सूली पर गीत



कहाँ से शुरू करूँ
आखिर इसकी जरूरत भी क्या है
मौसम के सुकून
भीतर घुस आये हैं
दीवार, पफर्श और छत पर
मौसम ही मौसम है
क्या करोगे जानकर / कि
सत्य के सीने पर
ठोकी गयी कील
अभिव्यक्ति पर बैठाया गया पहरा
सैंसर की कैंची ने
कुतर दिये
गीतों के पर
और हम
केवल इस मायने में आदमी रह गये
कि हमारी दो आँखें
दो हाथ / दो टाँगें हैं
अनेक दरवाजों पर
नाटक दोहराया जाता है बार-बार
हर बार छपता है इस देश का अखबार
राज्य के चैमुखी विकास पर
बुने जा रहे शब्द जाल
उत्पन्न संकट के निवरणार्थ
बाधाओं की आशंका
साहित्य-संस्कृति और कला के नाम पर
लगने वाले मेले
पुलिस भीड़ आन्दोलन
महंगा है जनतन्त्रा
सस्ता है आदमी
पहाड़ के ललाट पर तिलक करता गीतकार
सूनी घाटियों और जंगलों में
नई सुबह की किरण लेने गये
नहीं लौटे
चिन्तित है रचनाकार
शब्द और अर्थ का
आपस में क्या नाता है
राम गिरी पर्वत पर
कालीदास का मेघ क्यों नहीं जाता
सीढ़ीनुमा खेतों पर
पहाड़ सी जिन्दगी बिताने वाली
यक्षिणी के लिये
कौन लिखेगा महाकाव्य
जब
गीतों के स्वर मौन हो गये
पता नहीं
क्यों मानसून ने रास्ता बदल डाला
और मेघ भटक गया
किसी अरण्य में
पहाड़ में जहरीली शराब से
सैकड़ों मर गये
जल, जमीन, जंगल तबाह हो गये
अखबारी सुर्खियाँ बलात्कार
और हत्या से भरी है
ठीक महत्वपूर्ण हालीवुड है
पहाड़ नहीं
इसी सत्य को उद्घाटित करते
ईसामसीह सूली पर चढ़ गये
सुकरात को जहर पीना पड़ा
गाँधी को सीने पर खानी पड़ी गोली
और सुमन को
अपना बलिदान देना पड़ा
तो मित्रा
तुम्हारे स्वरों पर बिठाया गया पहरा
सूली पर टांगे गये शब्द
जन-जन की अभिव्यक्ति पर
लगाये गये ताले हैं।
का कोई अर्थ नहीं रह जाता
शब्द ब्रह्म है
ब्रह्म-उत्पत्ति है
सृजन है। सत्य है।
सौन्दर्य है
तो हे रचनाकार!
तुम रचो
महा निर्माण का गीत
एक नई सृष्टि के लिये ु