सौंदर्य का दर्पण है रूपाभा

कहते हैं कि जब बंसत की नई कोंपलें फूटने लगे।जब कोयल की कुहू कुहु दिल में कसक भरने लगे। जब प्यार और इन्तजार के मासूम खयाल हृदय सागर में लहरें उठाने लगे तब शायरी जागेगी और जब शायरी जागेगी तो शायरों का जिक्र होगा और श्रृंगार रस के रसिक कवियों का भी।
उपरोक्त पक्तियाॅं कविवर अम्बरीष चमोली पर भी सटीक बैठती हैं। उन्हांेने ''रूपाभा''में श्रंृगार रस की  उच्चतम  ऊॅचाइयों को छुआ है।कवि और सौन्दर्य के बारे में विनोबा भावे का कहना है कि-'कवि कौन है? कवि दो चार कडियां तुुकबन्दियां जोडने वाला नहीं। कवि क्रान्ति दर्शी होता है जिसे 'उस पार' का दर्शन होता है वही कवि है। इस पार देखने वाली तो ये दो आंखें हैं । सृष्टि का सौन्दर्य तो हम इन दो आंखों से देखते हैं परन्तु इस खूबसूरत दुनियां से परे भी एक और निहायत खूब सूरत दुनियां है।'' ईश्वर ने अम्बरीष बाबू को वह तीसरी आंख और अन्तर्दृष्टि दी है जिसके कारण एक साधारण इह लौकिक कविता और उनकी कविता जिसमें पारलौकिक दृश्यों का सौन्दर्य मिलता है, दोनो में अन्तर स्पष्ट दिखाई देता है।वह माधुर्य, वह सौन्दर्य और वह आध्यात्मिकता का पुट जो उनकी कविताओं में  मिलता है उन्हें  काव्य जगत में  उच्चकोटि के ख्यातिप्राप्त कवियों और शायरों के समकक्ष स्थान प्राप्त करने का अधिकारी बना देते है। उनका सौन्दर्य वर्णन दिव्यता से सराबोर है। आगे जो तुलनात्मक विवरण दिया जायेगा उससे मेरे कथन की  पुष्टि हो जायेगी।
कहते हैं कि कीट्स और  शैली ने यदि कविता को पदजमससमबजनंसपेम किया है तो वडर््सवर्थ ने उसे  ेचपतपजनंसपेम  किया है। कविवर अम्बरीष ने भी कविता को ेचपतपजनंसपेम किया है। यदि मेरे अन्दर कविता परखने की अंश मात्र भी चिनगारी है तो मैं समझता हॅू कि शायरी में जिन ऊंचाइयों को गालिब और फिराक साहब ने छुआ है, हिन्दी काव्य में डाॅ0 अम्बरीष चमोली ने  उन ऊंचाईयों को छुआ है कविता सागर में उनकी पैंठ बहुत गहरी है।वे शब्दों के मोतियों को चुन चुन कर काव्य माला में पिरोते दिखाई देते हैं। उनका शाब्दिक कोष बहुत ही विशाल है और उन शब्दों को उनके उचित स्थान पर बिठाने की उनमें अद्भुत क्षमता है। प्यार सृष्टि का आधार है। प्यार नही ंतो सृष्टि भी नहीं। 
कहने के ढ़ंग अलग-अलग हो सकते हैं किन्तु सार व तत्व एक ही है। प्यार लाख दुःखों की एक दवा हैं। फारसी में इश्क का मतलब होता  है क्पअपदम सवअम  याने दिव्य प्रेम। यही दिव्य प्रेम है जो डाॅ0 अम्बरीष के कवि हृदय के गोमुख से 'रूपाभा'' रूपी निर्मल गंगा प्रस्फुटित और अवतरित हुई है। कवि हृदय से काव्य सरिता कब प्रस्फुटित  होती है। एक हृदय विदारक दृश्य को देखने पर आदि कवि महर्षि बाल्मिकि के  हृदयोद्गार इस श्लोक में फूट पड़े थे-
''मा निषाद प्रतिष्ठा त्वम गमःशाश्वतो समः।
यत् क्रौंच मिथुनादेकमवधि काम मोहितम्।।''
यदि मामला विरह  ओर विछोह का हो तो-'वियोगी होगा पहला कवि आह से निकला होगा गान' की पंक्तियाॅ फूट पडेंगी। महाकवि निराला ने अपने जीवन की कथा-व्यथा इन दो पंक्तियों में व्यक्त कर  दी-     'क्या कहूॅ आज जो कही नहीं
  दुःख ही जीवन की कथा रही।''
इन दो पंक्तियों में कितनी पीड़ा और दर्द भरा है यह संवेदनशील कवि हृदय ही अनुभव कर सकता है। श्री गोत्रा नन्द घिल्डियाल एडवोकेट ने पहाड़ की गुरबत के साथ वहाॅं की दरियादिली और मेहमान के प्रति सौहार्द को गढ़वाली की इन दो पंक्तियों में बयान कर दिया-शुरू कि आग अर कंडाळि कु साग,
  सुलार कु बिछौणु अर सेजा साब।
अमृता प्रीतम की महबूबा अपने महबूब से किस अन्दाज में अपनी मनचाही चीज की मांग करती है-'मुझे आसमान का लहंगा सिला दे मेरे महबूब जिसमें धरती की किनारी हो।' इस तरह की खूबसूरत मांग पंजाबी लोकगीतों के गुलदस्ते का एक बेहतरीन फूल है। ताज महल को देखने तो सैलानी रोज आते रहते हैं किन्तु भावोद्वेलित कोई बिरले ही होते हैं।ताज महल को देखकर कवि के उद्गार देखिए-ताज-काल के कपोल पर प्रेम का अश्रु है।
इन पंक्तियों का हिन्दी अनुवाद मैने इस तरह किया है-
  व्यथित हृदय की वेदना कहते हैं जो,
  हमारे मधुरतम गीत होते हैं वो। 
कुछ समय बाद मैने कविवर बच्चन द्वारा  शायराना ढं़ग से अनूदित इन पंक्तियों को इस प्रकार पढ़ा-
 जिन गीतों में शायर अपना गम रोते हैं।
 वे उनके सबसे मीठे नगमें होते हैं।।
गम और खुशी,बेवफाई और प्यार,टूटन और घुटन को कवि और शायर अपने-अपने अन्दाज में  व्यक्त करते हैं। गालिब अपनी महबूबा की बेवफाई का किस खूबसूरत अन्दाज में बयां करते हैं-
हमने उनसे वफा की, की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफा क्या है
और आगे देखिये-
 तुम उनके वादे का जिक्र
 उनसे क्यों करो गालिब
यह क्या कि तुम कहो-
और वे कहें कि याद नहीं।
 एक और शेर मुलाहिजा फरमायें-
 तेरे वादे पर जिये हम तो यह जाना झूठ जाना।
 कि खुशी से मर न जाते अगर एतबार होता।।
 किन्तु प्रेयसी का सहारा प्रेमी को कई मुश्किलों से उबार भी लेता है। फिराक साहब की सुने तो वे क्या कहते है?
तू हाथ को जब हाथ में ले लेती है,
दुख दर्द जमाने का मिटा देती है।
 संसार के तपते हुये वीराने मे,ं
 सुख शान्ति की गोया तू हरी खेती है।
 डाॅ0 अम्बरीष के लिए भी उनकी प्रेयसी सुखों का सागर और संताप मिटाने वाली है। महबूब अपनी महबूबा से क्या कहता है-
  'मैं प्यासा मुसाफिर हॅू ,तुम शीतल मधुर जल हो।
  तुम मेरी तपस्या के सुसंचित कोश का फल हो ।।
 दिल भरता नहीं नित, देख करके प्रिय तुम्हारा मुख।
 तुम्हारे पास रहने से मुझे मिलता अलौकिक सुख।।''
एक ओर जहां मिर्जा गालिब अपनी महबूबा की बेरुखी और बेवफाई से खफा हैं तो दूसरी ओर अम्बरीष बाबू के महबूब को अपनी महबूबा की उदासी तक बर्दाश्त नहीं होती। महबूब को महबूबा की उदासी किस कदर परेशान करती है जरा 'तुम्हारी उदासी' कविता में देखिये-
 जब तुम उदासी की चादर ओढ़ लेती हो
 तो सारे जहां में सारी फिजां में पसर जाती है उदासी।
  कोयल की कूक उठाती मन में हूक और
 घुघूती की बोली लाती दर्द का सैलाब।
 डूब जाता है सूरज दिन मे ही
 और छा जाता है गहन अंधकार।
कवि अपनी प्रेयसी से इस पीड़ादायक उदासी की चादर उतार फेंकने को कहता है ताकि-
 आ सके पक्षियों के स्वरों में मिठास,
 नदी के कल-कल में मधुर संगीत।
       कोयल की कूूक में मिश्री और
      घुघुती के कण्ठ में मिलन का हर्ष।
अपनी प्रेयसी की सौन्दर्य प्रशंसा में  डाॅ0 अम्बरीष की काव्य सरिता किस कदर हिलोरें लेती है, देखने लायक है।
 झील से है नयन तेरे भंवर वाले,
 घटा से हैं घने तेरे केश काले।
 रूप की चंचल नदी तू लहर वाली
 तू प्रलय की वायु सी है कहर वाली।।
कवि अपनी प्रेयसी के सौन्दर्य सागर में बारम्बार डुबकी लगा कर आत्म विभोर हो कहता है-
 मधुर मिश्री और माखन से बनी ज्यों,
 दूध से फिर चांदनी में तू नहाई।
 विधाता ने यत्न कर बहुविध कलायंे
 तुझे गढ़ने में सकल अपनी दिखाई।।
कवि अपनी प्रेयसी का सौन्दर्य वर्णन करते नहीं अघाता- 
 गात तेरा पुष्ट पर पतली कमर है,
 मस्त तेरी चाल यौवन का असर है।
 बिना कुछ कहे ही बहुत बोल लेती,
 बिना कुछ दिए ही हृदय लूट लेती।।
डाॅ0 अम्बरीष की कविताओं में महबूब अपनी महबूबा के प्यार में इस कदर डूबा है कि यह शेर याद आ जाता है-
 'देना है तो निगाह को ऐसी रसाई दे।
 मैं देखूं आइना तो मुझे तू दिखाई दे।।'
नारी के दिव्य निरापद और अमर सौन्दर्य को जगाने के लिये फिराक ने एक मांसल व उत्तेजक तस्वीर पर कितनी सफाई से एक भोले बच्चे की मुस्कान विखेर दी-
 लहरों में खिला कमल न होये जैसे
 दो शोज-ए-सुबह गुनगुनाये जैसे
 वो रूप वो लोच वो तरन्नुम वो निखार
 बच्चा सोते में मुस्काये जैसे।।
प्यार जब टूटता है जो हाले दिल का बयान डाॅ0 अम्बरीष किस प्रकार करते है कुछ पक्तियाॅं उनकी कविता 'भग्न हृदय'' की दृष्टव्य हैं-
 दी तूमने वो दस्तक क्यों
 जब यों लौट जाना था।
 दिखाया क्यों भला सपना
 जिसे यों टूट जाना था।।
प्यार में मनुष्य को दुनियां हसीन और रंगीन दिखाई देती है कल्पना सातों आसमान पर होती है।प्यार के नशे को किसी फिल्मी नगमें में इस तरह कहा गया है-
 शोखियों में घोला जाये फूलों का शबाब
 उस में मिलाई जाय थोडी सी शराब
 होगा जो नशा तैयार वो-प्यार है।
'तुमको भुलाना बहुत कठिन है' नामक कविता में कवि कहता है-
 तुम्ही ने दिये है पर कल्पना के,
 उजालों के साये तुम्ही नें दिये है।
प्यार में विरह एक अनिवार्य स्थिति है जिसकी वेदना को कवि ने खूबसूरती से उकेरा है-
 निशा जागरण है विकल मेरा मन है।
 रातें हैं लम्बी ये जाड़ों के दिन हैं।।
दरअसल यह दुनिया बहुत विशाल है। उपर नीलाकाश है। चांद है तारे हैं घरती है सागर है। सरितायें है शैल हैं
शिखर हैं उषा हैं निसा है बसंत है पतझड़ है। वैसे पतझड़ उदासी और वीरानगी का द्योतक है किन्तु अमृता प्रीतम ने कसके पतझड़ की बडी तारीफ की है। उसका पतझड़ बड़ा मनोरम होता है जहां लाखों सैलानी वृक्षों से पीले सुनहरे झड़ते हुए पत्तों तथा छाल उतरे चांदी जैसे वृक्षों की शोभा को देखने हर साल आते हैं। फिर वर्षा है हरियाली है सरिताओं का कल-कल छल-छल संगीत है। बालारूण की स्वर्णिम किरणे है। वन में हिरन की मनमोहक कुलांचे है।अस्ताचल की लालिमा है।इन सबने कविवर डाॅ0 अम्बरीष को सम्मोहित किया है और उन्होने अपने तीनों काव्यसंग्रहों में कुदरत के हर करिश्में पर अपने काव्य दृष्टि डाली है। 'रूपाभा' काव्य संग्रह उनकी काव्य प्रतिभा का एक बेहतरीन नमूना है। मैं कविवर डाॅ0 अम्बरीष की दीर्घायु की कामना करता हॅू कि वे शतायु हों और मां सरस्वती के चरणों में अपने काव्य पुष्प अर्पित करते रहंे और ईश्वर प्रदत्त अपनी काव्य प्रतिभा को निखारते रहें तथा काव्य जगत में उच्चासन प्राप्त करें जिसके वे अधिकारी हैं। मैं पुनः उनकी श्री वृद्धि की कामना करता हॅूॅ और उन्हे बधाई देता हॅू।


काव्य संग्रह-रूपाभा
कवि-डा0 अम्बरीश चमोली
समीक्षा-एडवोकेट मोहन लाल नेगी