पुकार


आ रे मनमीत! 
सावन के तरसाते मीत 
कारी बदरिया बनकर आ 
और बरसा दे- 
मधुवन का संगीत 
बरसाने का गीत...
आ रे मनमीत! 
तितली की मादक 
और मनमोहक फड़फड़ाहट से 
जीवन को रागमय बना
छितरे सपनों को सजा 
बांसुरी की धुन बजा 
सारी घाटी को नचा
आ रे मनमीत! 
हवा की गहरी गूंज में 
गुलबहार का मन रमा
प्रणय का सन्देश सुना
पंखुड़ियों पर मन लुटा 
नरगिस की वेदना भगा
आ रे मनमीत! 
अंधेरे को हराने के बाद 
सूरज की गुनगुनी किरण में 
उजियाले आज की 
खबर बनकर आ
विरह की सारी 
निशानियों को मिटाकर 
पतझड़ के गुजरने की 
सहर बनकर आ 
और मेरे आंगन की डाल पर 
भोर बनकर गा
आ रे मनमीत! 
तरंगों का गीत बनकर आ
हिमनद का संगीत बनकर आ
फूलों की प्रीत बनकर आ
झूलों की रीत बनकर आ
किसलय की जीत बनकर आ
आ रे मनमीत! 
जीतने की प्यास बनकर आ
जूझने की आग बनकर आ
सत्य का नाद बनकर आ 
बादलों का राग बनकर आ
स्वाति का भाग बनकर आ
आ रे मनमीत!