विजयी समाज का प्रकाशोत्सव


अन्धकार एक भय है, प्रकाश उस भय को भगाता है। भय की अनुपस्थिति ही आनंद है, आनंद उत्स की ओर ले जाता है। अमावस की घनी अंधेरी रात में मनाया जाने वाला यह प्रकाशोत्सव, सभ्यता के उस कालखण्ड की स्मृति है, जब अग्नि को अपने नियन्त्रण में लेकर मानव ने अपनी समूची जीवनचर्या में क्रान्ति की। अपने आवास को आलोक से भरा, झंझावत और ठिठुरन उसके लिये जब समस्या नहीं रहे/अग्नि का प्रकाश एक अप्रत्याशित रात्रि प्रहरी बनकर मनुष्य के जीवन को दुर्भेद्य सुरक्षा दे गया।
दीपावली के साथ कई कथानक जुड़े हैं । प्रत्येक पंथ और मतावलंबियों ने अपनी-अपनी कथाओं-गल्पों की टार्च में दीपावली को अपने श्रेष्ठ चिन्तन का फलित बताने की चेष्टा की है। परन्तु मुख्य रूप से हमारे अवचेतन मस्तिष्क में बैठा अन्धकार का भय, हिंसक जानवरों की दहाड़ों में जीवन को बचाने का उद्यम...उसी करोड़ों वर्ष पुरानी स्मृति के कारण हम आज भी अन्धकार से भय खाते हैं, और प्रकाश के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। इसी कारण प्रकाश उत्सव अनेक रूपों में दुनिया भर में मनाये जाते हैं।
वेदों में सूर्य की जैसी महिमा गाई गई है, वह अकारण नहीं है। क्योंकि सूर्य, प्रकाश और ऊर्जा का स्रोत है, वह प्रत्यक्ष देवता है...सूर्याेपासना हमारा दैनिक उत्सव है। अग्नि ने हमारी रात्रियों को प्रकाश से भरा, इसीलिए सविता के बाद अग्नि ही हमारे सर्वाधिक प्रतिष्ठित देवता रहे हैं। चक्र के अविष्कार ने मानव-समूहों को गति और सनातनता की प्रवृत्ति दी। 'समय' की महिमा अंकित की गई, उसे व्रत उपवासों, त्यौहारों से मंडित किया गया। यहीं पर मानव ने शेष जन्तु जगत से बाहर छलांग लगायी। अपने ज्ञान, उद्यम और अनुभव से रोमांचित समाज ने नृत्य आयोजित किये। 'समय' की सारंगी पर उसने परमसत्ता के आशीर्वाद सुने। प्रकृति  के इन्द्रधनुषी रूप को उसने सृजन का प्रथम सोपान बनाया।
आज का कम्प्यूटरीकृत समाज शक्तिशाली होने का ढोंग करता है। धन के धमाल करते हुए इन शुभ अवसरों को 'धन प्रदर्शन' में बदलता है। व्यापारी वर्ग की अखिल सत्ता के कारण यह प्रकाशोत्सव, लक्ष्मी को श्याम करता हुआ बिक्री-बट्टे के त्यौहार में बदलता चला गया है। टीवी के पर्दे, पत्र-पत्रिकाओं में 'छूट-लूट' के वणिक संग्राम होते हैं। भोजन भट्टों, जुआरियों, पिओंड़ों की तामस दुनियां का लुगदी प्रदर्शन अलग परिभाषायें गढ़ता है। कुछ मनीषियों ने पंक्तिबद्ध दीप जलाकर क्रमिक मगर सतत् भक्ति के मानक गढ़े होंगे। आज के 'विद्वान' लोग अपने बटुवे से संस्कृति में विस्फोट करते हैं। समय और समाज को फूलझड़ी समझ बच्चों की तरह किलकारियां भरते हैं। परन्तु यही तो संसार है...विचार और उत्सव को स-शरीर इसी जनता के बीच से होकर गुजरना पड़ता है। इस खिचड़ी-टाइप पंचमेल दुनिया में दो-तार की चाशनी का यह 'माडर्न' लड्डू ऐसे ही खाना पड़ेगा...तभी 'अवसर' मीठे हो सकते हैं।
दीपावली का गढ़वालीकरण बड़ा रोचक है। जब बिजली नहीं थी तो चीड़ की ज्वलनशील लकड़ी जिन्हें 'भैला' कहा जाता था, यही छिल्लक हमारे दीप हुआ करते थे जिन्हें 'मशाल' की तरह जलाकर 'भैला-बगोली, कांडा जगोली' के नारे लगाते थे...अर्थात् बग्वाल (दीपावली) की जलती मशाल मेले, कौथीग और नदी-स्नानों का इन्तजार है, उनका आह्वान है। क्योंकि दीपावली के पश्चात पहाड़ों में क्षेत्रीय मेलों की झड़ी लग जाती है। स्वाले-पकोड़े एवं हलुवा आदि मिष्ठानों का परिवारों के बीच लेन-देन दीपावली के दूसरे दिन चलता है। खील-बतासे, पटाखे, मोमबत्तियाँ सड़कों द्वारा पहाड़ों तक पहुँची है। पहाड़ों की बग्वाल भी लिपिस्टिक लगाकर 'हैप्पी दीपावली' हो गयी है।
हमें अन्धकार का स्मरण रखना है, वह प्रकाश का प्रतिलोम होने के कारण दीप जलाने की 'जगह' बनाता है। 'दीप' भारतीयता का प्रज्वलित शुभंकर है। पश्चिम की तरह हम जीवन को 'अच्छे बुरे' का संघर्ष मात्र नहीं मानते। हमारे राम अहंकारी रावण का वध करने के पश्चात् उसके ज्ञान, उसकी भक्ति को नमस्कार भी करते हैं। वे अपने भाई को उस रावण के पास शिक्षा लेने के लिये भेजते हैं जिसने बुद्धिभेद के कारण सीताहरण का अपयश लिया और सर्वनाश को प्राप्त हुआ...परन्तु उसी अन्धकार में भगवान राम को ऐसा प्रकाश भी दिखा, जिसे वे बुझता हुआ नहीं देखना चाहते थे।
दीपावली हमारी स्वर्णिम समृतियों का उत्सव है, संचित ज्ञान का घनीभूत प्रकाश है। श्री, समृद्धि और विजय का आलोक है। प्रत्येक दीप व्यक्ति के उत्स की बात करते हुए समष्टि का ही श्रृंगार रचता है। सामुहिकता के साथ भी प्रत्येक व्यक्ति में हमारी निष्ठा और प्रत्येक नागरिक के अस्तित्व की स्वीकृति ही भारतीय त्यौहारों का दर्शन रहा है। मैं तो इसी विचार को दीपावली का देवता मानता हूँ/ मोमबत्ती जलाते हुए अन्धेरे के विरूद्ध युद्ध में अपने हिस्से की लड़ाई लड़ता हूँ, दीपावली इन्हीं व्यक्तिगत संघर्षांे में विजय-प्राप्ति की सामुहिक हुँकारें हैं...सामाजिकता की प्रकाशित लड़ियां हैं।