लेखनी लिख निर्मम
हवस की बर्बरता ने सताई,
संवेदना करूणा की पीडा में अकुलाई
आज नारी अत्मा बेदम।
लेखनी तू लिख ,निर्मम।
बहशी निरंकुश हैवानियत का सिर कर कलम।
उतर रहा साल
गिरा रहा आसमान भी पारा
जुल्म की सिहरन से धरा भी गई जम।
लेखनी तू भी लिख, निर्मम।
शीतरात में साठपार की देहजात डोलती।
बढ रहा आक्रोश का ज्वार,
गहराया अंधकार,
गर्वित की बोलती हुई बंद ।।
लेखनी तू लिख, निर्मम ।
बेचैन जीवन, गति मानों गई सबकी थम,
समतल हो बहने लगे
न उमगी भावना की नदी में उठी हिलोर,
जीवन का अंधेरा और गहरा न हो जाये
तापमान में भर दो तपन।
उंगलियॅंों न थको न रूको ,
चलाओ कलम ।
अलिखा अलिखा न रहे ,
हौंसलों में उबाल न हो कम।
न फैले विभ्रम, लेखनी लिख तू,निर्मम।
लेखनी लिख तू,निर्मम।
निर्मम