गढ़वाली लोक साहित्य में उपनिषद व्याख्या

 गढ़वाली लोक साहित्य विशेषत गोरखपंथी या नाथ संप्रदायी लोक साहित्य व घडेल़ा जागर दर्शन शास्त्रों से सब तरह से प्रेरित हैं .इसी लिए इस साहित्य में हमे उपनिषद की कई व्याख्याएं मिलती हैं

 वृहदकारणय  उपनिषद के छठे ब्राह्मण में गार्गी व याज्ञवल्क्य के सम्वांड हैं

गार्गी पूछती है , " हे याज्ञवल्क्य ! यह जो कुछ है सब जल में ओतप्रोत है . जल किस में ओत प्रोत है ?"

यागव्ल्क्य उत्तर देते हैं , " हे गार्गी वायु में "

गार्गी , " वायु किस्मे ओतप्रोत है ?"

यागव्ल्क्य , " अंतरिक्स लोक में "

गार्गी < " अन्त्रिक्स  लोक किस्मे ओत प्रोत    है "

याज्ञवल्क्य , " गंधर्व लोक में "

गार्गी , " गंधर्व लोक किस्मे ओतप्रेत है ?

याज्ञवल्क्य , " आदित्य्लोक में "

इस तरह इस उपनिषद के गार्गी -याज्ञवल्क्य संवाद भाग में कई लोकों (मान व भौतिक लोक ) का वर्णन आता है ऊँ लोकों की मनोवैज्ञानिक व्याख्या भी होती है

इसी तरह गढ़वाळी रखवाळी में भी कई लोकों की व्याख्या बृहदकारेणय उपनिषद के अनुसार इस तरह हो पायी है

भूत उतारने की रख्वाळी
             ओम नमो रे बाबा गुरु को आदेस , जल मसाण

             जल मसाण को भयो थल मसाण

             थल मसाण को भयो वायु मसाण

             वायु मसाण को भयो वर्ण मसाण

             वर्ण मसाण  को भयो बहुतरी मसाण  

             बहुतरी मसाण को भयो चौडिया मसाण

             चौडिया मसाण को भयो मुंडिया मसाण

             मुंडिया मसाण को भयो सुनबाई मसाण

              सुनबाई मसाण को भयो बेसुनबाई मसाण  

              लेटबाई मसाण  , दरद बाई मसाण  , मेतुलो मसाण

               तेतुलो मसाण , तोप मसाण , ममड़ादो मसाण

              बबड़ान्दो मसाण धौण तोड़ी मसाण

              तोड़दो मसाण , घोर मसाण, अघोर मसाण

             मन्तर दानो मसाण , तन्त्र दानौ  मसाण

             बलुआ मसाण कलुआ मसाण  , तातु मसाण आदि

 स्रोत्र : अबोध बंधु बहुगुणा , धुंयाळ , पृष्ठ ७५

तैत्तरीयो उपनिषद के ब्रम्हानंद वल्ली का प्रथम अनुवाक भाग क में आत्मा की व्याख्या या आत्म जागरण की विधि इस प्रकार है :

             तस्मात् वै अत्स्माद आत्मन : आकाश सम्भूत :

              आकाशात वायु , वायो अग्नि , अग्ने : आप :

             अद्रिव्ह्य पृथ्वी :, पृथ्व्या औषधय , औद्सधिभ्य अन्नं

              अन्नत रेत :, रेतस : पुरुस :, स : एष पुरुष अन्न रसमय :

अब ज़रा एक घ ड़याळो  के शब्दों पर गौर कीजिये जो सभी तरह से तैत्त रीयो उपनिषद की व्याख्या  ही करता है

                      घड़ेल़ा में जागरण मन्तर या गीत

परभात का परब जाग , गौ सरूप पृथ्वी जाग

धर्म्सरूप आकाश जाग, उदयकारी कांठा जाग

 भानुपंखी गरुड जाग , सतलोक जाग

मेघ्लोक जाग , चन्द्रलोक जाग

इन्द्रलोक जाग , सूर्य लोक जाग

पवन लोक जाग, तारा लोक जाग

जन जीवन जाग , हरो भरो संसार जाग

.....

इस तरह हम पाते हैं कि गढवाली लोक साहित्य में उपनिषदों , सभी दर्शनों की व्याख्या स्थानीय परिस्थिति व स्थानीय मनुष्यों की भाषागत समझ के हिसाब से की गयी है