मैं, समझ गया



मुझे, समझाया गया
दुनियां रोती रहती है
लेकिन, यह रोने की जगह नहीं है
मुझे, समझाया गया
दुनिया निश्चिंत है
लेकिन, यहाँ निश्चिन्त रहना
महामूर्खता है....
फूल क्यों खिलते हैं?
नदी क्यों बहती है?
चिड़ियाँ क्यों चहचहाती है?
हल पर जुते  बैलों को समझ!
लदान कर रहे घोड़े-खच्चरों को समझ!
दूध देती गाय-भैंस को समझ!
दरवाजे पर तैनात कुत्ते को समझ!
दुनियां रोने की जगह है क्या?!
कमबख्त!
दिल लगाकर सेवा कर
नाम का मेवा पचा...
मैं, समझ गया!!! ु