घर वापसी


देखो दूर देश से परिंदे
अपने घोसलों में आ रहे हैं
हमको जननी जन्मभूमि का
अर्थ समझा रहे हैं।
विकास के दौर में जिन गांवों को
पिछड़ा करार दिया था
देखो वक्त ने करवट बदली
वही गांव वापस आ रहे हैं।
वीरान सुनसान जो गांव
पिछड़ेपन का पर्याय बन गये थे
थके हीरों को आज वही गांव
पानी पिला रहे हैं।


मिट्टी, जड़ जमीन
गांव की परिभाषा थी
हम मिट्टी से जुड़े रहंे
यह पुरखों की अभिलाषा थी।
मिट्टी खिलता बचपन है
मिट्टी बढ़ती जवानी है
मिट्टी पेट का साधन है
मिट्टी जीवन की कहानी है।
दादी-दादा ने बचपन में
ये कहानी सुनाई है
जड़े मिट्टी में जमाकर रखना
इसमें सदियों की गहराई है।
ये घरौंदे, छत, ये आंगन द्वार
इनको कभी न विसराना
ये हमारे बाप-दादाओं की
पसीने की कमाई है।
ये पनघट, नदी-नाले
गांव में पीपल की छांव
इन्हें मत छोड़कर जाना
हमने उमर इनमें बिताई है।
देखों, वीरान घरों की आहें थीं
जो पीढ़ी लौट आई है
गर्दिश के दौर में सबको
अपने आंगन की याद आई है।