पर्यटकों का स्वर्ग : उत्तराखंड

प्राचीन काल से देखें तो उत्तराखंड को, प्रकृति की सुंदरता, पवित्रता, शुद्धता, शाॅंत स्थल होने के कारण ही महान ऋषि मुनियों ने, साधु संतों ने ही नही,ं देवी देवताओं तक ने अपनी तपस्थली, निवास स्थली, विचरण स्थली बनाया। विश्व में यही वो स्थान है जो प्राकृतिक सौंदर्य से सबसे ज्यादा महिमा मंडित है। हिमालय को भगवान का साक्षात रूप माना गया है इसीलिए गीता में श्री कृष्ण ने - पर्वतों में मैं ही हिमालय पर्वत हूॅं। कालीदास ने भी इस पर मुग्ध होकर इसे देवात्मा कहा। आदि काल से हमारी हिन्दू संस्कृति का मूल स्रोत रहा है। तब से लेकर आज तक यह लेखक, कवियों, साहित्यकारों की धरती रही है। वेद व्यास ने, बाल्मिकी ने, कालीदास ने, महाभारत, रामायण, अभिज्ञान शाकुन्तलम, मेघदूत की रचना कर उनमें उत्तराखंड के अनेक स्थलों का उसकी संस्कृति का वर्णन किया। तभी हम उस काल को उस काल की संस्कृति को जान पाते हैं। बाद में आदि गुरू शंकराचार्य ने चाॅंदपुर गढ़ी के समीप पहले बदरीनाथ धाम के मंदिर का निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया था जो प्रातः तक पूरा होना था पर हो नहीं पाया जिस कारण इसे आदिबद्री अर्थात आधीबद्री कहा गया। बदरीनाथ धाम में भगवान बदरीश की स्थापना कर मंदिर का निर्माण कराया तथा फिर केदारनाथ मंदिर जिसका निर्माण पांडवों के समय हुआ था का जीर्णोद्वार करवाया था। इन ही ग्रंथों से ही हम उस काल तथा उस काल की संस्कृति के बारे में जान पाये। अपने अपने साहित्य में उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों पर समय समय पर अनेक लेेखक साहित्यकारों ने बहुत विस्तार से लिखा उनमें कुछ प्रमुख हैं सुमित्रानंदन पंत, काका कालेकर, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यान, भजनसिंह, मोहन राकेश, कृष्णनाथ, शेखर पाठक, सुंदरलाल बहुगुणा जी, यशोधर मठपाल, यशवंतसिंह कठौच, गोविंद चातक, शैलेश मटियानी, हरिदत्त भटट, प्रसून जोशी, रामचन्द्र गुप्त, लीलाधर जगूड़ी, भक्त दर्शन, नंद किशोर हटवाल, रमाकान्त बेंजवाल, बीना बेंजवाल, बी मोहन नेगी, प्रकाश थपलियाल, विद्यासागर नौटियाल, मुकेश नौटियाल, सोमवारी लाल उनियाल जी, जय प्रकाश पंवार, जयप्रकाश पंवार, डाॅ नागेन्द्र ध्यानी जैसे लेखक, कवियों, साहित्यकारों, चित्रकारों ने अपनी कलम, कैमरे और तूलिका से उत्तराखंड के हर क्षेत्र, हर भाग, हर विषय को अपने साहित्य का मुख्य विषय बनाया। राहुल सांस्कृत्यान को उनकी यायावरी के कारण यात्रा साहित्य का जनक माना जाता है। उन्होंने 'हिमालय परिचय', 'किन्नर देश में', 'मेरी तिब्बत यात्रा', 'लददाख यात्रा', लिखकर जैसे ग्रंथों में हिमालय को जैसे जीवंत कर दिया था। इसी तरह शेखर पाठक ने अस्कोट से अराकोट, और नंदाराज जात मार्ग में रूप कुंड बेदनी बुग्याल' 'एशिया की पीठ पर' तथा उत्तराखंड हिमालय के अनेक क्षेत्रों की यात्रा कर वहाॅं के गाॅंवों, स्थानीय निवासियों की स्थितियों का अध्ययन कर, शोध पूर्ण तरीके से देश के ही नहीं अंतराष्ट्रीय स्तर पर रखा और विश्व का ध्यान आकर्षित कराया। काका कालेकर ने 'हिमालय की यात्रा' ग्रंथ लिखा, लेकिन 'गढ़वाल का इतिहास' रच कर पं हरि कृष्ण रतूड़ी जी ने जैसे गढ़वाल को विश्व के सामने अमर कर दिया। डा. शिवप्रसाद डबराल ने टिहरी, उत्तरकाशी, पौड़ी, चमोली, देहरादून के भौगोलिक इतिहास को अपने साहित्य में बखूबी दर्शाया। भजन सिंह ने 'आर्यो का मूल स्थान' तथा जसवंत सिंह कठौच ने 'उत्तराखंड की संस्कृति' ग्रंथ लिख कर उत्तराखंड की संस्कृति का सभी से परिचय कराया। इसी प्रकार 'विरासतों को खोजते हुए' यात्रा ग्रंथों में तथा अनेक ज्वलंत प्रश्नों पर लेख लिख हेमचन्द्र सकलानी ने अनेक स्थानों रेखांकित किया।


यशवंत सिंह कठौच ने अपने साहित्य में 'मध्य हिमालय का पुरातत्व', 'मध्य हिमालय की कला', 'उत्तराखंड का नवीन इतिहास' को विस्तार से व्यक्त कर वैश्विक स्तर पर उत्तराखंड की पहचान स्थापित की, वहीं यशोधर मठपाल ने जहाॅं 'कुमाऊॅंनी कला' को अपनीे पुस्तक के माध्यम से तथा डाॅ मदन चन्द्र भटट जी ने 'हिमालय का इतिहास' तो बद्रीदत्त पांडे ने 'कुमाऊॅं का इतिहास लिखकर वैश्विक स्तर पर अपने क्षेत्र की पहचान बनायी। प्रसिद्ध लेखक जयप्रकाश उत्तराखंडी ने मसूरी के सम्पूर्ण इतिहास को मसूरी दस्तावेज ग्रंथ में जैसे हमेशा के लिए जीवित कर दिया है। डा.रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने 'हिमालय का महाकुम्भ' से लिख कर इसकी पहचान विश्व स्तर पर स्थापित की। प्रसिद्ध लेखिका हेमा उनियाल ने दुर्गम से दुर्गम स्थानों की यात्रा कर उत्तराखंड के प्राचीन से प्राचीन मंदिरों की यात्रा कर मानसखंड और केदारखंड जैसे ग्रंथ साहित्य जगत को देकर वैश्विक स्तर पर इन मंदिरों से उत्तराखंड की पहचान दी। किसी कवि ने अपने उत्तराखंड की महानता पर बहुत सुंदर लिखा है-


          जहाॅं चन्द्र कुंवर प्रकृति में शब्दों के रंग भरता है


            कालिदास  मेघदूत की जहाॅं  रचना करता है


          जहाॅं  सरिताओं के तट  चारों धाम  विराजे है


             पंच बदरी,पंच प्रयाग,जहाॅं पंच केदार निराले है


          दुनिया मे सबसे न्यारा वह उत्तराखण्ड हमारा हैं।


             जहाॅं गंगा की अमृत धारा और बुग्याल दयारा है


          मानसरोवर, नंदा की यहीं से राजजात यात्रा है


             जहाॅं रंग बिरंगे  फूलों की  महकती  घाटी  है


          और नहीं कोई वह मेरे उत्तराखण्ड की माटी है।


             दुनिया मे सबसे न्यारा वह उत्तराखण्ड हमारा है।                        


प्रसिद्ध कवि चन्द्रकुंवर बत्र्थवाल ने हिमालय की सुंदरता, प्रकृति, पर्यावरण पर जितना सुंदर कविताओं माध्यम से लिखा और कोई नहीं लिख सका। इसी तरह नरेन्द्र सिंह नेगी ने अपने गीतों के माध्यम से, तो प्रसिद्ध चित्रकार तूलिका के जादूगर बी मोहन नेगी ने उत्तराखंड के कवियों की रचनाओं को अपनी तूलिका की चित्रकारी से वैश्विक स्तर पर यहाॅं के कवियों का परिचय कराया जिन्होंने अपनी कविताओं में उत्तराखंड की सुंदरता को हर कोण से दर्शाया है। मोहनलाल बाबुलकर जी ने सम्पूर्ण उत्तराखंड के साहित्यकारों पर ग्रंथ निकालकर वैश्विक स्तर पर उनका परिचय कराया।


 वर्तमान में उत्तराखंड के हिम मण्डित शिखरों, मंदिरों, नदियों, उत्तराखंड की पावन संस्कृति, रीति रिवाजों परम्पराओं, लोकगीतों, लोकथाओं, सुंदर वाद्य यंत्रों, पारम्परिक गहनों, वस्त्रों, मेलों-उत्सवों, यहाॅं के सुंदर पर्यटन स्थलों, पुरातात्विक स्थलों, ऐतिहासिक स्थलों, कुम्भ महाकुम्भ पर तथा ऋषि मुनियों की इस देव भूमि पर जहाॅं योग के द्वारा प्राकृतिक चिकित्सा से शरीर को सुंदर स्वस्थ बनाया जा सकता है पर जीवंत सुदंर रचनात्मक कार्य तथा व्यापक प्रचार प्रसार कर उत्तराखंड के लेखक, साहित्यकार, पत्रकार, चित्रकार, अपनी उल्लेखनीय भूमिका निभा कर वैश्विक स्तर पर उत्तराखंड की पहचान को नया आयाम दे सकते हैं।


स्कूलों में पाठय क्रम में हिमालयी क्षेत्रों को, वहाॅं की सभ्यता संस्कृति, परम्पराओं, रीति रिवाजों, मेलों उत्सवों, लोक कथाओं, कविताओं, कहानियों, को स्थान देने के साथ अन्य भाषाओं में अनुवाद के भी प्रयास किये जाने चाहिए। मेंरी दो पुस्तकें टिहरी की आखरी कविताएॅं तथा दुनिया घूमते का अंग्रेजी अनुवाद के प्रयास लेखको के द्वारा जारी हैं। लेकिन दुख यह होता है कि हमारे देश की अधिकांश फिल्मों की शूटिंग विदेशों में होती है। फिल्मों से पैसा यहाॅं से कमाते हैं और खर्च विदेशों में करते हैं जिस कारण उत्तराखंड के पर्यटन स्थलों को लोकप्रियता भी नहीं मिल पाती और आम आदमी के आकर्षण का कारण भी नहीं बन पाते। यह जरूर है कि अन्य देशों ने अपने पर्यटन स्थलों को ऐतिहासिक, पुरातात्विक स्थलों प्राकृतिक रूप से सुंदर स्थलों का खूब सौंदर्यीकरण किया जैसे इंग्लैड में टेम्स रीवर की सैर, लंदन आई, ऐम्स्टडर्म की रीवर सैर ब्रूसेल्स की क्रस से सैर, पेरिस के डिज्नीलैंड, स्वीटजरलैंड की जंगफंो, माउंटटिटलिस के स्नो केव की सैर, बैंगकोक की चोपरया रीवर की सैर, सिंगापुर तथा बाली के अनेक स्थलों को पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनाया। जिससे पर्यटक ही नहीं फिल्म की सूटिंग करने वाले भी वहाॅं अक्सर जाते रहते हैं जिससे उन्हें बहुत आर्थिक लाभ होता है। हमारे देश में सुंदर पर्यटन स्थलों, पुरातात्विक स्थलों, ऐतिहासिक स्थलों की कमी नहीं है ये कम खर्चे पर आसानी से उपलब्ध हो सकते हैं जो राज्य के ही नहीं स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति सुधारने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन आवश्यक है कि इनका सौंदर्यीकरण किया जाए जिससे फिल्म इंडस्ट्री के लोगों का ही नही पर्यटकों का आकर्षण भी बड़ेगा यदि ऐसा हो जाए तो जो आर्थिक सुधार आएगा उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। उत्तराखंड में एक छोर से दूसरे छोर तक अनेक ऐसे स्थल हैं प्रकृतिक सौंदर्य से भरे पड़े है ंजहाॅं तक अभी लेखकों साहित्यकारों की नजर नहीं पड़ी मात्र इसलिए कि वे बहुत दुर्गम क्षेत्रों में हैं अनेक मेले धार्मिक उत्सव हैं, रीति रिवाज परम्पराएं हैं प्राचीन मंदिर हैं, गाॅंव हैं जो विकास से अभी भी बहुत दूर हैं जिन पर लिखा जाना चाहिये। यात्राओं पर राम वृक्ष बेनी पुरी ने बहुत संुदर कहा- ''पैरों में पॅंख बाॅंध, उड़ते चलो उड़ते चलो।'' यात्राओं से बहुत कटु और सुंदर अनुभव होते हैं संघर्षों से कठिनाईयों से लड़ने का हौसला मिलता है। बहुत से लोग विभिन्न स्थानों का भ्रमण नहीं कर पाते वे यात्रा साहित्य पढ़ कर पूरा आनन्द उठा लेते हैं उन्हें अनेक जानकारियाॅ मिल जाती हैं। इस हिमालय दिवस पर हम सबको इसकी सुंदरता पवित्रता पावनता बनी रहे की दृष्टि से अब कार्य करना चाहिए, शपथ लेनी चाहिए क्योंकि हिमालय से हम हैं हमसे हिमालय नहीं।