खण्डहर हुआ अतीत


वर्षों के अंतराल बाद
जब मैं/महानगर से
उपलब्धियों की गठड़ी बाँध
एकाएक पहुँचूँगा/अपने बचपन के गाँव
चौक में/उग आई होगी
दूब के साथ-साथ
जंगली घास की/कई-कई किस्में
खंडहर हुए/भवन के टूटे कमरे
सुनाएंगे एक साथ/अपनी कई-कई दास्तानें
मैं काई लगे/पत्थरों में टटोलूंगा
दिवंगत पिता के/अनुभवों की अनुगूंज
या फिर मां की/प्रेरणा भरी कहानियों के
वीर व साहसी पात्र
खंडहर हुए घर का/एक-एक पत्थर (पठाल)
ताकता रहेगा आकाश/जिसे बूढ़े पिता ने 
कंधे छिल-छिल कर/ला लाकर तराशा था
अपनी भावी संतानों के लिए
खंडहर की बढ़ी हुई घास से/एकाएक
बोल उठेगी मां की/चिथड़े/चिथड़े हुई/गूदड़ी
'मेरे गुदड़ी के लाल'
क्या इसीलिए/झेले थे मैंने व तेरे पिता ने
पहाड़ से भी भारी भरकम कष्ट? कि एक दिन
यूं ही छोड़ चल दोगे/तुम हमारे
खून-पसीने की मेहनत को
हम तब से कर रहे हैं वास/दो-दो शमशानों में
एक जहाँ तुमने हमें छोड़ा था
और दूसरा/वह कभी का मंदिर सा घर
जो आज/बदतर है शमशान से भी
बोलो...बोलो/मूक क्यों खड़े हो?
तब कुछ नहीं बोल पाऊँगा मैं
महानगर की झूठी चकाचैंध व/गाँव तथा मातृभूमि की
सौंधी महक के बीच/त्रिशंकु सा लटक जाऊँगा मंै
उठेंगे प्रश्न मेरे भीतर/ज्वार-भाटों की तरह
आखिर खाक उन्नति की है मैंने?/अपनी पहचान/अपनी भाषा
संस्कृति व मिट्टी तक/अपनापन खोया है मैंने 
बदले में पाया है/बिल्कुल कृत्रिम, खोखला व कपटी संसार
सचमुच मेरे भीतर का/यथार्थ जाग उठेगा
जाग उठेगी मेरे भीतर की ग्रामीण ममतामयी चेतना/और
धीरे-धीरे झड़ जाएगा/काई लगा मुखौटों का महानगर
तब मैं/फिर से/खण्डहर हुए घर की
दीवारों में/ढँूढ़ता पिफरूंगा/दिवंगत माँ की ममता
पिता का दुलार/जीवन की वास्तविकता/या पिफर
खण्डहर हुआ अपना सुनहरा अतीत ु