फलित ज्योतिष का सच


उन्नीसवीं शताब्दी के सबसे महान सामाजिक सुधारक आर्ष और अनार्ष मान्यताओं का रहस्य बताने वाले युग पुरूष महर्षि दयानन्द सरस्वती जी अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश के द्वितीय सम्मुलास के प्रश्नोत्तर में लिखते हंै।
प्र0. तो क्या ज्योतिष शास्त्र झूठा है ?
उ0-नहीं, जो उसमे अंक, बीज, रेखागणित विद्या है, वह सब सच्ची, जो फल की लीला है, वह सब झूठी है।
फलित ज्योतिष के द्वारा अवैदिक, व सृष्टि क्रम विज्ञान के अमान्य अनार्ष मान्यताओं को चतुर लोगांे द्वारा भारत की जनता का वैचारिक शोषण करके अपना मनोरथ तो पूर्ण किया ही है, अपितु भारत वर्ष को गुलामी के दलदल में धकेलने का भी कार्य किया है। बड़े अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि यह पाखण्ड इस वैज्ञानिक युग में भी दिनो-दिन बढता जा रहा है। स्वार्थी और चतुर किन्तु ज्ञान विज्ञान से शून्य लोग भोली-भाली जनता को फलित ज्योतिष की आड़ मे कई प्रकार से लूट रहे हंै। अथर्व में लिखा है- 
कृतं मे दक्षिणेहस्ते जयोमेसव्य आहितः 
ईश्वरीय व्यवस्था में मानव कर्म करने के लिये स्वतन्त्र है, और क्रमानुसार फल प्राप्ति ईश्वरीय व्यवस्था मे होती है। मानव जैसा कर्म करता है वैसा ही कल उसको ईश्वर द्वारा दिया जाता है। अतः मनुष्यांे को अपने दिल में भरोसा रखना चाहिए कि यदि पुरूषार्थ मेरे दायें हाथ मे है तो सफलता मेरे बायें हाथ मे है। अतः संसार मे जितने भी कार्य सि( होते हंै, वह पुरूषार्थ से होते हैं। मनुष्य के जीवन मे अगले क्षण क्या होने वाला है वह नहीं जानता है। ज्योतिषों द्वारा फलित आश्वासन भ्रामिक है यह केवल मनुष्य को गुमराह करने वाला है।
उदाहरण के लिये भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डालने वाले लुटेरे बाबर की जीवन की एक घटना है। जब वह भारत पर आक्रमण करने आया तो भारत के प्रसि( भविष्य बताने वाले ज्येातिष ने बाबर से कहा कि अभी आप भारत पर आक्रमण न करंे इससे आपको सफलता नहीं मिलेगी। बाबर ने पूछा आपको यह जानकारी कैसे मिली। ज्योतिष ने कहा हमारे फलित ज्येातिष शास्त्र मे लिखा है। बाबर ने कुछ सोचकर कहा ज्योतिष जी आप यह भी जानते होंगे कि आप और कितने वर्ष जिन्दे रहोगे, ज्योतिष ने कहा अभी मंै 37 वर्ष और जिन्दा रहूंगा, बाबर ने म्यान से तलवार निकाली और एक ही झटके में ज्येातिष का सिर धड़ से अलग कर दिया और कहा कि जिसको अपने अगले क्षण का पता नहीं ऐसे पाखण्डी पर क्या विश्वास किया जा सकता है और उस ऐतिहासिक यु( में बाबर की विजय हुई और ज्योतिष की बात मिथ्या हुई। आप कल्पना करो कि मेरे सामने एक भोजन का थाल पड़ा है और उसमे दस कटोरियां अलग-अलग व्यंजनों की हैं। पहले मैं कौन सी कटोरी का पदार्थ खाऊंगा ज्योतिष तो क्या, स्वयं ईश्वर भी नहीं बता सकते हंै कि पहले मंै कौन सी चीज खाऊंगा क्योंकि कर्म करना मेरे स्वतन्त्रता के अधिकार मंे है। एक ब्राहमण काशी मे दस वर्ष ज्योतिष विद्या पढ़ के अपने गांव मे आया। गांव का एक जाट लाठी लिये अपने खेत मे जा रहा था, नमस्ते पश्चात जाट ने पूछा आप कहां से आ रहे हंै, ब्राह्मण बोला मै दस वर्ष काशी से ज्योतिष विद्या पढ़ के आ रहा हूँ। जाट ने पूछा महाराज ज्योतिष क्या होता है। ब्राह्मण ने बताया हम अगले क्षण आने वाली बातों को पहले बता देते हैं। जाट ने पूछा महाराज मै पूछूं तो आप बतायेंगे, क्यांे नहीं अवश्य पूछिये। ब्राह्मण बोला मै उच्च कोटि का भविष्य वक्ता बन गया हूँ। अब जाट मे कन्धे से लाठी उठाकर घुमाकर पूछा, बता मै तेरे इस लाठी को कहां मारूंगा। यह सुनकर ब्राह्मण नीचे ऊपर देखने लगा, यदि मैंने कहा कि सिर पे मारेगा तो वह पैरो पर ठोकेगा यदि पैरों पर कहा तो यह सिर पर ठोकेगा। ब्राह्मण सिर झुका कर नीचे देखने लगा। इसलिऐ फलित ज्योतिष पाखण्ड है। जैसी यह पृथ्वी जड़ है, वैसे ही सूर्य आदि लोक हैं। वे ताप और प्रकाशादि से भिन्न कुछ नहीं कर सकते। क्या ये चेतन है जो क्रोधित होके दुःख और शान्त होकर सुख दे सकें। भोली-भाली जनता को ठगने के लिये ग्रहांे का प्रकोप का डर उनके दिलो में बिठा रखा है। प्रत्येक ग्रह जड़ है और पृथ्वी से लाखांे गुना बड़े हंै फिर वह एक छोटे से मनुष्य पर कैसे चढ सकते हंै।
उदाहरण के लिये दो नवयुवक एक बलिष्ट शरीर बालक और दूसरा मरियल सा कमजोर शरीर वाले ज्योतिष के पास जाकर पूछने लगे- महाराज हम पर कौन से ग्रह चढे हैं जो हमारे कोई भी कार्य सि( नहीं होते। ज्योतिष ने बलिष्ट शरीर वाले युवक से कहा तुम पर सूर्य ग्रह मेहरबान है तुम्हारा कुछ भी अनिष्ट नहीं होगा और दूसरे कमजोर शरीर वाले युवक से कहा कि तुम पर सूर्य ग्रह चढे हंै तुम्हारा यह अनिष्ट करेंगे, जल्दी पूजा पाठ दान करो हम सूर्य ग्रह को शान्त कर देंगे। यह सब कोतुहल एक विद्वान युवक देख रहा था, उससे रहा नहीं गया वह चुप भी कैसे रह सकता था )षि दयानन्द का भक्त जो था। उसने ज्योतिष से कहा मैं अभी इन दोनो की परीक्षा ले सकता हूँ क्या । ज्योतिष जी ने अहंकार मे कहा अवश्य-अवश्य हमारा कथन कभी गलत नहीं होता है। अस्तु जून का महीना था दोपहर का समय था, विद्वान युवक ने दोनो पीड़ित युवकांे से कहा मै तुम्हारी परीक्षा लूंगा दोनो के कपडे़ उतरवाये और नंगे पैर दोनो को पक्के फर्श पर खड़ा कर दिया और आधा घन्टा खड़े रहने को कहा। किन्तु यह क्या! जो बलिष्ट शरीर वाला युवक था, जिस पर सूर्य ग्रह मेहरबान था वह चक्कर खाकर गिर गया और कमजोर शरीर वाला किन्तु दृढ इच्छा वाला वह युवक जिस पर सूर्य ग्रह कुपित थे ज्यों का त्यों खड़ा रहा। अब आर्य युवक ज्योतिष से कहने लगा कहिए महाराज प्रत्यक्ष मे आपकी भविष्य वाणी असफल क्यों हुई है। वास्तव में सूर्य ग्रह जड़ है और ताप से अधिक कुछ नहीं दे सकता है। सूर्य की गरमी का प्रभाव दोनो पर बराबर पड़ा किन्तु सहन क्षमता में दोनो अलग-अलग थे, इसलिए नव ग्रहांे का ज्योतिष भ्रम है, धोखा है।
शनि ग्रह पृथ्वी से लाखांे मील दूर है और कई लाख गुना बड़ा है-बताइए ज्योतिष महाराज वह शनि ग्रह एक छोटे से आदमी पर कैसे लग सकता है, शनि गृह के लगने से तो सारी पृथ्वी ही दब जायेगी। वास्तव में ईश्वरीय व्यवस्था में प्रत्येक ग्रह जड़ है और अपनी-अपनी धुरी पर केन्द्रित है। इस सृष्टि क्रम की व्यवस्था को बनाए रखते हंै। यह मानव जगत का उपकार ही करते हंै किन्तु अपकार कभी नहीं करते है।
आश्चर्य होता है शनिवार को कुछ लोगो का धन्धा खूब चलता है, वह एक बाल्टी मे तेल लेकर जगह-जगह चैराहों पर, घरो मंे शनि के नाम से लोगांे को ढगते रहते हंै और अन्धविश्वासी लोेग उनकी बाल्टी को सिक्कों से भर देते हैं। क्या शनिदेव मांगने वाले लोगांे पर मेहरबान होते हैं। नहीं, यह उनका धन हरण का मार्ग है। और अधिक आश्चर्य होता है अब शनि को देवता बनाकर उनकी मूर्ति भी बना दी गई है और मन्दिर भी बना दिया गया है। ईश्वर भारत वासियों को सुमति दें।
परिवारांे के प्रत्येक शुभ कार्यों में शुभ दिन मुहुर्त निकालना भी भ्रम है। वास्तव में पृथ्वी पर सब दिन बराबर होते हैं और एक जैसे होते हैं, )तुआंे के अनुसार व जलवायु के अनुसार अपना प्रभाव दिखाते हैं। वैसे प्रत्येक शुभ कार्य करने के लिये प्रत्येक दिन शुभ होता है किन्तु आप अपना शुभ कार्य तब करंे जब )तु अनुकूल हो, स्वास्थय अनुकूल हो, परिवार सुख शान्ति मे हो, वह दिन किसी भी समय शुभ कार्य के लिए शुभ होता है।
एक ज्वलन्त उदाहरण से इसे समझ सकते हंै। श्री राम चन्द्र जी कोई साधारण पुरूष न थे, वह मर्यादा पुरूषोत्तम थे और उनके कुल गुरू वशिष्ट भी )षी ब्रह्मा के पुत्र थे, श्रीराम को गद्दी पर बैठाने का मुहूर्त विशिष्ट )षि ने निकाला था। इसी मुहूर्त मे श्री राम को चैदह वर्ष के लिये वनवास जाना पड़ा था। पीछे श्री राम के पिता दशरथ को पुत्र वियोग मे मृत्यु हो गई। तीनांे रानिया विधवा हो गयीं, आगे चलकर सीता का हरण हुआ, वशिष्ट की शुभ मुहूर्त शुभ कार्य हेतु व्यर्थ गया। इस ऐतिहासिक उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है कि शुभ व अशुभ मुहूर्त ज्योतिष का चलन भी भ्रामिक है। पर हां, वेदों की शिक्षा के आधार पर गणित ज्योतिष सत्य है, गणित ज्योतिष द्वारा हम सौ वर्ष पहले बता सकते हंै कि क्या होगा। जैसे कि तिथियों का हिसाब, दिनांे का हिसाब, )तुओं का परिवर्तन, सूर्य व चन्द्र ग्रहण। चंूकि यह सारी चीजें चांद, सूर्य और जमीन इन तीनांे की नियमानुसार गति पर निर्भर हंै, जिसमे एक पल का भी अन्तर नहीं आता। अतः हम सौ साल पहले बतला सकते हंै कि अमुक तिथि, अमुक वार को अमुक )तु में और अमुक समय में सूर्य व चन्द्र ग्रहण होगा, तथा कारण को देखकर कार्य का अनुमान अर्थात कारण को देखकर होने वाले काम का अनुमान आदि।