मौसम

शामें
सचमुच जादुई हो गयी हैं
कुछ दिन की छुट्टी लेकर 
आ जाओ तुम बैठेंगे छत पर 
लेकर हाथों में हाथ
देखेंगे
लाज से लाल पड़ते 
सूरज को।
रातों ने उतार फेंकी है
ठिठुरन की कंेचुल
संवरने लगी हैं बेलें, 
टहनियां, पत्तियां...
तुम आ जाओ
कुछ दिन की छुट्टियां लेकर
टहलेंगे आंगन में साथ-साथ
और तर होते रहेंगे
चांद की रसीली दृष्टि से।
कसम से
चांद नहीं छोड़ने वाला है साथ
पूरी-पूरी रात
धुली-धुली सुबह में 
तंद्रिल होकर जाएगा वह
क्षितिज की ओर।
सुबह
क्या कम खूबसूरत होती है आजकल
चिड़ियां इतना मीठा गाती हैं
कि कानों से प्राणों तक
रिसती चली जाती है आवाज
फूल इस तरह खिलते हैं
कि आंखें दुनिया भूल जाती हैं
तुम छुट्टी लेकर आ जाओ कुछ दिन
क्यारी में बैठ कर 
चाय पिएंगे साथ-साथ
सुनेंगे प्राणों में इकट्ठा गीतों को 
और खो जाएंगे 
आंखों की खिली हुई दुनिया में।
कुछ दिन 
छुट्टी लेकर आ जाओ तुम
वरना शिकायत न करना मुझसे
कि रोका क्यों नहीं 
वसंत को पतझड़ होने से।