वीर माधोसिंह भण्डारी


रण का वो वीर था, मन से वो नीर था
संकल्प का अधीर था, ममता का चीर था।
अलकनंदा के तीर था, मलेथा का पीर था
महीपत का सेनापति, बहुत महावीर था।
प्रिय था वो राज का, राज का तकदीर था
भुजाएं थी मीन सी, बहुत बलवीर था।
मस्तक पर तेज था, बढ़ा हुआ केश था
पफौलादी सी छाती उसकी, वह शूरवीर था।
खेती भी अपार थी, पर कहीं नहीं नीर था
पानी को तरसता गांव, ऐसी तकदीर था।
कहां व्याही गई हूं मैं, उदीना मारे जब ताना
हृदय में चुभते उसके, ताना नहीं तीर था।
पानी अब मैं लाऊंगा, कूल एक बनाऊंगा
पहाड़ को भेद के, जग को दिखाऊंगा।
हाथ में कुदाल था, वह स्वयं पफौलाद था
माथे पर था पसीना, गांव का था नगीना
कूल अब बन गया, पानी नहीं बह रहा
पहाड़ के भीतर, चट्टान एक आ रहा।
जतन सारे कर दिए, चट्टान नहीं हटता
हिलाए नहीं हिलता, ना सुरंग वेधता।
बलि मांगे देवी मां, पुत्रा बलि चाहिए
स्वप्न में देखा उसने, द्वंद एक छा गया।
देंगे गजेसिंह की बलि, उदीना से कह दिया
मां की ममता को आज, छिन्न-भिन्न कर दिया।
पुत्रा बलि घोर अनर्थ, मत करो माधोसिंह
सूखे रह लेंगे खेत, यूं ही दिन काट लेंगे।
पुत्रा प्राणों से प्यारा, सारे जग से न्यारा
मत करो दान उसका, यह पाप छाएगा।
पुत्रा नहीं वह तुम्हारा, वह तो भाई है हमारा
गांव भर का दुलारा, आंखों का है वो तारा।
पर माना नहीं माधोसिंह, यह संकल्प है हमारा
देवी का दिया है दान, देवी को करूँगा दान।
रोते आंसुओं के बीच, पुत्रा का किया बलिदान
टूटा आसमां से तारा, देख रहा जग सारा।
कूल अब पूफट पड़ा, जल विहगम हो गया
धरा हरी भरी हुई, पर गोद एक सूनी हुई।
पहाड़ आज मौन हुए, वक्त भी ठहर गया
धरती मानो पफट गई, आसमां भी ढह गया।
मलेथा की कूल आज, याद करती माधोसिंह को
इतिहास करवट ले रहा, बलिदान को तज रहा।
पर तुमने हे युग पुरुष, एक इतिहास रच दिया
इतिहास के पन्नों पर, नाम अमर कर दिया।
देश है ये वीरों का, त्यागी और तपस्वियों का
निस्वार्थ लोक सेवा में, पुत्रा भी तज दिया।
आओ आज एक संग, एक राग एक मन
माधोसिंह भण्डारी को, करें शत शत नमन। ु