एक दिन नारद का


विश्व संवाद देहरादून द्वारा आयोजित इस नारद जयंती पर मुख्य वक्ता सुब्रह्मण्यम स्वामी को साक्षात सुनने का अवसर मिला। जब संस्था के निदेशक विजय कुमार ने उनका आत्म विवरण सुनाया, तो उनके जीवन के अनेक अनछुये पहलू देखने को मिले। शिक्षाविद, राजनेता, प्रखर वक्ता, निडर वकील...एक व्यक्ति किसी संस्थान की तरह इतना विराट आकार भी ले सकता है, विश्वास नहीं हुआ। स्वामी ने इस अवसर पर कश्मीर समस्या, राम मंदिर का मुद्दा और अनेक ऐतिहासिक, राजनीतिक विषयों को बिंदास ढं़ग से जनता के सामने रखा, कई नेताओं की खाट खड़ी की। 
सबसे पहले स्वामी ने नेहरूवादी इतिहासविदों की खबर ली, जिन्होंने मुगल बादशाहों की वंशावलियों का तो आद्योपांत गुणगान किया पर विजयनगरम जैसे साम्राज्य जिसकी सीमायें कि बंगाल तक फैली थी, का भारत के इतिहास में कहीं भी वर्णन नहीं है। इसी प्रसंग में उन्होंने राम सेतु  का जिक्र किया जिसे तत्कालीन सोनिया सरकार नष्ट करना चाहती थी, जिसे कि श्री स्वामी ने ही कोर्ट के सहारे उजड़ने से बचाया। स्वामी ने इस देश के हिन्दुओं की मानसिकता को भी इसके लिये दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि हम सब लोग हमेशा ही अर्जुन की तरह संशय में रहे हैं, हमें अपनी प्राथमिकताओं और उन्हें हल करने के लिये सदा तत्पर रहना चाहिये। स्वामी ने कहा कि यदि हमारे पास कृष्ण की परंपरायें नहीं होतीं, निरन्तर संघर्ष करने की क्षमता नहीं होती तो हम भी अनेक पुरानी सभ्यताओं की तरह नष्ट हो गये होते। स्वामी ने इस संदर्भ में राम मंदिर मुद्दे पर अपनी नई याचिका दायर करने की जानकारी दी, उन्होंने कहा कि राम लला आज तक त्रिपाल में पूजे जा रहे हैं, ठीक है, पर पूजा करना मेरा मौलिक अधिकार है और राम मंदिर में भक्तों के लिये न पानी की व्यवस्था है, न जूते रखने का कोई इंतजाम, भक्त अपने जूते हाथ में रख मीलों पैदल चलते हैं। स्वामी ने कोर्ट से, सरकार को सुविधा उपलब्ध कराने के आदेश करने संबंधी याचिका दाखिल की है। इस अवसर पर नेता ने घोषणा की कि अगले साल तक मंदिर का निर्माण हो जायेगा।
कश्मीर का प्रश्न उठाते हुये स्वामी ने  पुनः कश्मीरी पंडितों का जिक्र किया, जो अपने ही देश में शरणार्थी बने हुये हैं। उन्होंने कश्मीर के जनसंख्या अनुपात की रणनीति पर आतंकियों की चाल को खत्म करने की आवश्यकता पर बल दिया। स्वामी ने कहा जहां भी मुसलमान अधिसंख्य होते हैं, वहां समस्यायें शुरू होती हैं, जब से कश्मीर में हिन्दुओं को भगाया गया, कश्मीर अशान्त कर दिया गया है। यदि सेवानिवृत एक करोड़ सैनिकों में से दस लाख सैनिकों को कश्मीर में बसा दिया जाये तो आतंकी ठीक हो जायेंगे, स्वामी के इस प्रस्ताव पर सैनिक बहुल उत्तराखण्डी जनता की ओर से खूब तालियां बजीं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रदेश के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह अस्वस्थ होने के कारण कम बोले पर सटीक बोले। उनका वक्तव्य पत्रकारिता पर केन्द्रित था। उन्होंने पत्रकारों, और विशेष रूप से टीवी चैनलों से रिपोर्टिंग करते समय संयम बरतने की अपील की। मुख्यमंत्री ने पिछले साल घनसाली ;टिहरी गढ़वालद्ध में बादल फटने की घटना का जिक्र किया जिसे कि टीवी चैनलों ने बिना किसी विस्तार में गये इसे अपने स्क्रीनों पर दिखाया जिसके कारण सभी तीर्थयात्रियों और पर्यटकों ने अपनी यात्रायें स्थगित कर अपनी होटल और यात्रायें कैंसिल करवा दी जिसके कारण प्रदेश को करोड़ों के राजस्व का नुकसान हुआ जबकि बादल फटने की घटना का चार धाम यात्रा के रूट से कोई संबंध नहीं था। मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि चैनल्स अपनी खबरों में यह जोड़ देते कि इस घटना का चार धाम रूट से कोई      संबंध नहीं है तो प्रदेश को यह नुकसान नहीं उठाना पड़ता। इसी संदर्भ में उन्होंने टीवी प्रसारणों की गैर जिम्मेवारी भरी रिपोर्टिंग की भी खबर ली। त्रिवेन्द्र रावत ने कहा कि पहाड़ों में जरा सी भी बारिस होती है तो सभी चैनल्स बिना कुछ जाने 2013 के केदार त्रासदी के दृश्य दिखाने लगते हैं, शिवमूर्ति का शीश चूमती उफनती गंगा के दृश्य दिखाने लगते हैं जिससे कि तीर्थयात्रियों के मन में भय पैदा होता है और प्रदेश का पर्यटन और तीर्थयात्रा में बाधा पहुंचती है। मुख्यमंत्री ने नारद को याद करते हुये पत्रकारिता में वैसी ही शुचिता और नारद  जैसी पारदर्शिता की आवश्यकता को  दोहराया। सुब्रह्मण्यम स्वामी का प्रदेश में स्वागत करते हुये मुख्यमंत्री ने स्वामी के संघर्ष की याद करते हुये उनको ‘आपात काल के शिवाजी’ कहकर याद किया।
इस कार्यक्रम का संचालन विश्व संवाद केन्द्र के निदेशक विजय कुमार जी ने नारद के जीवन को पत्रकारिता से जोड़ते हुये भारतीय दर्शन के कई गम्भीर पहलुओं को छुआ। उन्होंने कहा कि नारद जयंती को पत्रकार दिवस के रूप में मनाना संघ का एजेंडा नहीं है बल्कि कलकत्ता में सर्वप्रथम छपने वाले हिन्दी अखबार ने ही अपना प्रवेशांक नारद जयंती पर निकाला और देवर्षि को आद्य पत्रकार कहा। संघ उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहा है। इस अवसर पर संस्था की पत्रिका के विशेषांक ‘हिमालय हुंकार’ और विजय कुमार लिखित देशप्रेमी लेखकों की जीवन गाथा पर ‘भारत जिनके  मन बसा’ पुस्तक  का विमोचन किया गया। कार्यक्रम के अंत में श्री स्वामी को स्मृति चिह्न के रूप में उत्तराखण्ड का लोक वाद्य, रणसिंगा’ भेंट किया गया जिस पर हास्य करते हुये विजय कुमार ने कहा कि यह स्मृति चिह्न स्वामी जी के व्यक्तित्व पर फिट बैठता है...उनके इस विनोद से खचाखच भरा हाॅल, तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। स्वामी सुब्रह्मण्यम ने भी निदेशक की इस बात पर जोरदार ठहाका लगाया।