शैक्षिक बमबारी: सब पर भारी

समान शिक्षा पाना एवं शिक्षित होने का अधिकार एवं 14 वर्ष की उम्र तक शिक्षा निःशुल्क पाने का संवैधानिक दायित्व राज्य एवं जनता के मध्य है। आज इस दायित्व का शासन-प्रशासन के द्वारा कितना निर्वहन किया जा रहा है? यह एक महत्वपूर्ण यक्षप्रश्न बनकर हमारे समक्ष खड़ा है। समाज का त्रास्त नागरिक आज यही पूछ रहा है कि शिक्षा के नाम पर लूट-खसोट, धोखाधड़ी, अनुचित दबाव एवं मानसिक-आर्थिक क्षति पहुँचाकर नुकसान करने एवं कराने वाले शिक्षा माफियाओं एवं दुकानदारों से शासन-प्रशासन कब मुक्ति दिलायेगा? सम्पूर्ण प्रश्न का उत्तर भाजपा के नवोदित सिंहासनारोहण पर्व में ओझल होता ही दिख रहा है।
पिछली सरकार के शासनकाल में शैक्षिक गतिविधियां संचालित करने वालों ने जिस तरह से अघोषित लूट-खसोट, धोखाधड़ी, अनुचित नियम बनाने, सरकारी विधि-विधान एवं नियमों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किया, उससे यही लगा कि शायद उत्तरांचल में शिक्षा विभाग, मंत्रालय, मंत्राी, मुख्यमंत्राी आदि हैं भी या नहीं। इस कड़ी में सर्वप्रथम भारत सरकार के सीबीएससी, आईसीएससी एवं आईएससी द्वारा संचालित पब्लिक स्कूलों की ओर मुखरित होंगे। देश की सम्पूर्ण शैक्षिक गतिविधि में 10+2 का अत्यन्त अहम रोल है, क्योंकि यहीं से छात्र अपने जीवन का आधार या दिशा तय करता है और सम्पूर्ण जीवन उसी आधार या दिशा के इर्द-गिर्द घूमता है। पब्लिक स्कूल की शैक्षिक प्रणाली ने सबसे पहले इसी कड़ी को पकड़ा। एक धर्म विशेष के लोगों ने अपने धर्म की आड़ में भारत सरकार के विभिन्न बोर्डों में अपनी घुसपैठ बनाकर रातों-रात सीबीएससी, आईसीएससी, आईएससी से बिना मानक पूरे किए मान्यताएं ले ली। आज इन्होंने प्रारंभिक स्तर से अपनी शैक्षिक माफिया गिरी की पकड़ इतनी मजबूत बना ली है कि सरकार के नुमाइंदे चाहकर भी इनका वजूद हिला नहीं सकते, क्योंकि उनके बच्चे, रिश्तेदार खुद इन स्कूलों के या तो उत्पाद हैं या पिफर अध्ययन कर रहे हैं। ऐसे में इन पब्लिक स्कूलों के नाम पर सफद डकैतों पर लगाम लगाये तो कौन लगाये।
पिछले वर्षों तक तो इन पब्लिक स्कूलों की ज्यादतियों को लोग नजरंदाज करते रहे हैं। किन्तु सम्प्रति यह स्कूल लूट-खसोट एवं अनुचित दबाव बनाकर पफीस की मनमानी वृद्धि , पढ़ाई का स्तर गिराने में मीलों आगे बढ़ चुके हैं। उत्तर प्रदेश में पब्लिक स्कूलों की मनमानी पर बाकायदा माननीय हाईकोर्ट को आदेश एवं निर्देश जारी करना पड़ा तो देश की सर्वोच्च न्याय संस्था सुप्रीम कोर्ट को दिल्ली के पब्लिक स्कूलों की प्रवेश एवं पफीस संबंधी मनमानी पर आदेश जारी करना पड़ा। जबकि उत्तरांचल की नवीन भाजपा सरकार अभी यही देख रही है कि इन निरंकुश पब्लिक स्कूलों पर नकेल कसने से कहीं हमारी पार्टी के लोगों के बच्चे तो नहीं प्रभावित होंगे। जहाँ तक संभावना यही है कि भाजपा के शासनकाल में इन निरंकुश एवं बेलगाम पब्लिक स्कूलों में कोई भी कठोर कार्यवाही नहीं की जाएगी। दरअसल धर्म विशेष के जो स्कूल सबसे ज्यादा ज्यादती कर रहे हैं, उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए एक विधायक उस समुदाय से नियुक्त किया जा रहा है और यही कार्य पिछली सरकार में किया गया। वर्तमान सरकार भी यदि पिछली सरकार के पदचिर्ोिंं पर चलना चाहती है तो जनता तो यही कहेगी कि पिछली और वर्तमान सब एक ही हैं, सिर्पफ पार्टी का नाम भर बदला है। अगर ऐसा न होता तो अब तक अत्यन्त अनुशासित एवं ईमानदार मुख्यमंत्राी श्री खण्डूड़ी जी एवं शिक्षा मंत्राी श्री मदन कौशिक जी द्वारा अवश्य सख्त कार्यवाही इन पब्लिक स्कूलों की मनमानी, लूट-खासेट पर जारी कर दी गई होती।
पब्लिक स्कूलों की अपनी मनमानी, बिल्डिंग पफीस, डेवलपमेेंट पफीस, खेलकूद पफीस, स्टेशनरी पफीस, कम्प्यूटर पफीस, स्कूलों में लगने वाले फट की फीस, टूर फीस, ड्रेस फीस, एक्जाम फीस- पता नहीं कौन-कौन फीस कब अभिभावकों पर लाद दिया जाए और इस पर प्रश्न करने वालों के बच्चों को कब दण्डित कर दिया जाए, फेल कर दिया जाए, आन्तरिक रूप से प्रताड़ित कर दिया जाए, कोई नहीं जानता?
इस वर्ष अधिकांश पब्लिक स्कूलों के संसाधनों का, सीबीएससी, आईसीएससी, आईएससी द्वारा निर्धारित मानकों का निरीक्षण जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा बिल्कुल नहीं किया गया। ऐसा क्यों किया गया, यह अपने आप में शोध का विषय है। जब भी जनता द्वारा इस बाबत जिला शिक्षा अधिकारी से पूछा जाता है, तो जवाब वही रटा-रटाया। कार्यवाही जारी है, जाँच चल रही है, सभी स्कूलों को शीघ्र निर्देश जारी किए जा रहे हैं। बडे़ ही अपफसोस की बात है कि शिक्षा जैसे पवित्रा क्षेत्रा में भी धार्मिक गतिविधि का सहारा लेकर कोमल मन वाले अबोध बच्चों का शोषण किया जा रहा है। देहरादून में अधिकांश पब्लिक स्कूल ऐसे हैं, जिनके प्राध्यापक पर्याप्त न तो शिक्षित हैं और न ही प्रशिक्षित। यदि इस तथ्य की जाँच करनी हो तो राजपुर रोड एवं काॅन्वेंट रोड स्थित दो बडे़ स्कूलों की औचक जाँच-पड़ताल करके जाना जा सकता है कि बिना बीúएडú किये अधिकांश अध्यापक एवं प्रधानाचार्य किस प्रकार अपनी जेबें भरकर छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। इन विद्यालयों द्वारा अधिकांश अभिभावकों से स्टाम्प पेपर पर विद्यालय से संबंधित किसी भी प्रकार की शिकायत कहीं बाहर न करने हेतु, शपथपत्रा प्रवेश के समय ही अभिभावकों से लिखाकर रखवा लिया जाता है। अर्थात् कभी भी, कोई भी अभिभावक अपने शोषण की बात किसी के समक्ष रख ही नहीं सकता है। क्या किसी विद्यालय के पास ऐसा अधिकार सुरक्षित रखने की छूट सीबीएससी, आईसीएससी, आईएससी बोर्ड देता है? अगर नहीं, तो माननीय मुख्यमंत्राी एवं शिक्षा मंत्राी महोदय ऐसे विद्यालयों की औचक एवं निष्पक्ष जाँच कराकर छात्रों एवं अभिभावकों को शोषण से बचाएं तथा कांग्रेस के शासन एवं भाजपा शासन में कुछ पफर्क करके दिखाएं अन्यथा जनता के मन में भाजपा शासन के प्रति निराशा ने घर करना प्रारम्भ कर दिया है।
राजपुर रोड, न्यू कैण्ट रोड, ईसी रोड आदि चूँकि मुख्यमंत्राी के आवागमन का मुख्य मार्ग एवं क्षेत्रा है और जब शासन की ठीक नाक के नीचे का पब्लिक स्कूल लूट-खसोट, अनुचित दबाव तथा अनुशासन के नाम पर छात्रों एवं अभिभावकों की बात को अनसुना करने का दुस्साहस कर सकता है, तब भला संपूर्ण उत्तराखण्ड के दूरस्थ इलाकों में स्थापित इन लुटेरे पब्लिक स्कूलों की ज्यादतियों को कौन देखता होगा? वास्तव में उत्तराखण्ड अब शिक्षा की पवित्रा नगरी की जगह शिक्षा लुटेरों, मापिफयाओं एवं एक धर्म विशेष के लोगों के द्वारा धर्म के आधार पर शैक्षिक मापिफयागीरी चलाने, संचालित करने तथा नियंत्रित करने का गढ़ बन चुका है।
इन पब्लिक स्कूलों की एकाध गतिविधि भी ऐसी नहीं है, जिसे शिक्षा की उच्च गुणवत्ता पर खरा पाया जा सके। देहरादून शहर में कुछेक पब्लिक स्कूल अभी हाल-पिफलहाल ऐसे स्थापित हुए हैं जिन्होंने गुणवत्ता परक शिक्षा देकर उत्साहवर्धक परिणाम भी दिए हैं किन्तु पफीस, पुस्तक-कापी आदि क्रय में, कम्प्यूटर पफीस, अन्य तरह की कई पफीस, बिल्डिंग पफीस, अनाप-शनाप एडमिशन पफीस वसूलने में ये भी किसी से कम नहीं हैं।
माननीय मुख्यमंत्राी महोदय जी से विशेष गुजारिश है कि शिक्षा के माहौल को अभिभावकों की सुविधानुसार एवं छात्रों की सुविधानुसार बनाने हेतु आदेश पारित करें और कड़ाई के साथ अपने आदेशों का पालन भी कराएं। अभिभावकों पर पफीस का अत्यधिक बोझ एवं बच्चों पर बस्ते का अत्यधिक बोझ कम करने में यदि शिक्षा मंत्राी एवं मुख्यमंत्राी महोदय जी सपफल रहते हैं, तब यह माना जाएगा कि भाजपा शासन में अवश्य कुछ सही एवं कठोर जनहित करने की शक्ति है। अन्यथा जनता इस शासन में भी कुंठित एवं हतोत्साहित हो ही रही है। ु