बेटी कैसे बचाएँ


किसी भी देश के विकास के लिए वहां की स्वास्थ्य एवं शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है। शिक्षा के क्षेत्र में हम आगे बढ़ रहे हैं। शिक्षक अधिकार अधिनियम शिक्षा के क्षेत्र में मील का पत्थर सि( हो रहा है। शिक्षित होने के साथ ही स्वास्थ्य के प्रति भी समाज में जागरूकता आ रही है। अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करना देश की सरकार का कर्तव्य होता है। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र सारी सुविधाओं से युक्त होने चाहिए, जिससे गांवों में भी सबको स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकंे। विशेषकर गर्भवती स्त्रियों को। कहते हैं बच्चा भावी समाज का निर्माता होता है। उसे जन्म देने वाली भी स्वस्थ हो, यह भी जरूरी है। इसके लिए गर्भावस्था से ही देखभाल की आवश्यकता है। गर्भवती स्त्रियों के लिए सरकार ने अनेक कार्यक्रम चलाए हैं, सुरक्षित प्रसव हेतु प्रत्येक स्वास्थ्य केन्द्र में मुफ्त चिकित्सा की व्यवस्था है। खुशियों की सवारी एंेम्बुलेन्स के साथ-साथ आशा कार्यकर्ती की नियुक्ति की गयी है। प्रसव के बाद उसके प्रोत्साहन के लिए प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। परन्तु इन सबके बावजूद भी अक्सर अखबारों में गर्भवती स्त्री की एम्बुलेन्स न मिलने पर रास्ते में मौत...आदि खबरें पढ़ने को मिल रही हंै। हाल में ही रूद्रप्रयाग जनपद में गर्भवती को ऐम्बुलेस न मिलने पर बस से अस्पताल जाते हुए रास्ते में ही प्रसव पीड़ा होने लगी, बस चालक-परिचालक ने अस्पताल ले जाने के स्थान पर उसे सड़क पर ही उतार दिया। वहीं पर प्रसव होने से नवजात की मौत हो गयी।  मसूरी में भी स्वास्थ्य केन्द्र में ताला लगा होने पर महिला ने बाहर ही बच्चे को जन्म दे दिया। इस प्रकार की घटना अत्यधिक शर्मनाक हंै। रूद्रप्रयाग में घटित घटना के लिए सरकारी तन्त्र ही जिम्मेदार नहीं है वरन हम उससे भी ज्यादा जिम्म्ेदार हैं। यदि बस में सवार इन्सान अपनी मानवीयता निभाते और उस गर्भवती को प्रसव पीड़ा होने पर बस को अस्पताल ले जाते तो शायद आज वह बच्चा हमारे बीच जीवित होता। यह हमारी मानवीय संवेदनाओं के तार-तार होने का प्रमाण है। समाज पढ़-लिख तो रहा है पर वह शिक्षित नहीं हो रहा है। हमारे नैतिक मूल्य दिन प्रतिदिन साथ छोड़ रहे हैं, या उन्हंे हम छोड़ रहे हैं। चाहे केन्द्र हो या राज्य, लाख दावे करते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के दावे ऐसी घटनाओं सेे खोखले साबित हो रहे हंै। क्या आशा कार्यकर्ती नहीं बुलाई गयी? अगर हां, तो वह कहां थी? खुशियों की सवारी ;ऐम्बुलेन्सद्ध को फोन करने के बाद भी नहीं आई, आखिर कारण क्या था? यह भी विचारणीय प्रश्न है। सुरक्षित प्रसव के लिए स्वास्थ्य केन्द्र की भी जिम्मेदारी तय करनी चाहिए। स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ हर स्वास्थ्य केन्द्र में अवश्य नियुक्त होने चाहिए। सुरक्षित प्रसव के लिए बनी योजनाओं को बनाकर खानापूर्ति न करके उन्हें धरातल पर भी उतारना होगा, तभी हम गर्भवती और नवजात को बचा सकते हैं। इसके साथ ही हमें भी अपनी मानवीयता को भी स्वयं जिन्दा रखना होगा, तभी हम स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते हैं।