लाल पर्व


मैं अक़्सर मुद्दों को लेकर अपने लेख लिखता हूँ और मुद्दे बड़े संजीदा होते हंै। कुछ लोग मुझ से चिढ़ भी जाते हैं, कुछ मुझे नास्तिक भी कहते हैं मगर कुछ ही लोग जानते है मेरा नाता जूना अख़ाडे से विगत 18 वर्षों से आज़ तक भी है। 
खैर यह तो रीत है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने भी सीता माता की परीक्षा ली, हम तो देवेश आदमी है। बात उस वर्ष की है जब तेलंगाना का गठन हो रहा था, मेरा कोईई मित्र तृणमूल कोंग्रेस का करीबी था और पेशे से वकील है। वो मुझे 20 मई को हैदराबाद ले गया जो उस का घर भी था। उस का घर हैदराबाद के सबसे रईस इलाके बंजारा हिल में है। रात करीब 8 बजे हम सीधा हवाई अड्डे से उन के घर पहुंचे जो शहर से 25 किमी दूर है। जैसे उस के घर पहुंचे तो घर में जश्न का माहौल था। मैंने उसे पूछा 'रेड्डी तुमने इस कार्यक्रम के बारे तो नहीं बताया था!'  तूने बताया नहीं घर में कोई फंक्शन है। वह बोला मुझे खुद नहीं मालूम। पता करने पर पता चला कि उसकी 14 साल की भतीजी जिस का नाम पी.मीनाक्षी रेड्डी है, उस को लाल पर्व हुआ है। हमारी भाषा मे मासिक धर्म या महीना आया है, इंग्लिश में 'एम सी' हुआ है, कहते हंै। मैं हैरान हो गया। यह क्या चीज है? कैसे ये लोग इस बात पर खुशी मना रहे हैं? कैसे यह लोग मासिक धर्म को पर्व कह रहे हंै? जब कि सभ्य शिक्षित उत्तर भारत में जिस महिला को मासिक धर्म होता है, उस का 7 दिन तक बर्तन, कमरा, खाना-पीना, सब अलग हो जाता है। वो मंदिर में भी प्रवेश नहीं कर सकती है। उसे फूल छूने की अनुमति नहीं है। वो अपने घर में पराई हो जाती है।
रात गहरायी तो खाने-पीने के बाद हम सब को सोने के लिए कमरे बताये गए, मेरे मन में लाल पर्व को समझने की इच्छा हुईई तो मैंने अपने मित्र रेड्डी को बात कही। उस ने बोला यह सब मेरी बीबी तुझे बतायेगी। रेड्डी मेरा मित्र जरूर था मग़र उस से पहले उस की पत्नी कुंजम रेड्डी मेरी मित्र थी जो कि कार्डियोलाॅजी विभाग में डाॅ. है। रात को हम सब राजनीति बहस करने लगे तो कुंजम को मैंने कहा क्या लगता है आप को कि तेलंगाना राज्य अलग होकर क्या फ़ायदा होगा आप सब को? बस इसी बहस पर करीब 2 घण्टे बीते और हम सब अपने अपने कमरे में जाने लगे तभी रेड्डी ने बोला अम देवेश चैपन लाल पर्व ;कुंजम! देवेश तुझ से लाल पर्व के बारे में पूछ रहा हैद्ध। मैं यह सुन कर हैरान था क्यों कि वहां उस वक्त 7 लोग थे जिस में मीनाक्षी भी थी। रेड्डी की माँ, बुवा, बड़ी बहिन, रेड्डी का 70 साल के ताऊ जी। कुंजम बोलो भाई यह वो पर्व है जिस की खुशी नहीं मनाई तो जीवन व्यर्थ है। क्योंकि जिस महिला को यह मासिक धर्म नहीं होता वो कभी माँ नही बन सकती है। अगर जीवन है तो संसार है वरना किसी भी प्राणी का जन्म सम्भव नहीं। वो बोली मैं डाॅ. हूँ और जो भी प्राणी बच्चे पैदा करता है सभी को मासिक धर्म होता है।
उस की यह बात पुख़्ता तरीके से आगे बढ़ाईई बुवा जी ने जो वाई.एम.आर.रेड्डी की करीबी थी। बुवा जी कहती हैं किसी जमाने में सैनेट्री पैड नहीं होते थे। न साबुन जैसी कोईई वस्तु थी सफाईई के लिए, न लोगों के पास कपड़े ज्यादा होते थे कि हर दिन कपड़े बदल सकंे। इसलिए जिस महिला को लाल पर्व होता था वो अलग कमरे में रहती थी। सफाई के चक्कर में बर्तन अलग होते थे। क्योंकि मासिक धर्म में महिला के शरीर से हानिकारक पदार्थ निकलते हैं और यह किसी के शरीर में जायंे तो कोई भी रोग लग सकता है। कुंजम ने बताया कि दक्षिण भारत की जितनी भी आदिवासी जनजाति हैं, इस पर्व को मनाते हैं और उस दिन लड़की को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। 3 दिन के भीतर ही सब रिश्तेदारों को बुलाया जाता है। 3 दिन का भोज रखा जाता है। शादी से ज्यादा खर्चा किया जाता है। लड़की को दुल्हन की तरह सजाया जाता है, गहने बनाये जाते हंै और उस की पढाई-लिखाई के लिए लोग उसे दान देते हैं। उससे उस दिन 3 वचन मांगे जाते हंै कि वो क्या चाहती है। अपनों से, अपने जीवन के बारे में। जो उसने मांग लिया वह पूरा होगा। अक़्सर लड़कियां इस उम्र में अपनी पढाई-लिखाई का वचन मांगती है। पक्की उम्र में शादी हो और पिता-भाईई से शराब नशीला पदार्थ न छूने का वचन भी मांगती है। जिन के घर में घरेलू हिंसा होती है, लड़की हिंसा न करने का वचन भी मांगती है।
आज भी उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों ने महावारी के दौरान लड़कियों को गौशाला में रखा जाता है। दूध की चाय नहीं दी जाती है। वह खाट पर नहीं सोती है और न जाने क्या-क्या जुल्म होते हंै। यही वो समय है जब बेटी को भरपूर पौष्टिक आहार मिलना चाहिए मग़र हमारे समाज में कुछ नियम तो बहुत ही बर्बरता वाले हंै। उस लड़की को मानसिक रूप से अहसास कराया जाता है कि तेरा लानत है बेटी होने पर। इसीलिए आज भी घर-गाँव की महिलाएँ कहती हैं-अगले जन्म में बेटी न बनाना। कैसे एक 12 साल की बेटी खुद का खाना बनाएगी या कपड़े धोएगी? कैसे वह बेटी समाज से अलग रहेगी? यही वजह है कि फूल जैसे बच्चे दुनियां से कट जाते हंै और उन का मानसिक शारीरिक विकास रुक जाता है। आंकड़ों के लिहाज़ से जब मैंने दक्षिण भारत के राज्यों का डाटा खंगाला तो 9 राज्यों में दुष्कर्म के मामले अकेले दिल्ली के मुकाबले 9 प्र. कम हंै। लड़कों पर लड़की का जन्म अनुपात भी उत्तर भारत के किसी भी राज्य से कम नहीं है। दक्षिण भारत के 9 राज्यों में महिला को अम नाम से सम्बोधित करते हैं, जैसे हम बहिन जी शब्द से सम्बोधित करते हैं। दक्षिण भारत में महिला पुरूषों के मुकाबले ज्यादा काम करती हंै। नौकरी हो या खेती या व्यापार हर क्षेत्र में औरतें पुरूषों से आगे हैं। यह उन राज्यों की बात है जहां सब से ज्यादा आदिवासी समाज के लोग हंै। उस दिन मेरी आँखें खुली कि लाल पर्व अगर देश के हर घर में मनाया जाय तो कई पुरुष तो बेटी-बहिन को वचन देकर ही सुधर जाएंगे।