यह हमारा कर्मफल है

जून २०१३ में सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में आये जल प्रलय के वैसे तो विभिन्न कारण हांेगे लेकिन कुल मिलाकर देखा जाय तो यह घटनाएँ मानवीय भूलों का असहनीय पुलिंदा है। 20 जून २०१३ को हम जब देहरादून से गुप्तकाशी को गये तो लमगौडी में श्री विनय चन्द्र शुक्ला ने 2 अक्टूबर 2004 दैनिक जागरण के मुख्य पृष्ठ की कटिंग दिखाई उस समाचार पत्र में वैज्ञानिकों की केदारघाटी के चैरावाड़ी ताल व उसके आस-पास के ग्लेशियरों का अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट वही सब लिखा था जो 16-17 जून को केदारनाथ में हुआ। उस रिर्पोट में लिखा है कि 2012 के बाद कभी भी केदारनाथ में तबाही मच सकती है। आगे का वर्णन ठीक उसी प्रकार है जैसी घटना केदारनाथ में घटी है। उस रिर्पोट को जब समाचार पत्र सार्वजनिक कर सकता है। तो इसका अर्थ है कि वह रिर्पोट उŸाराखण्ड सरकार व भारत सरकार को भी अवश्य दी गयी होगी, इस रिर्पोट पर ध्यान दिया जाता तो आपदा को रोका तो नहीं जा सकता था किन्तु इसकी तीव्रता को अवश्य कम किया जा सकता था।     दूसरा पक्ष एकदम धार्मिक है, कालीमठ में दो शक्तियों का केन्द्र शिव शक्ति व कालीमठ (दुर्गा शक्ति) की मान्यता है। इसलिए इस स्थान को उŸाराखण्ड के धार्मिक स्थलों में विशेष पीठ के रूप में जाना जाता है। धारी देवी मूर्ति भी इसी स्थान से बहकर श्रीनगर आयी थी। उŸाराखण्ड के चारों धामों की अधिष्ठात्री रक्षक मां काली (धारी देवी) मानी जाती है। 15 जून सांय को माँ धारी देवी की मूर्ति को मूल शिला से हटाकर जी.वी.के. बाँध निर्माण कम्पनी द्वारा पिलरों के ऊपर मन्दिर का स्थान बनाया है, वहाँ से मूर्ति को स्थानान्तरित किया गया व ठीक 24 घण्टे बाद सम्पूर्ण उŸाराखण्ड में जो विध्वंश हुआ उसका साक्षी केवल उŸाराखण्ड ही नहीं सम्पूर्ण देश-विदेश है। प्रथम दृष्टि तो यह संयोग नहीं है लेकिन अगर संयोग भी माना जाय तो जिस स्थान पर बाँध निर्माण कम्पनी ने मूर्ति रखी है, उस पर भी वर्तमान समय पर दरारें पड़ी हंै।     बाँध निर्माण कम्पनी जी.वी.क.े को विद्युत उत्पादन ज्यादा हो इस लिए बाँध की झील का विस्तार कर दिया गया। क्योंकि उŸाराखण्ड तो अपना सब कुछ इन बाँध निर्माण कम्पनियों को बेच चुका है। नेता, अफसर, स्थानीय नेता, पुजारी, समाज सबके मुंह बन्द हो जाते हंै। केदारघाटी का स्थलीय निरीक्षण करने के बाद एक बात स्पष्ट ध्यान में आती है, यहाँ पर दैवीय प्रकोप के चिह्न स्पष्ट दिखाई देते हैं। कालीमठ में सरस्वती गंगा आती है जिसको लोकल भाषा में काली कहा जाता है, ने अपना रौंद्र रूप दिखाकर कालीमठ ही नहीं अपितु आस-पास के सम्पूर्ण गांवों को क्षति पहुंचाई है। कालीमठ में पांच मन्दिर थे, छठा मन्दिर माँ का शक्तिपीठ है। इनमें से दो मन्दिर शिवालय व नारायण भगवान के मन्दिर को काली ने अपने में समा लिया व कालीमठ मन्दिर का प्रांगण भी नदी में समा गया है। कुल मिलाकर कालीमठ क्षेत्र की स्थिति किसी दुःस्वप्न से कम नहीं है। बुजुर्ग लोगों व स्थानीय व्यक्तियों से पता चलता है कि केदारपुरी में 10-10 दिन वर्षा को उन्होंने एक नहीं, कई बार देखा है। तीन दिन की वर्षा इतना प्रलय मचा देगी, इसकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। चारों धामों सहित सम्पूर्ण उŸाराखण्ड में यह जल प्रलय अपने आप में कई सौ वर्षों के बाद की पहली घटना है। वर्षा भूस्खलन, बादल फटना पहले भी होते आये हैं। घाटियों के अनुसार वर्षा होती थी, जिसको स्थानीय लोग लोकल वर्षा भी कहते हैं। 2008 से उŸाराखण्ड में वर्षा का औसत बढ़ा है। जून के मध्य में मानसून जैसी वर्षा प्रारम्भ हो जाती है। हो सकता है, टिहरी जैसे विशाल     बाँध की झील का पानी भी वाष्प बनकर बादल बरसाते हों, क्योंकि टिहरी झील भी अपने आप में लघु सागर जैसा है। टिहरी  बाँध ने इतिहास व भूगोल को बदला है तो क्या जलवायु नहीं बदली होगी? मेरा व्यक्तिगत मत है कि टिहरी झील का भी उŸाराखण्ड के मौसम पर कितना अन्तर पड़ा है, इसकी भी जाँच अवश्य होनी चाहिए। उŸाराखण्ड के पर्वतीय भू-भाग पर वहाँ का समाज कई सौ वर्षों से रह रहा है। अचानक 8-10 वर्षों से उŸाराखण्ड की भौगोलिक परिस्थितियों में अन्तर पड़ा है। वैसे तो सम्पूर्ण हिमालय बहुत मजबूत नहीं है। विकास व सुख सुविधाओं ने हिमालय को दबाना शुरू कर दिया। बदरीपुरी, केदारपुरी, गंगोत्री, यमनोत्री व छोटे-छोटे शहरों में विशाल भवनों, होटलों का निर्माण विकास के नाम पर अन्धाधुंध सड़कें जहाँ आज आबादी ही नहीं है, उन गावों को भी सड़कें पहुंचायी जा रही हैं। ऊर्जा प्रदेश के नाम पर बाँधों की बाढ़ लगी है। ये सब हिमालय क्षेत्र के लिए अनियोजित विकास माॅडल ही कहा जा सकता है। केदारपुरी में सड़क निर्माण के लिए प्रतिबन्धित क्षेत्र (इको सेंन्स्टीव जोन) माना जाता है। 10 निजी हवाई कम्पनियों को उड़ने की अनुमति हमारी सरकार ने दे रखी है। हवाई सेवा से जाने वाला यात्री 30 मिनट में पूजा दर्शन करके लौट आता है। वहीं सच्ची श्रद्धा से जाने वाला यात्री कई दिन लगाने के बाद भी ठीक से दर्शन नहीं कर पाता है। भगवान के घर में ही इस प्रकार का भेदभाव क्यों, कारण स्पष्ट है। आर्थिक आधार पर सक्षम यात्री 2100 रू0 की विशेष पूजा की पर्ची काटता है। साधारण व्यक्ति भटकता रहता है। कहते हैं कि मूल स्रोत में ही आग लगी, यहाँ पर यह कहावत ठीक बैठती है। हवाई कम्पनियों के आगे शासन-प्रशासन, मन्दिर समिति पण्डा समाज सब मूक दर्शक बने रहते हंै, कारण न जाने क्या होंगे। इन हवाई कम्पनियों के हैलीकाप्टरों के कारण ग्लेशियरों पर अवश्य प्रभाव पड़ता होगा होगा। महाप्रलय के बाद भी हमारे नीति नियंता चार दिन तक सोते रहे, सरकार के पास दो दिन तक केदारनाथ क्षेत्र की कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो पायी थी। भारतीय सेना एन.डी.आर.एफ., वायु सेना, स्वयंसेवी संगठन, शान्तिकुन्ज, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, रेड क्राॅस, पतंजली योगपीठ, जैसे अनेकों संगठनों ने अपना कार्य 20 जून से ही प्रारम्भ कर दिया। स्थानीय समाज के बन्धुओं का भी सहरानीय प्रयास रहा। तौसी, त्रिजुगीनारायण, गौरी गाँव, सीतापुर, रामपुर, फाटा, गुप्तकाशी के स्थानीय बन्धुओं ने भण्डारा चलाकर यात्रियों का यथासम्भव सहयोग किया। गुप्तकाशी से मयाली, घनसाली, चम्बा होते हुए यात्री ऋषिकेश पहुंचते हैं, इस मार्ग पर भी अनेकों स्थानीय व्यापार सभाओं व संगठनों ने यात्रियों के लिए भण्डारा प्रारम्भ किया। 20 जून से 24 जून तक लगभग सभी यात्री केदारघाटी से सेना के 'बचाओ' कार्य के बाद सुरक्षित स्थानों तक पहुंच गये थे। बहुत से यात्री व स्थानीय    बन्धु पैदल चलकर ही अपने-अपने स्थानों तक पहुंचे। समाज की संवेदनाओं को देखते हुए अनेकों स्वंयसेवी संस्थाओं व सेना का मनोबल अवश्य बढ़ा। इस वीभत्सकारी जल प्रलय में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने यात्रियों को रूकवाने, भोजन की व्यवस्था, उनके परिवार से वार्ता करना, लापता लोगों की सही जानकारी उनके परिवारों को देकर जैसे कार्य तत्काल प्रारम्भ किये व उसके बाद आपदा ग्रस्त क्षेत्र में राहत सामग्री पहुंचाना, मृतक परिवारों के परिवार तक संघ के स्वयं सेवकों ने घर जाकर राहत सामग्री पहुंचायी, अनेकों स्थानों पर डाॅक्टरों की टीमें भेजी गयी। अब संघ ने वहां पर स्थाई सेवा कार्य की योजना बनायी है। जिसमें गुप्तकाशी व देहरादून में छात्रावास प्रारम्भ हो गये जिनमें 50 आपदा प्रभावित बच्चे रह रहे हैं। दो स्थानों पर चिकित्सालय प्रारम्भ किये हंै। आगामी योजना कम्प्यूटर केन्द्र, सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र, स्वरोजगार प्रशिक्षण केन्द्र, निराश्रित बालिकाओं के विवाह में सहयोग, उन परिवारों की शिक्षा, चिकित्सा, संस्कार, स्वावलम्बन के अनेक कार्यक्रम संचालित करना है, जो इस महाप्रलय में अपना सब कुछ गंवा चुके है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस आपदा में केदारघाटी के प्रभावित क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति तक अपना हर प्रकार का सहयोग प्रदान करेगा, सम्पूर्ण देश इस समय उत्तराखण्ड के साथ खड़ा है।  केदार घाटी सबसे अधिक प्रभावित हुई है। समाज के सहयोग से संघ केदारघाटी में शिक्षा, चिकित्सा, स्वरोजगार व ग्राम विकास का आदर्श प्रकल्प के निर्माण की योजना है।