उत्तराखण्ड में स्वयंसेवी किसानी संस्थाओं की आवश्यकता


हमने अपनी पहचान, प्रतिष्ठा और विकास के लिये 9 नवम्बर 2000 को अपने उत्तराखण्ड की स्थापना की। तब से लेकर अब  तक राज्य ने कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय विकास किया और अपनी प्रतिष्ठा व पहचान भी चमकाई है। लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में हम कृषि तथा वन व उनसे सम्बंधित उद्योगों के पक्ष में उदासीन हैं। यही कारण है कि उत्तराखण्ड से उत्तराखण्डियों के पलायन की गति पर कोई विराम नहीं लग पा रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों के लिये जो भी योेजनायें बनाई जाती हैं वे शायद कागजों मे ही सम्पन्न हो रही होती हैं। अगर ये योजनायें खण्ड विकास अधिकारी, ग्राम विकास अधिकारी, ग्राम प्रधान से सम्बंधित कृषक तक पहुंचे तो कुछ नजर आये। लेकिन ऐसा कुछ होता ही नहीं। मैंने पिछले कुछ वर्षों से अनुभव किया कि खण्ड विकास के अधिकारी या कर्मचारी लोग शायद ही किसी गांव-ग्राम सभा में जाते हों, प्रशिक्षण की बात तो क्या करनी है।
हां, प्रशिक्षण के लिये कभी-कभार, यत्र-तत्र अवश्य ले जाते हैं, लेकिन अचानक लगे हाथ किसी को भी पकड़ के। चाहे वह सही पात्र है या नहीं। एक प्रशिक्षण में मैं भी गया...लगे हाथ फरवरी-2009 में। नौणी-सोलन (हि0प्र0)। यह प्रशिक्षण-भ्रमण औद्योगिक तकनीकी मिशन के अन्तर्गत 'कृषि प्रशिक्षण केन्द्र उद्यान्न एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग' कोटद्वार गढ़वाल द्वारा आयोजित किया गया था। लेकिन रिखणीखाल से मैं किसी सुनियोजित प्रबंध से नहीं गया था। एक मित्ऱ ने सूचित किया था कि हिमाचल घूमना है, तीन-चार दिन तो कल कोटद्वार पहुंच जाना...सिद्धबली पुल के पास खड़े रहना।...बस कुछ देर बाद एक बस आई। देखते-देखते जाने-अनजाने लोगों से बस भर गई और गन्तव्य की ओर चल पड़ी। प्रशिक्षण से वापिस लौटे तो कोटद्वार आते-आते तक ही मुझे पता चल सका कि यहां का ही कोई एनजीओ है जिसने हम पर हिमाचल घुमाने की कृपा की। उस भ्रमण-प्रशिक्षण के पश्चात न तो किसी विभागीय अधिकारी-कर्मचारी ने और नही उस एनजीओ ने हमारे प्रशिक्षण का परिणाम पूछा। 
ऐसे ही इन बीते पांच-सात सालों के भीतर कुछेक भ्रमण- प्रशिक्षणों के बारे में भी लगभग यही निराशाजनक बातें मैंने सुनी और अनुभव कीं। जिससे धन≤ व मानव परिश्रम व्यर्थ जाया हो रहा है। विदित हो कि सरकारें कृषि व कृषि से   सम्बंधित जितनी भी योजनायें चला रही हैं, प्रायः अधिकांश योजनाओं की जानकारी ग्रामीण जनों को नहीं होती है। ग्राम प्रधान, जो ग्रामीणों का महत्वपूर्ण प्रतिनिधि होता है, वह भी पद संभालने के कुछ ही दिन बाद अपने ही मतदाताओं से दुराव करने से बाज नहीं आता। वह तो बिचैलियों की सी भूमिका में आ जाता है। अतः इस समस्या के समाधान हेतु ग्रामीण शिक्षित बेरोजगार व गरीब परिवार के लोगों के बीच स्वयं अधिकारी, कर्मचारी व विशेषज्ञ गांव या खण्ड विकास मुख्यालयों में साल में एक बार  जानकारी व प्रोत्साहन प्रदान करने का कष्ट करें तो आशातीत परिणामों की उम्मीद की जा सकती है। वरना हमेशा के ही गिने-चुने कुछ लोग आंकड़ों के गणित में गिने जाते रहेंगे और पांच साल में एक क्षेत्र में एक किसान बमुश्किल गिना भी गया तो ऊँट के मुंह में जीरा...! यों उपर्युक्त विषय से एक गढ़वाली कहावत-'बिन अफ म्वर्यां सरग नि जयेंदु' यानि दूसरे के सहारे धोखा खाया जा सकता है लेकिन कभी उन्नति नहीं हो सकती। अतएव प्रत्येक विकास क्षेत्र में युवक-युवतियों का खेती-किसानी तथा वन-पर्यावरण से संबंंिधत स्वयं सेवी समितियों का संचालन करना नितांत आवश्यक है तभी सरकारी योजनाओं का उपयुक्त संचालन और धन का सही उद्देश्य पर व्यय हो पायेगा। हमारे जन प्रतिनिधियों तथा विकास से   संबंधित अधिकारियों को इस ओर अपना समुचित उपयोग करना चाहिये। इन स्वयंसेवी संस्थाओं से विकास को सही दिशा व गति मिलेगी और अनावश्यक पलायन पर पूर्ण विराम लगेगा। तब यह भी सिद्ध हो सकेगा कि 'पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी देश के काम तो आता ही है लेकिन वह पहाड़ का प्राण है।' साथ ही प्रधानमंत्री मोदी जी के दिये नारे-'कम जमीन, कम समय और ज्यादा उपज/ राष्ट्र और विश्व का पेट भरे, किसान की जेब भरे' और सबसे उत्तम प्रयोगशाला से खेत तक' तभी फलीभूत होंगे।
यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि 'राष्ट्रीय कृषि विकास योजना' तथा कृषि पशुपालन उद्यान आदि से संबंधित कई योजनायें संचालित हो रही हैं। लेकिन ग्रामीण जनों को इनके विषय में कार्यान्वयन की जानकारियां विदित ही नहीं हैं। क्योंकि एक इकाई को कोई महत्व ही नहीं देता। अतः ग्रामीण युवक-युवतियों को चाहिये कि वे अपने गांव में, ग्रामसभा में या पांच-सात गांवों में सदस्य बनाकर अपनी स्वयंसेवी समितियां बनायें और देहरादून स्थित रजिस्ट्रार कार्यालय से समिति को पंजीकृत करायें ताकि समय≤ पर सरकारी योजनाओं की हर प्रकार की जानकारियां उन्हें उपलब्ध होती रहें। उन्हें चाहिये कि दूसरे की आंखों से सपने देखने के बजाय अपनी आंखों से अपने सपने संवारें। अपनी बुद्धि और अपने सामथ्र्य को स्वयं तौलें तथा राष्ट्र के निर्माण में सक्रिय भूमिका के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करायें।