख़बरों की प्रतीक्षा में 


दुबके रहे कायर-कोठरियों में 


हे शक्ति पीठ चन्द्रवदनियों !


हमें क्षमा मत करना ----


अपनी आँख की कोरों से गिरे


आंसुओं की उन बूंदों से कहना 


भागीरथी मत बनना 


हम भष्म के ढेरों की तरह


जी रहे लोगों को 


ओ पवित्र गंगाओं !


कभी मत तारना 


कभी मत उठाना कोई परचम 


हम बुजदिलों के लिए 


हाथ फैलाकर , लाचार बनकर 


कभी मत जाना दिल्ली की ओर 


दिल्ली राजधानी  है 


वहां राजघाट है 


और बीच में 


मुजफ्फरनगर का वह खूनी तिराहा है 


ओ पहाड़ी सरलाओं !


राजधानी में प्रदर्शनियां, गोष्ठियां


और राजनीति के मेले होते हैं  


और फिर, जिसका विश्वास थामें


तुमने मार्च किया था


राजघाट के उस पुरुष को


ये भाई लोग, टेबलेट की तरह


निगल  चुके हैं 


इसलिए दिल्ली जाना हो 


तो चाहे गाँधी जयंती ही क्यों न हो 


कविल्ठा की काली की तरह 


पहाड़ सा रूप धार लेना 


दुर्गा  की तरह  अपने अठारह हाथों में 


दरांती और कुल्हाड़े उठा लेना 


अपनी ओर बढ़ने वाले 


उन हाथों को काट फेंकना 


फाड़ खाना उन नर पिशाचों को 


पर हमसे कुछ उम्मीद मत रखना 


गन्ने के वे लाल खेत तक 


हमें रुला नहीं सके 


नपुंसकों के वे कुकर्म  तक 


हमें उबाल नहीं सके 


इतना करना 


अपनी कोख से फिर 


ऐसे मरे हुए मांसपिडों को 


जन्म मत देना 


या जन्म देते ही फेंक देना 


कंडाली के बिस्तरे पर 


ताकि आने वाली पीढ़ी की 


स्मृति में ठुँक जाये 


अपमान का यह भीषण दंश 


हमें क्षमा करना 


तो इस तरह करना ------