शब्दों की खेती करती उपासना


खेती बाड़ी की सौंधी महक ने उपासना सेमवाल को साहित्य को महकाकर बुलंदी तक पहुंचाया। कहते हैं कि जब सितारे बुलंदी पर हो तो संघर्ष सफलता की कहानी स्वयं गढ़ लेती है। उत्तराखण्ड के आंचलिक साहित्य और स्थानीय संस्कृति की बात हो, और उपासना सेमवाल का नाम ना हो, बात अपूर्ण मानी जाती है। उपासना आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है। केदारघाटी के ह्यूण गांव की निवासी उपासना सेमवाल घाटी की पहली महिला है जिसे महिलाओं का सर्वोत्कृष्ट ‘तीलू रौतेली सम्मान’ से उत्तराखंड सरकार ने सम्मानित किया है। पहाड़ की परंपरायें, संस्कृति तथा गढ़वाली बोली को अक्षुण्ण रखने की दिशा में बेहतर कार्य करने के लिये उपासना को चार दर्जन से अधिक सम्मानों से नवाजा गया है। भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं पर आधारित जागर ‘बल गोबिन्दा जी’ यू ट्यूब पर धूम मचा चुका है। इसके साथ ही उनकी कई गढ़वाली तथा हिन्दी कविताओं ने भी श्रोताओं पर गहन छाप छोड़ी है। 
उपासना सेमवाल की ‘बेटी बिराणी बणाई किलै’ के तीन लाख से अधिक व्यूवर्स हो चुके हैं। बेटी बिराणी बणाई किलै, हे म्येरा देश का रज्जा मोदी, फेसबुक कु रोग, यु कनु जमानू आई, गौं बिटिन मसाण भी लैफ्ट हो गये हैं, बल, पैली तुमारा म्येरा बीच कति प्रेम प्यार छो आदि गढ़वाली कविताओं को लाखों लोगों ने देखा और दिल से सराहा। वास्तविकता के बेहद करीब और ठेठ पहाड़ी बोली से लबरेज इन कविताओं में सम्पूर्ण पहाड़ बसता है। उपासना की कविताओं में पीठ पर बोझ ढोती महिलाओं का दर्द है, तो कहीं पर लगातार खाली होते पहाड़ की दास्तां, कहीं प्रेमी प्रेमिका की नोंक-झोंक उतारी है, तो कहीं वर्तमान परिदृश्य पर आधारित राजनीति पर कटाक्ष। सभी सृजित कविताओं में उपासना के शब्दों ने मानव मन को बेहद करीब से स्पर्श किया है। उपासना समाज में दहेज उन्मूलन, बाल विधवा विवाह आदि पर निरंतर कार्य कर रही है। गांव-गांव जा कर गरीब व निराश्रित बेटियों की शादी में भी विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से आर्थिक मदद पहुंचाती है। बकौल उपासना अभी तक 21 निर्धन बेटियों की शादी मंे विभिन्न स्रोतों से आर्थिक मदद पहुंचाई है। इसके साथ ही व(, विकलांग तथा निर्बल व्यक्तियों के लिये पेंशन योजना की औपचारिकतायें भी पूर्ण करती हैं। जनपद रूद्रप्रयाग के विश्वनाथ मंदिर के लिये प्रसि( गुप्तकाशी के निकट ह्यूण गांव की निवासी उपासना सेमवाल के पति जर्नलिस्ट हैं। अपनी इस उपलब्धि का श्रेय अपने पति को देने वाली उपासना उत्सुकता वश कहती है, कि उनके पति ने ही उन्हें आज इस मुकाम तक पहुंचाने में सीढ़ियां निर्मित की हैं। सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते हुये आज साहित्य के क्षेत्र में उपासना ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा का लोहा भी मनवाया है। वो कहती हैं, कि जैसे हर सफल पुरूष की सफलता के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है, वैसे ही उनका मानना है, कुछ स्त्रियों की सफलता के पीछे भी पुरूष का हाथ होता है। समाज के कसैले अनुभवों से पार पाकर आज उपासना महिलाओं के लिये नजीर बन गयी है। शादी के नौ वर्षों तक जंगल, मवेशियों के पालन में अपना वक्त जाया करने वाली उपासना का वैवाहिक जीवन भी कम संघर्षमय नहीं रहा है। 
शादी के बाद अमूमन वक्त खेत खलियान तथा गौसेवा के इर्दगिर्द गुजरा है।  जंगल में घास आदि के लिये जाने के बाद अवशेष वक्त में प्रकृति की नैसर्गिक सौन्दर्यता में खोकर उपासना ने कई कवितायें रच डाली। मगर उनके शब्द केवल सफेद पेजों की स्याह  लाइनों में ही अपना अस्तित्व तोड़ने लगी। इसके बाद उनकी पहली कविता फेसबुक का रोग जैसे ही फेसबुक पर आयी, एकदम चमत्कार सा हो गया। कलश साहित्यिक संस्था के प्रणेता ओमप्रकाश सेमवाल ने कविता पर दृष्टिपात किया, और इस लेखिका में उन्हें  अपार संभावनायें दिखी, उन्होने एक मंच पर कविता पाठ करने के लिये आमंत्रित किया। बस फिर क्या था, उपासना ने उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। लगभग साठ से अधिक मंचों पर अपनी कविताओं का पाठ करके सबको अपनी मुरीद बना दिया। विभिन्न संस्थाओं तथा प्रशासन ने उन्हें विभिन्न सम्मानों से अंलंकृत भी किया है। मिटृटी से सने हाथों में पकड़ी कलम ने उन्हें आज जिस मुकाम तक पहुंचाया है, वो  चिरकाल तक सभी लोगों की यादों में समाधिस्त रहेगा।