कांग्रेस के रक्तबीज

क्या भारत कांग्रेस मुक्त हो सकेगा? अभी तीन प्रदेशों के चुनाव परिणामों को देखकर तो ऐसा नहीं लगता। क्योंकि कांग्रेस कोई राजनीतिक दल नहीं, एक मानसिकता है। जब भी इस मानसिकता के अस्तित्व पर कोई संकट खड़ा होता है, कई संगठन, कई राजनीतिक दल, सामी विचारधारा...पूरी बिरादरी कांग्रेस की पतवार संभालने के लिये प्रकट हो जाती है। अवार्ड वापसी वाले, असहिष्णुता गैंग, कवि-नाटककार, फिल्म के भड़ुओं से लेकर ठेली वाले तक इस कांग्रेसी मानसिकता के वकील बनकर विधवा विलाप शुरू कर देते हैं। सोशल मीडिया से लेकर ईवीएम तक वे इस दलदल के पक्ष में एकजुट हो जाते हैं। नेहरू परिवार के नेतृत्व में इस मानसिकता को तैयार करने में सत्तर सालों का परिश्रम लगा है। इस कौरव सेना की पहचान करना जितना सरल है, इनसे लड़ना उतना ही कठिन। उस रक्तबीज दानव की तरह जिसकी प्रत्येक बूंद से नया दानव पैदा हो जाता था, एक दानव ने पूरी देवसेना को वर्षाें नचाया, अकेला मोदी क्या कर लेगा...तब, जब कि रक्तबीज करोंड़ों में हैं। वे रोडवेज की बसों में सब्जियों का धंधा कर सरकार पर प्रतिदिन लाखों का चूना लगाते हैं, पर धंधे के कारण ड्राइवर और कंडक्टर, दो नये कांग्रेसी तैयार होकर फर्जी टिकट काटते हैं, अवैध रास्तों पर चलते हैं, सदर बाजार से चोरी का माल ढ़ोने वाले छोटे व्यापारियों को गाड़ी के बोनेट में छुपाते हैं और इस तरह उन्हें भी कांग्रेसी बनाते हैं...यह शृंखला पूरे देश में फैली है। इसलिये कांग्रेस का सूरज कभी अस्त नहीं होता। यही वे लोग हैं जो ट्रेन के शीशे उतारते हैं, कम्बल चोरी करते हैं और फिर फेसबुक में मोदी को गाली देते हैं। पेट्रोल में टांका मारने वाले, नकली बिल बनाने वाले, कहां नहीं है कांग्रेस? वकील और न्यायाधीशों का संजाल लोगों को न्याय नहीं दिलाने देता...तारीख पर तारीख, कांग्रेस का ही नारा है। वोट का धंधा करने के लिये वे बंग्लादेशियों का निर्यात करते हैं, धर्मनिरपेक्षिता के नारे को देश से बड़ा बनाने वाले ये तमाम लोग, इनके लिये देश से बड़ी कांग्रेस पार्टी है। रक्षा सौदों की दलाली, तस्करी, दो नम्बर का पैसा, जमीनों का गोरखधंधा, इन सबके लिये कांग्रेस का सत्ता में होना जरूरी है। जो किसानी को बदनाम करके कर्ज को ही व्यवसाय बना देते हैं, उनका हीरो कमलनाथ ही हो सकता है। जिन्हें सीमा पार के कुचक्रों को हवा देनी है, उनके लिये गहलौत और कैप्टन जैसे लोग चाहिये। उन्हें वामपंथियों, नक्सलियों और आतंकियों का संयुक्त चीनी उद्यम चलाना है, तो कांग्रेस चाहिये। डा. रमन ने सैकड़ों रक्तबीज ठोके तो करोड़ों रक्तबीज ईवीएम तक पहुंच गये। आॅफिसों की आॅनलाइन कार्यप्रणाली से अफसरों का धंधा चैपट हुआ, सचिवालय वीरान हो गये, तो लोकतंत्र के खंभों में छिपे राक्षस कांग्रेस की सत्ता वापसी मुहिम में जुट गये। उन्हें सुधरना नहीं है, उन्हें कांग्रेसी ही बने रहना हैं। दलाल, माफिया, टैक्सचोर, शहरी नक्सली, फिल्म के भड़वे...सबको अपने आंगन की रोशनी को चकाचक रखने के लिये कांग्रेस की पावर चाहिये। एन्टी इनकंम्बैक्सी जैसा कुछ नहीं होता, जिन लोगों को व्यक्तिगत हित राष्ट्रहित से ऊपर लगते हैं, जिन्हें देश के कानून खीसे के बटन लगते हैं...वे सब लोग कांग्रेस के स्वयंभू कार्यकर्ता हैं। मदरसे, चर्च कांग्रेस की शक्तिपीठें हैं, हम भी खायें, तुम भी खाओ...देश किसने देखा है। देश कल ईरान से वर्मा तक था,  देश पता नहीं कितना बचेगा, और खुदवाद को बचाना है तो कांग्रेस को बचा लो। कांग्रेस यदि राजनीति में फिर चल निकली तो वामपंथियों के एनजीओ फिर गुलजार हो जायेंगे। अर्थव्यवस्था हवाला के हवाले होगी, फिल्मी भड़वे भारत की संस्कृति को टके-टके के लिये नचायेंगे, यही तो है कांग्रेस का भाईचारा, उनकी गंगा-जमुनी संस्कृति। जब हजारों साल पुराना दार्शनिक, सामाजिक, धार्मिक चिंतन चपरासी बनकर कांग्रेसी मंत्रियों की जूठी ट्रे उठाता है, और आतंकियों के लिये जब पूरा खद्दरधारी कुनबा छाती कूटता है, तब भारत धर्मनिरपेक्ष हो जाता है। जब सत्यनिष्ठ और पारदर्शी व्यवस्था सुलभ शौचालय बन जाये, समझ लो कांग्रेसी फिर सत्ता में आ गये हैं। मात्र राहुल का मजाक क्या उड़ाना...राजनीति की फसल को खाने वाले सांड संसद से सड़क तक फैले हैं, नैतिकता और वर्जनाओं की बाड़ तोडने वाले हमारे ही पड़ोसी तो हैं। संघ का प्रयास था कि राजनीतिक समाज को सत्ता में प्रवेश से पहले संस्कृत किया जाये तो संसद में भद्रजन पहुंचेंगे। पर कांग्रेस ने भाजपाईयों को भी कांग्रेसी बना डाला, अब संघ क्या कर लेगा? कांग्रेस एक बीमारी है, ऐसी राजनीतिक महामारी है कि यदि समय रहते इस कांग्रेसी बीमारी का कोई वैक्सीन तैयार न हुआ तो पूरा राजनीतिक समाज इस संक्रमण की चपेट में होगा।