मानस में ज्योतिष


गोस्वामी तुलसीदास जी मानवमात्र को रामरस का पान कराना चाहते थे। जहां राम हैं वहां भारतीय दर्शन के पारदर्शी जीवन मूल्यों की स्थापना होगी ही। जन हृदय में श्रीराम की चेतना जगाने हेतु रामरस पान करवाना आवश्यक था। रामरस पान की क्षमता का श्रेष्ठ साधन था 'राम भक्ति'। जहां 'राम भगति चिन्तामनि सुन्दर' हृदय में बस गई वहां आत्मचेतना का स्वयंप्रकाश दीप्त होगा ही, जिसे काम, क्रोध, लोभादि की आंधी नहीं बुझा सकती और उनके लिये 'गरल सुधासम' हो जायेगी साथ ही 'व्यापहिं मानस रोग न भारी'।
गोस्वामी जी श्रीरामचरितमानस प्रणयन कर रामरस पिलाते हुये सकलजन रंजन करवाना चाहते थे। रामरस पान करते ही जन हृदय में जीवन मूल्यों की चेतना और विवेक की समझ अन्तःकरण में अवश्य आयेगी। 'नर' अपने मे रह,े नारायणत्व की पहचान कर सके। अधिभौतिक, अधिदैविक और आध्यात्मिक समस्याओं से बचाने की गुहार लगाने की अपेक्षा उन्हें अन्तःचेतना से स्वयं ही सुलझाने लगेगा। जिस प्रकार मानस के सभी पात्र एक ओर प्रेम, सेवा, त्याग, कर्तव्यपालन आदि से भरपूर हैं दूसरी ओर ईष्र्या, द्वेष, बैर आदि के कारण संघर्षरत हैं पर राम के व्यक्तित्व का आलोक अन्तःकरण में प्रवेश करते ही भक्तिभाव के साथ तमस से बाहर निकलते जाते हैं। भारतीय संस्कृति में सुगढ़ सामाजिक व्यवस्था हेतु गृहस्थाश्रम को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। विदेशी संस्कृति के कारण जब भारतीय सामाजिक व्यवस्था चरमराने लगी थी, तब मानस की आदर्श गृहस्थाश्रम व्यवस्था ने आस्था, त्याग और दायित्वबोध की पुनस्र्थापना की। भक्तिरस चेतना ने नीरसता को सरसता में परिणित कर डाला। 
गोस्वामी ने भारतीय लोकजीवन का गहन चिन्तन-मनन किया। लोकमानस में व्यापत जीवनलक्ष्मी श्रद्धा, विश्वास आदि मान्यताओं, शास्त्रीय विधान की अवधारणाओं के आधार पर रामकथा का निरूपण किया है। ज्योतिषशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र तथा शकुनशास्त्र भारतीय दैनिक जीवन के अंग हैं। सोलह संस्कार विधान ज्योतिष शास्त्रानुसार बने पंचांग के तिथि, बार, नक्षत्र, योग, करण राशि, संक्रांति और बेलाओं के शुभाशुभ को ध्यान में रख श्रेष्ठ मुहूर्त में सम्पन्न किये जाते हैं। स्वप्नशास्त्र एवं शकुन शास्त्र विषयक धारणायें अनुभवी व्यक्ति मार्ग दर्शनार्थ देते रहे हैं। तुलसीदास जी का उद्देश्य रामाभिमुख करने हेतु विविध शास्त्रों के ठोस संदर्भ प्राप्त करते हुये श्रद्धा और विश्वास की भूमिका का निर्माण किया है। ज्योतिष शास्त्रानुसार फलकथन में संहिता ग्रंथों का आधार लिया जाता है। भारतीय ज्योतिष ग्रंथ में भी श्री शंकर बालकृष्ण दीक्षित उद्बोधन में लिखते हैं-'सामान्यतः संहिता के दो अंग माने जाते हैं एक तो वह जिसमें ग्रहचर अर्थात नक्षत्र मंडल में ग्रहों के गमन और उनके परस्पर युद्धादि का धूमकेतु, उल्कापात और शकुनादि द्वारा संसार के शुभाशुभ फल का विवेचन रहता है और दूसरा वह जिसमें मुहूर्त अर्थात विवाह और यात्रादि कर्मों के शुभाशुभ फलप्रद समय का विचार रहता है'। रामचरित मानस में ज्योतिष शास्त्र की इसी भूमिका का निर्वाह आद्यन्त किया गया है। क्योंकि हमारे सभी शास्त्र जीवन दर्शन के व्यंजक हैं। ज्योतिष जितना ही सामुद्रिक, स्वप्न तथा शकुन शास्त्र जनमानस में लोकप्रिय रहे हैं। मानस में चारों शास्त्रों का निरूपण भारतीय वैज्ञानिक सोच को भी प्रतिपादित करता है। रामचरितमानस में ज्योतिष शास्त्र के संहिता स्कन्ध का प्रसंगानुकूल भारतीय जीवन के अभिन्न अंग के रूप में निरूपित किया गया है। कतिपय स्थलों पर ज्योतिष अवधारणाओं का प्रयोग मिथक के रूप में भी किया गया है। मानस के प्रारंभ में गुण-दोष निरूपण करते हुये सन्त और दुष्टों को प्रणाम करते हुये गोस्वामी जी लिखते हैं कि सन्त सर्वत्र कल्याण रूप हैं जबकि खल दूसरों के हित की हानि होने पर हर्षित होते हैं। इसी तथ्य को राहु के मिथक द्वारा व्यंजित किया है- हरिहर जस राकेस राहु से, पर अकाज भर सहसबाहु से।
अर्थात खल, विष्णु और हरि के यशस्वी पूर्णिमा के चन्द्रमा के लिये राहु के समान हैं। इसी प्रकार 'उदय केत सम' में केतु पुच्छल तारा हितनाशक के रूप में है। प्रत्येक मास के दो पक्ष होते हैं-शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष। शुक्लपक्ष में चन्द्रमा की कलायें बढ़ती जाती हैं और कृष्णपक्ष में घटती जाती हैं। इसी तथ्य को कवि ने सुयश और अपयश के रूप में चित्रित किया है। 'ससि सोषक पोषक समुझि जग जस अपजस दीन्ह' नवग्रह की वन्दना कवि ने 'बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउं कर जोरि' देवता, ब्राह्मण, पंडित के साथ सुंदर मनोरथ पूर्ण करने हेतु की है। राम वनगमन की स्थिति निर्माणार्थ सरस्वती के अयोध्या आगमन को अयोध्याकाण्ड में 'जनु ग्रह दसा दुसह दुखदाई'। इसी प्रकार केकैयी-मंथरा संवाद में मंथरा के लिये- 'अवध साढ़ साती तब बोली' आदि में ज्योतिष को मिथक के रूप में प्रयुक्त किया गया है। 'ग्रह ग्रहीत पुनि बात बस' में ज्योतिष लोकमान्यता दर्शक है। भरद्वाज मुनि और भरत मिलन पर मुनि कहते हैं-तुम तो मानो शरीरधारी श्रीराम के प्रेम रूप हो इसीलिये 'ग्रसीहि न कैकेयी करतबु राहु'। इसी प्रकार    'धु्रव विश्वासु' प्रयोग एवं उत्तरकाण्ड में रामराज्य में अयोध्या वर्णन में 'नवग्रह निकर अनीक बनाई' में ज्योतिष शास्त्र मिथकीय तथ्यों पर आधारित है। जिससे साहित्यिक गरिमा तो बढ़ती ही है साथ ही कवि का कथ्य सहजरूप से आत्मसात हो जाता है। बालकाण्ड के प्रारम्भ में 'सज्जन सकृत सिंधु सम कोई, देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई'...सज्जन सदा दूसरों का उत्कर्ष देख उल्लसित होते हैं जैसे पूर्ण चन्द्र को देख समुद्र बढ़ने लगता है। परशुराम-लक्ष्मण संवाद में परशुराम अकारण श्रीराम पर क्रोध करते हैं तब श्रीराम मन ही मन लोकोक्ति को कहते हैं-'बक्र चन्द्रमहि ग्रसइ न राहू' अर्थात कहीं-कहीं सीधापन भी दोष होता है। अन्यथा टेढ़े चन्द्र को राहु भी नहीं ग्रसता है। कुंभकरण बध के बाद युद्ध करने मेघनाद आता है और बाणों की वृष्टि करने लगता है-मानहुं मघा मेघ झरि लाई'...मानों मघा नामक नक्षत्र के बादलों ने बर्षा की झड़ी लगा दी हो। गोस्वामी तुलसीदास जी ने विशुद्ध कालगणनात्मक के रूप में रामचरितमानस की कथा का श्रीगणेश करते हुये लिखा है-
संबत सोरह सै एकतीसा, काउँ कथा हरि पद धर सीसा।
नौमी भौम बार मधुमासा, अवधपुरी यह चरित प्रकासा।।
अर्थात संवत 1631 और चैत्रमास की नवमी तिथि, मंगलवार को यह चरित प्रकाशित हुआ। मुनि याावल्क्य और भरद्वाज के बीच रामकथा संवाद से पूर्व 'माघ मकरगत रबि जब होई, तीरथपतहिं आव सब कोई' यानि माघ मास में जब सूर्य मकर राशि का संक्रमण करता है तब प्रयागराज त्रिवेणी संगम में स्नान का विशेष महत्व है। माघ मास और मकर राशि ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार सिद्ध हैं। शिवजी का सत्तासी हजार वर्ष तक समाधिस्थ होना, संदर्भ में-'बीते संबत सहस सतासी' में संवत की गणना, पर्वतराज हिमालय ने शिव-पार्वती विवाह आयोजन से पूर्व विवाह संस्कार में शुभ दिन, शुभ नक्षत्र, शुभ घड़ी और ज्योतिष गणित अनुसार शुभलग्न और मुहूर्त निर्धारित करवाने के बाद लग्नपत्रिका लिखी गई-
 सुदिनु सुनखतु सुधरी सोचाई, 
 वेगि बेदविधि लगन धराई।
सप्तर्षि लग्न पत्रिका लेकर गये और ब्रह्मा को दी। लग्नपत्रिकानुसार विवाह संस्कार सम्पन्न होता है। सीता स्वयंवर अन्तर्गत धनुषयज्ञ में भी विश्वामित्र जी 'समय सुभ जानी' के बाद ही प्रेम भरी वाणी में राम को आदेश देते हैं-
 उठहुं राम भंजहु भवचापा, 
 मेटहु तात जनक परितापा।
महाराजा दशरथ बारात लेकर लग्नपत्रिका अनुसार लग्न दिन से पहले आ जाने से जनकपुरी में आनंद छा गया। श्रीराम-सीता विवाह संसकार ज्योतिष शास्त्रानुसार-
 मंगल मूल लगन दिन आवा, 
 हिमरितु अगहनु मासु सुहावा।
 ग्रह तिथि नखतु जोगु बर बारू, 
 लगन सेधि विधि कीन्ह बिचारू।
अर्थात ब्रह्मा जी ने स्वयं हेमन्त ऋतु, अगहन मास, ग्रह, तिथि, योग,नक्षत्र और बार श्रेष्ठ शोधकर मुहूर्त निकाला और नारद जी द्वारा महाराज जनक के पास लग्नपत्रिका भिजवाई। महाराजा जनक के ज्योतिषों ने भी वही शुभ मुहूर्त गणना कर रखी थी-'गुनी जनक के गनकन्ह जोई' अर्थात ज्योतिष शास्त्र के तीन स्कन्धों में सिद्धान्त (गणित) स्कन्धानुसार गणित परिशुद्ध थी। बेलाओं में गोधूलि को ग्रहण कर बारात का स्वागत किया गया। इसी प्रकार कन्या विदाई के अवसर पर महाराजा जनक ने 'जानि सुलगन' अर्थात शुभ मुहूर्त जान कर 'कुंअरि चढ़ाई पालकिन्ह सुमिरे सिद्धि गनेस' अयोध्यागमन पर विवाहोत्सव पूर्ण होने पर 'सुदिन सेधि कल कंकन छोरे'-शुभ मुहूर्त में विवाह पूर्व बांधे गये कंकण खोल दिये गये।
अयोध्याकाण्ड में महाराजा दशरथ कानों के पास श्वेत केश देख उन्हें बुढ़ापा उपदेश देने लगा-'नृप जुबराजु राम कहुं रेहू' विचार आते ही 'सुदिन सुअवसर पाइ' गुरू वशिष्ठ से निवेदन किया 'नाथ रामु करिअहिं जुबराज' सुनते ही मुनि प्रसन्न हो गये और कहते हैं कि अब विलम्ब न करें-सुदिनु सुमंगलु तबहिं जब राम होहिं जुबराजु' दूसरी ओर अवध साढ़ेसाती मंथरा, रानी कैकेई को भ्रमित करते हुये कहती है-
 पूंछेउँ गुनिन्ह रेख तिन्ह खींची, 
 भरत भुआल होहिं यह सांची।
अर्थात मैंने ज्यातिषों से गणित करवाई तो उन्होंने बताया कि भरत राजा होंगे। चित्रकूट से श्रीराम की पादुका प्राप्त कर गुरू वसिष्ठ का आशीर्वाद पाकर ज्योतिषों को बुलाया और शुभ घड़ी में पादुकाओं को सिंहासन में विराजमान किया-'सिंघसनु प्रभु पादुका बैठारे निरूपधि' राम के वनवास से अयोध्यागमन के बाद वसिष्ठ ने ब्राह्मणों को बुला लिया और कहा-'हरषि देहु अनुसासनु' क्योंकि 'आजु सुधरी सुदिन समुदाई' आज शुभ घड़ी है, जिससे राम सिंहासन आरूढ़ हों। 
मानस का प्रतिपाद्य आदर्श श्रीराम है न कि ज्योतिष शास्त्र। कवि कहता है कि श्रीराम के मात्र नाम स्मरण से भांग (निकृष्ट) जैसा तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया-
 नामु राम को कलपतरू, 
 कलि कल्यान निवासु
 जो सुमिरत भयो भांग ते, 
 तुलसी तुलसीदासु।
मानस में श्रीराम भारतीय जीवन दर्शन के संवाहक हैं, ज्योतिष शास्त्र  एवं अन्य शास्त्र भारतीय ज्ञान साधना के बोधक है, जिनकी आधार भूमि भारतीय जीवन दर्शन है। मानस में ज्योतिष लोकमानस का द्योतक है, गन्तव्य श्रीराम हैं।