संतों


हे! कारागार में बंद
या बंद होने की
प्रतीक्षा करते संतों!
गर संत हो तो
संतों की तरह 
आचरण करो
अन्यथा, 
मनुष्य जीवन तो
है ही...भोगो योनि
उतारो केंचुल
फैलाओ  बघनखे
आओ! 
अपने असली रूप में
फिर क्या होनी
क्या अनहोनी
क्या गंगाजल
क्या गटर का पानी...!