आपदा नहीं अवसर


चित्र-जय कांडपाल 


कोरोना महामारी से पीड़ित करीब दो-ढ़ाई लाख उत्तराखण्डी सुना है वापिस अपने घरों में लौट आये हैं। उनके प्रति सहानुभूति रखते हुये हमें उनका स्वागत करना चाहिये। ठीक है, उन्हें पहले क्वारनटाईन किया जाये, तब तक त्रिवेन्द्र जी के पास पन्द्रह दिन हैं। वे और कांग्रेसी भी लगातार अपील करते हुये उत्तराखण्डियों को वापिस अपने घरों में लौटने की अपील करते रहे हैं, तो क्यों न दोनों पार्टियां इस आपदा को अवसर में बदलें, पर पहला दायित्व तो सत्तारूढ दल का ही है। कंाग्रेस पार्टी से उम्मीद कम है। कंाग्रेस के पाले हुये दलाल, ठेकेदार, वामपंथी पिल्ले ...सब इस कोरोना काल में भी मोदी को नीचा दिखाने के अपने अखिल भारतीय कार्यक्रम में जुटे हैं, तो त्रिवेन्द्र जी! मोदी की तरह आप भी इस लड़ाई में अकेले हैं। प्रशासनिक अधिकारियों और मोटी तनख्वा उड़ा रहे समस्त अमले को त्रिवेन्द्र जी अपनी कुर्सियों से उठायें और रिवर्स पलायन के नारे को जमीन दें। सभी जिलाधिकारियों, आई.ए.एस. अधिकारियों, ग्राम प्रधानों को फौरन बुलाकर, ठोस कार्यक्रम बनाकर इस मानव संसाधन का उपयोग कर यदि यह सरकार किसी बड़े रचनात्मक अंादोलन की रूपरेखा तैयार कर सके तो त्रिवेन्द्र जी इतिहास बना सकते हैं। बरसात आने वाली है, कोई बड़ा फण्ड तैयार कर वृक्षारोपण का एक वृहद आंदोलन खड़ा किया जा सकता है, लौटे हुये यही लोग उनकी फौज बन सकती है, अखरोट की खेती एक बड़ी संभावना है, खट्टे फलों की बागवानी भी बंदरों से सुरक्षित रहती है, इससे पहाड़ हरा-भरा भी होगा, जलस्तर उठेगा, वैसे तो  वृक्षारोपण दूरगामी रणनीति है, पर इस आंदोलन से एक उत्साह का वातावरण बनेगा। नेता वही है जो हताश वातावरण में भी एक नई ऊर्जा फूंक सके। त्रिवेन्द्र जी ने लाॅकडाउन में जिस प्रशसनिक क्षमता का परिचय दिया है, उससे यह आशा बंधती है कि वे इस मानव संसाधन के समक्ष एक ढ़ाल बनकर खड़े होगें, उन्हें इस हताशा में सहारा देगें, आखिर इन्हीं पहाड़ियों के लिये तो यह प्रदेश बना था...अब तक तो बाहरी क्षेत्रों से आये जुगाड़बाजों ने ही इसे लूटा है, त्रिवेन्द्र जी कमर कसिये और इन कोरोना पीड़ितों की आपदा को अवसर बनाइये।