यूँ ही


धौली-काली चरती गैयां
बैठी बहुरिया पीपल छैयां
गिल्ली-कंचों की 
बात अनूठी
मंदिर-पनघट 
नवल बधूटी
सजना, हंसना 
और रूठना
नंगे पावों 
गांव घूमना
अदृश्य-दृश्य 
दृग पटल छा गये
बस, यूं तुम याद आ गये।