सोशल मीडिया और संघ


बात सन् 2002 है, तब मैं कानपुर विश्व संवाद केन्द्र का संचालन करता था, तो जाहिर है की सभी प्रकार के मीडिया से पाला पड़ता था। उस समय सोशल मीडिया का इतना जोर नहीं था, लेकिन मेल, बेवसाइट और चेट के द्वारा सम्वाद की प्रक्रिया चलती थी। संघ ने कानपुर को अपनी रचना में एक प्रान्त बनाया था, जिसमें आसपास के जिलों को शामिल किया गया था, मैंने कानपुर प्रान्त के संघ के मुखिया (यहां नाम नहीं दे रहा हूं) को ई-मेल की जानकारी दी और कहा कि कानपुर प्रान्त की भी मेल आईडी बना दूं और आपकी भी? उन्होंने उत्तर दिया कि मेल, फिमेल छोड़ो, कहीं उस पर कोई कुछ उल्टा पुल्टा न भेजे, कहने का अर्थ ये था कि संघ इंटरनेट से दूर था, प्रचार से दूर था, केवल मात्र अपना काम, शाखा और उससे जुड़ा कार्यक्रम। पर उस समय देश में संघ का एक अलग तंत्र विकसित हो रहा था और वो था विश्व संवाद केन्द्र जो कि मीडिया से जुड़े लोगों के लिए एक खुला केन्द्र था। उस समय लखनऊ प्रमुख केन्द्र होता था जिसका संचालन स्व. अधीश कुमार जो कि उस समय उत्तर क्षेत्र प्रचार प्रमुख थे। उस समय संघ ने कई लोगों को मीडिया संबंधित कार्यों में लगाया, और कई बेवसाइट, न्यूज चैनल आनलाइन भी शुरू हुई। लेकिन आज के बदलते दौर में जब सोशल मीडिया का इतना फैलाव हो गया कि देश के कोने-कोने तक हर व्यक्ति तक इसकी पहंुच है, जिस किसी के पास मोबाइल सुविधा है या कम्प्यूटर सुविधा है, वहां तक लोग इससे जुड़े हैं। विचारों का लेन-देन हो या फिर किसी भी प्रकार का प्रचार हो, सोशल मीडिया आज एक सशक्त माध्यम बनता जा रहा है। 
इसकी बड़ी लोकप्रियता और आसानी से लोगों तक पहुंचने की शैली के कारण बड़ी तेजी से संघ तथा संघ समर्थित संगठनों के लिए भी यह तंत्र सुगम बन गया है, जहां पहले संघ मंच, माला, माइक से दूर था, आज वहीं सोशल मीडिया में संघ के बारे में विस्तृत जानकारी के साथ नित्य-प्रतिदिन के कार्यक्रमों की जानकारी व रिपोर्ट प्राप्त हो जाती है। पहले पत्रकार संघ की बैठकों व कार्यक्रमों की खबर व फोटों के लिए परेशान हो जाते थे, वहीं आज हर कार्यक्रम की जानकारी और रिपोर्ट सोशल माध्यम से प्राप्त हो जाती है, ये बदलाव कई मायनों में सकारात्मक प्रभाव भी दिखा रहा है, जहां जो लोग संघ को नहीं समझ पाते थे, वे आज सोशल मीडिया माध्यम से संघ को समझ रहे हैं, बड़ी संख्या में युवा पीढ़ी इस तंत्र के    माध्यम से संघ विचारों से पोषित हो रही है और इसी का परिणाम है कि संघ के समर्थन में सोशल मीडिया में बड़ी संख्या में लोगों के विचार दिखाई दे रहे हैं। इस बदलते परिवेश में सोशल मीडिया के जरिये संघ-विचारों की स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है। सोशल मीडिया में संघ विचारों की स्वीकार्यता का प्रमुख कारण यह भी है कि संघ के विचार राष्ट्रवादी हैं और इनका संबंध देश की अस्मिता, देश की अखण्डता, देश की संप्रभुता से है, जिसके चलते युवा वर्ग इन विचारों से सहमत होते हैं, कुछेक लोग जो राजनीति के कारण संघ से परहेज करते हैं, वो भी इन विचारों से इत्तेफाक रखते हैं। पर राजनीतिक लाभ या अन्य व्यक्तिगत कारणों से संघ का सार्वजनिक रूप से समर्थन नहीं कर पाते हैं। सोशल मीडिया में एक और रूप देखने को मिला है कि देश की सुरक्षा से संबंधित बातों, समाचारों पर बड़ी आक्रमता से युवा विचार रखता है। आज भले सोशल मीडिया किसी के लिए दोस्ती या फिर राजनीतिक छवि को चमकाने के लिए कारगर हथियार बना हो पर इसमें दो राय नहीं है कि अभी भी एक बड़ा वर्ग सोशल मीडिया में देश की ज्वलंत समस्याओं पर चर्चा करता है, अब चाहे वो थोड़ी हो, पर इस बारे में सोचता और प्रतिक्रिया जरूर देता है। सोशल मीडिया संघ विचारों के लिए उपयुक्त माध्यम है और इस पर संघ ने कोई रणनीति जरूर बनाई होगी। सोशल मीडिया में यारी-दोस्ती, शायरी, कविता तथा हल्की- फुल्की बातों के साथ देश के सामने खड़े ज्वलंत प्रश्नों पर भी चर्चा हो, इसमें संघ और संघ विचारों से पोषित संगठन अहम भूमिका निभा रहे हैं।