कर्मण्येवाधिकारस्ते 


दिन भर/ सुबह से रात तक
कुछ न कुछ करती ही रहती हो
करड़-बरड़, करड़-बरड़
ऊफ..! तुम्हारे भाग्य में
चैन नहीं लिखा है शायद
'आराम हराम है' की
जीती जागती मूरत हो तुम
पूर्णतः
कर्मण्येवाधिकारस्ते 
मां फलेषु...को
आत्मसात हो चुकी हो तुम
उस चातकी के मानिन्द
जो सिर्फ
स्वाति बूंद के लिये ही
'पिहु-पिहु' की रट को
समर्पित कर चुकी हो प्राण...!
प्राण...!
अपनी आत्माराधना के 
अतिरिक्त/ मैं तुम्हें
कहां गा सकता हूँ
कहां पा सकता हूँ
कहां जा सकता हूँ तुम्हें छोड़कर
जैसे कि-
तुम्हारा 'कर्मण्येवाधिकारस्ते...'