अथ सिलेण्डर कथा (व्यंग्य )


गजेसिंह दिदा माथे से बार बार पसीने की बंूदें साफ कर रहा था, खास बात तो यह कि ठंड भरे दिनों में भी माथे से पसीना बहना इस बात की तरफ साफ तस्दीक कर रहा था कि जरूर बात कुछ विकट है। गजे दिदा सुबह छः बजे ही लाईन में खड़ा हो गया था, किसी ने उसे गत रात्रि को बताया था कि कल बहुप्रतीक्षित गैस आने वाली है। बामुश्किल नींद के एक दो हिचकोलों के साथ ही क्षणिक आ रहे स्वप्नों में भी दिदा ने गैस के सिलेण्डर ही देखे। बौ यशोदा ने सुबह बताया कि अभी शायद उनके सिलेण्डर में थोड़ी गैस बची है, हो सकता है कि सप्ताह का टाइम कट जाये। लेकिन दिदा कहां मानने वाला था, तीन माह बाद तो बामुश्किल उसके गांव में गैस आ रही थी, इस हसीन तरीन मौके को भला दिदा कहां छोड़ने वाला था, उसने यशोदा की ओर आंखे तरेरी और बिना कुछ अन्न जल ग्रहण किये स्यां सिलेण्डर को चूल्हे से अलग करके कंधे में रख दिया, और पैर पटककर निर्धारित स्थान की ओर चल पड़ा। इधर  यशोदा ने   अधपकी रोटी खायी, साथ ही बच्चों को बिस्कुट देकर विद्यालय की ओर विदा किया। प्रातः छः बजे गजे दिदा गैस आवंटन वाली जगह पर आ गया। यह देखकर उसके पसीने छूट गये कि उससे पहले तो वहां सिलेण्डर तथा सैकड़ांे लोगों का कौथीग लगा था, इसका मतलब कि लोग प्रातः चार बजे ही वहां पहुंच गये। गजेसिंह ने सिलेण्डर नीचे रखा और चुपचाप लाईन में खड़ा हो गया। खास बात तो यह कि अभी तक गैस का वाहन पहुंचा ही नहीं था। गजेसिंह ने कंधे पर रखे साफे से मंुह पांेछा, पूछने पर पता चला कि शायद नौ बजे तक ही गैस के दीदार हो सकेेंगे। वहां के परिदृश्य से साफ लग रहा था, कि जैसे नयी नवेली दुल्हन को देखने के लिये गांव वाले लोग बेसब्री से ंइतजार करते हैं, बिल्कुल वैसा ही कुछ दृश्य इस वक्त इस स्थान पर था। 
इधर धक्का-मुक्की करके कोई व्यक्ति गजेसिंह दिदा के आगे जबरदस्ती घुसने लगा, तो दिदा की मुठ्यिां भींचने लगी, उसने व्यक्ति को जोर से धक्का दिया। वो कुछ संभल पाता इससे पहले उस व्यक्ति की पत्नी ने गजेसिंह के गाल पर जोरदार तमाचा जड़ दिया। और रह रहकर उसे गालियां बकने लगी। गजेसिंह का दिल तो किया किया कि लाईन से  निकलकर उस बदतमीज किस्म की औरत पर दो दमदार घूंसे जड़े, लेकिन लाईन से हटने का मतबल था कि लगभग दो से तीन घंटे की देरी होनी। दिदा ने जहर के घंूट पी लिये, लेकिन उस औरत की तस्वीर को उसने अपने मन मस्तिष्क में फिट बिठा दिया। कहीं मिलेगी तो अच्छी खबर लूंगा। 
इस बीच गैस मालिक ने एक महिला की दो पर्चियां काट दी, तो सबकी त्यौरियां चढ़ गयी, भला एक औरत दो दो सिलेण्डर भर दे, उसकी ये जुर्रत...वो भी सबके सामने..शंखनाद हो गया...महाभारत का रण प्रारम्भ हो गया, लोग वाहन के अंदर तक घुस गये और मालिक का गिरेबान तक थाम दिया। हो हल्ला मच गया...इस बीच किसी ने चुपचाप पुलिस को फोन कर दिया, दो पुलिस कर्मी बावर्दी आ गये, उनके हाथों में डंडा था, लेकिन बिना किसी को धमकाये वे चुपचाप एक किनारे बैठ गये। सभी चुप थे...पुलिस की कार्यशैली पर सभी को यही विश्वास था कि ये कुछ करेंगे नहीं, न जाने गजेसिंह दिदा को क्या सूझी कि चिल्ला पड़ा...अरे साब तुम्हारे सामने यह बत्तमीजी चल रही है, और तुम तमाशबीन की तरह खामोश बैठे हो, भैया कुछ करो..शायद यह बात पुलिसकर्मियों को नागवार गुजरी और तमतमाते हुये बत्तीसी दिखा रहे गजे दिदा के चूतड़ांे पर दो जमा दिये, वो विफर पड़ा...अच्छा एक तो भीड़ को शांत नहीं कर रहे हैं उपर से मुझे धमका रहे हो? ...तुम्हारे बड़े साब से अभी बात करता हूं..कहकर गजेसिंह अपने जेब से मोबाइल निकालने लगा लेकिन धक्का-मुक्की में उसका फोन हाथ से छिटककर सड़क पर जा गिरा, वो तत्काल उसे लपकता...उसी क्षण जब मोटे व्यक्ति के पैरो के नीचे आकर मोबाइल दो टुकड़ेा में बंट गया। गजे दिदा हैरान परेशान हो गया, उसने मोटे व्यक्ति को भददी सी गाली दी, लेकिन लाईन तोड़ने की जहमत नहीं की, अब एक हाथ में सिलेण्डर तो दूसरे हाथ में पासबुक थी, इस बार जरूर गजे दिदा को ब्रह्मा जी की याद आ रही थी, कि काश उनके भी चार हाथ होते। एक दो व्यक्तियों के पैरांे के नीचे आकर मोबाइल बिखर गया, दिदा कभी मोबाइल तो कभी सिलेण्डर को देख रहा था, हांलाकि उसने कई बार लोगो से मोबाइल उठाने के लिये बोला भी लेकिन सभी मूकदर्शक बने थे, आखिरकार दस मिनट की धमाचैकड़ी के बाद किसी सज्जन ने खंड-खंड विखंड पड़े टुकड़ो को सहेजकर उसे दिदा के जेब में ठूंस दिया। एक लम्बी सांस लेकर दिदा ने पसीना पोंछते हुये उस सज्जन को अश्रुमय नेत्रों से धन्यवाद दिया। अब एक उधेड़बुन ये भी थी कि इसे ठीक करने में कितना वक्त लगता है या फिर कितने पैसे। इधर समय तेजी से गुजर रहा था, भीड़ की बत्तमीजी देखकर गैस मालिक ने गैस बांटनी बंद कर दी। गुस्से के शांत होते ही ग्रामीणों द्वारा बामुश्किल माफी मांगी गयी तब जाकर पूरे दो घंटे बाद गैस पुनः बंटने लगी। शाम ढलने लगी थी, गजेदिदा अपने आगे खड़े लोगों की संख्या गिनने लगा, बस...अब केवल दस आदमी...उसके बाद मेरा नम्बर है। अन्त में सिलेण्डर हाथ से खिसकाते हुये गजेदिदा वाहन के दरवाजे के समीप आ गया और उसके हाथ में ंपासबुक थमाने लगा..दो मिनट गुजर गये लेकिन वाहन में बैठे कैशियर ने ना ही पासबुक ही पकड़ी ना ही गजेदिदा को तरजीह दी...। 
क्या हुआ भाई! सुबह से पैर दर्द करने लगे हैं कमर में अकड़ पड़ गयी है, अब तनिक भी खड़ा नही रहा जाता...ये लो गैस बुक और दे दे भाई गैस...कहकर वो एकटक कैशियर को देखने लगा। तब तक एक आदमी उसके समीप आया और कैशियर के कान में कुछ बुदबुदाया...पुनः कैशियर ने कहा कि 'जरा परे हट जाओ...अब क्या सिर पर चढ़ोगे? गैस समाप्त हो गयी है' कह के वो वाहन से बाहर आ गया। गजेदिदा रोने लगा, इतनी मशक्कत के बाद बामुश्किल ही  दरवाजे तक पहंुच पाया था, लेकिन गैस समाप्त हो गयी...वो धम्म से वहीं बैठ गया। उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे। भीड़ तितर-बितर हो गयी। वहां पर महज चार लोग ही रह गये। अचानक गैस मालिक चिल्ला उठा...एक सिलेण्डर बचा है, किसे दूं। मुझे-मुझे...कहकर चारों चिल्ला पड़े। भैया एक सिलेण्डर और आदमी चार...कैसे इंसाफ होगा साम्भा..! गैस मालिक शोले कट में चिल्ला पड़ा। 
भाई मैं सुबह से लाईन में खड़ा हूं...गजेदिदा ने बोलना चाहा। सुनकर बाकी तीन कहने लगे...तो क्या हम आसमान से टपके हैं। एक हजार में सिंलेण्डर छोड़ दो...गजेदिदा विजयी मुस्कान विखेरते बोला।......बारह सौ-दूसरा चिल्ला उठा।.....तेरह सौ-तीसरा कहां कम था,.....गजेसिंह की ईज्जत तार-तार होने वाली थी, अब घर कौन सा मुंह लेकर जाउंगा। वो बिना एक पल गंवाये बोला-पन्द्रह सौ रूपये। 
बोली सम्पन्न हुयी और सिलेण्डर गजेसिंह को मिल गया। सिलेण्डर उठाते ही वो चीखने लगा। पन्द्रह सौ रूपये भी दिये और इसमें तो गैस बिल्कुल कम है...नहीं चाहिये। कहकर उसने सिलेण्डर वहीं छोड़ दिया। भाई अब तो रखना ही पड़ेगा, ये तो कोई बात नहीं हुयी...चल कोई बात नहीं दो माह बाद मुलाकात होगी...हम किसी और को दे देंगे। भाई हम तो सोच रहे थे कि बिचारा इस उम्र में सुबह से लाईन में खड़ा है इसी को देंगे लेकिन तुम्हारी इच्छा ही नहीं है तो...कहकर मालिक सिलेण्डर को अंदर रखने लगा कि वे तीन व्यक्ति सिलेण्डर पर झपट पड़े। गजेसिंह समझ गया कि इतनी मेहनत के बाद सिलेण्डर हाथ आया था, ये मौका भी चूक जायेगा। उसने तुरन्त सिलेण्डर पकड़ा। मुंह पर आये पसीने को साफे से साफ किया। और विजयी मुद्रा में घर की ओर चल पड़ा। सिलेण्डर कंधे पर रखकर गजेसिंह यूं समझ रहा था कि मानो उसे मुख्यमंत्री का ताज मिल गया हो...इस वक्त उसे ना तो अपने टूटे मोबाइल की थी, ना ही पुलिसिया डंडो तथा महिला के तमाचे की...उसे सिलेण्डर जो प्राप्त हो गया था। घर की दहलीज पर पैर रखते ही वो चिल्ला पड़ा मैं जीत गया हूं प्रिये....मैं जंीत गया हूं।