माँ बनी स्त्री


वह मेरी सहेली है
खिलती थी जब भी
मुझसे मिलती थी
पर जब वह मां बनी 
पूरी-की-पूरी
उपवन हो गयी।
कल तक वह
औरत थी भरी-भरी
रहती थी घर में
भरा-भरा रहता था 
घर उससे
पर जिस दिन
उसकी गोद में आयी
एक चुहिया
जैसी नन्ही सी बिटिया
मेरी सहेली, पूर्णता की 
परिभाषा बन गयी।
जहां-जहां पड़ती थी
उसकी प्यारी
आंखों की 
उजली-उजली दृष्टि
उजाला सा
फैलता चला जाता था वहां
और अब तो वो आंखें
ओ मेरी मां,
बन गयी हैं पूरी तरह 
रोशनी का झरना।
पहले भी समृद्ध
थी वह स्नेह से
मुस्कान का
वैभव पहले भी था 
पास उसके
पर निचोड़ कर
अपनी देह को
बना कर एक नयी काया
ममत्व की महिमा से
सचमुच लगने
लगी है वह
कोई परी या
सम्मोहक 
जादूगरनी सी।