फीके हो जाते
सारे रिश्ते-नाते
कुर्सी को पाते।
पहले गले
बाद जीत जाने के
पैरों के तले।
घोषणा पत्र
जनता बहकाने
को षडयंत्र।
कुर्सी का नशा
इस कदर चढ़ा
हुयी दुर्दशा।
पक्ष-विपक्ष
राजनीतिक अक्ष
देखे समक्ष।
वाह री रीति
करते राजनीति
बगैर नीति
दल बदल
कभी रूप बदल
जनता छल
आम सा बोल
चूसता खास, आम
जैसा आम को