हमारी बेटियां


हमारी बेटियां
घर को सहेजती-समेटती
एक-एक चीज का हिसाब रखती
मम्ी की दवा तो
पापा का आॅफिस
भैया का स्कूल
और न जान ेक्या-क्या।


इन सबके बीच तलाशती
है अपना भी वजूद
बिखेरती है अपनी खुशबू
चाहरदीवारी के पार भी
पराये घर जाकर
बना लेती है उसे भी अपना
बिखेरती है खुशियां
किलकारियों की गूँज की


हमारी बेटियां
सिर्फ बेटियां नहीं होतीं
वो घर की लक्ष्मी
और आंगन की तुलसी है
मायके मंे आंचल का फूल
तो ससुराल में 
वटवृक्ष होती है
हमारी बेटियाँ...