इंद्रधनुष (ग़ज़ल )


ये चिराग बेबसी ने जलाया होगा
किसी ने अमावस में, जुगनू को बुलाया होगा


तुम्हारे मुस्कराने भर से कई अरमान सज गये
तुमने गुनगुनाया यूं ही, और सितार बज गये


आज तलक उनको आखें से कहना नहीं आया
नदिया के किनारे घर था 'बहना' नहीं आया


समुन्दर के किनारे मैं खुद को लूट जाता हूँ
नदी गुजर जाती है मैं प्यासा छूट जाता हूँ


इसकी आंखों में रवि ही होगा
पगलट सा ये कवि ही होगा


पत्तों की अदाओं के हम कायल हो गये
हमनें देखा भी नहीं और वो घायल हो गये


चींटी की हर अदा में ये सबक होता है
जीना ही नहीं, जीतना भी जरूरी होता है