जाने कहाँ गए वो दिन -१

[27/05 9:41 pm] नीरज नैथानी: कुछ पुराने सहपाठियों ने आजकल एक नया वाट्सअप ग्रुप बनाकर मुझे भी जोड़ दिया है।हांलाकि इसमें अधिकता उन मित्रों की है जो विद्यार्थी काल में (1979-1985) श्रीनगर में हास्टल में रहते थे।मैं तो बाजार में अपने परिवार के साथ घर में रहता था।पर प्राय: अपने साथियों से गपियाने,चेस खेलने,कैरम खेलने और तमाम तरह की मौज मस्ती करने हास्टल जाता रहता था।साथियों की हास्टल लाइफ बहुत अपीलिंग लगती थी।अलग अलग जगहों के रहने वाले,अलग अलग सब्जेक्ट कम्बिनेशन वाले,अलग अलग क्लास व कोर्स वाले ,अलग अलग बोली भाषा बोलने वाले लड़कों से दोस्ती करना,उनके संग बैठकर बैठकर घंटों बतियाना बहुत अच्छा लगता था।

अब चूंकि अपन के ऊपर कलमकार/लेखक का ठप्पा चस्पा हो ही रखा है तो स्वाभाविक रूप से। अपन को एक बड़ा कैनवास हासिल हो गया,

है,कई तरह के स्केच चित्रित करने के लिए।अंतहीन संभावनाओं से भरा पड़ा है यह ग्रुप।उन समस्त साथियों,दोस्तों,साथ पढ़ने वालों,अपने से जूनिअर,सीनिअर,रिसर्च स्कालर्स आदि के चरित्र,स्वभाव,आदतों,हरकतों,शैतानियों,कारनामों,कीर्तिमानों,उपलब्धियों,सफलताओं,असफलताओं से लेकर वक्त के चलते पंहिये के साथ उनके बूढ़े या वरिष्ठ नागरिक बन जाने का यह रोजनामचा शायद आपको पसंद आए।हां,किस्सों की इन ढेर सारी किश्तों में सीधे किसी का भी नाम लेने से गुरेज करूंगा।साथ ही निश्छल मन से बता दूं कि इस लेख श्रृंखला का उदे्श्य ना तो किसी अपने खास मित्र का महिमामंडन करना है और ना ही किसी गैर का अपमान करना या उसे लज्जित करना।यह सिर्फ एक फंतासी का काल्पनिक संसार है किसी लघु उपन्यास के पन्नों की तरह गतांक से आगे पढ़ते जाइए व अतीत सरोवर में डुबकी लगाकर आनंदित होइए। तो जल्द पेश हो रही है

अगली किश्त

 

[27/05 9:42 pm] नीरज नैथानी: वो कल अचानक दिख गय्य्या।अब्बे तू!तू कहां से आ रा है ब्बे।कैस्सा है,क्या कर रा है।चल कण्डारी टी स्टाल में बैठकर गपियाते हैं।फिर उससे लम्बी चौड़ी बात हुयी,चाय की चुस्कियों के साथ।अब्बे यार क्या दिन थे,नाऊ दोज  गोल्डेन डेज हैव गान।ओह माई गाड दोज स्वीट डेज,विल दे कम बैक अगेन।ओह नो, नेवर।अब्बे वो कहां है आजकल?अरे वो पढ़ाकू होली में भी गांव नहीं जाता था हास्टल के कमरे में कैद रखता था खुद को,अच्छा वो बुक इन्सेक्ट।वो सुना है बाबू है किसी दफतर में।और वो, वो नहीं था लड़ाकू,जरा सी बात पर हाकी डण्डा लेकर लड़ने झगड़ने चल देता था।हां,याद आया वो  वो गुस्सैल,झगड़ालू वो तो  बहुत बड़ा गोर्वमेण्ट काण्ट्रेक्टर बन गया करोड़ों कूट रहा है।और वो साइंस स्टूडेंट सारा दिन लैब में गुजारने वाला,वो वो तो किसी इन्टीट्यूट में सीनिअर साइन्टिस्ट है बल।और वो कंहा होगा मजनू।लम्बे बाल,चौड़ी मोरी का बेलबाटम,बक्कल वाली बेल्ट,काला चश्मा अच्छा वो हीरो,वो तो,,,,,,,बाद में उसने जर्नलिज्म किया,पत्रकार है किसी समाचार समूह में खूब चलती है उसकी।और उसके साथ का दूसरा जोड़ीदार ,लम्बरदार वो ,वो तो यार ,वो तो,वो तो माननीय बन गया,अच्छा माननीय।सिर्फ माननीय नहीं अति सम्मानीय यार।और वो सीधा सा कम बोलने वाला। तू उसकी बात कर रहा है वह तो प्रोफेसर हो गया।एक वो पढ़ती थी उधर से आती थी अक्सर।अरे अभी परसों ही मिली बाजार में।समय के साथ उमर ढलने लगी है हम सभी की,उसकी भी।लेकिन खुबसूरती की ठसक बाकी है अभी तक।और वो जिसके पीछे तेरा रूम पार्टनर दीवाना था,वो ,उसकी शादी किसी एन आर आई से हो गयी थी।अच्छा वो कहां होगी वो बात बात पर जुल्फें झटकने वाली,अरे वो ,वो अब सभ्रान्त परिवार की सम्मानित कुलवधू है।अच्छा वो बड़ी तेज तर्रार सी वो कहां ब्याही किसकी फूटी किस्मत?अबे वो अब बहुत बड़ी हस्ती है,कुछ ऐसा वैसा ना बोल देना किसी के सामने।अबे एक दिन वो टकरा गयी अचानक,पूछने लगी कैसे हैं आप कहना तो चाह रहा था कि किसी लायक नहीं रखा आपने,पर जज्बात फिर दबा गया पहले की तरह बड़ी शालीनता से उत्तर दिया सपरिवार ठीक हूं आप सुनाइये।वो बोली जी मैं भी ठीक हूं।अबे जब तक वो मुझसे बात करती रही चूमड़ उसका हस्बैण्ड स्कैनर की तरह मेरा चेहरा सर्वेलाइन्स में रखे रहा।घर जाकर अच्छी खासी डांट खायी होगी।साला शक्की किस्म का लग रहा था।अबे बालबच्चेदार हो गया पर फण्टूस बाजी अभी भी नहीं छोड़ी तूने।चल छोड़ ये बता ,वो हकला क्या कर रहा है? अबे हकले के बच्चे उसके ठाट बाट देखकर तू हकलाने लगेगा।बहुत बड़ी शानदार कोठी,महंगी कार,आलीशान लाइफ स्टाइल।अच्छा वो तो साधारण से घर से ही था फिर अचानक ये पैसौं की अंधाधुंध बारिश।यही तो कोई नहीं जानता कि आखिर वो काम क्या करता है?मे बी व्हाइट कलर जाब।भगवान जाने।यार कई बार बहुत सारे दोस्तों ने बिना बात के पेपर वाकाऊट किया।प्रोफेसर से भिड़ने गए।वी सी के खिलाफ नारे लगाए।कल्चर नाइट में हुड़दंग मचाया,इलैक्शन में ना जाने कितने दांव पेंच चलाए खा-बा चलाया,पौड़ी टिहरी,चमोली चलाया,देशी पहाड़ी चलाया,लोकल बाहरी चलाया,दादागिरी चलायी,हास्टल वर्सेज कैम्पस चलाया,आर्ट्स वर्सेज साइन्स चलाया,कामर्स चलाया,।अच्छा छोड़ यार ये सब।ये बता वो,,,अबे टाइम हो गया मेरी गाड़ी का सुन ये मेरा कार्ड रख काल करना।बाकी बातें फोन पे ।और वो लप्पक लिया अपनी गाड़ी की ओर।
[27/05 9:42 pm] नीरज नैथानी: गतांक से आगे-

 

रात को फोन आया।मैंने पूछा कौन बोल रहा है?अबे कौन के बच्चे नबंर सेफ नहीं किया मेरा?कौन साहब बोल रहे हैं कुछ पता तो चले।अबे अकल के टट्टू मैं बोल रहा हूं दिन में तो कार्ड दिया था।नंबर सेफ नहीं किया , कोई बात नहीं पर कम से कम आवाज तो पहचान ऊत के घस्से।मैं बोल रहा हूं मैं।अब्बे,सारी,सारी सारी यार।नींद के झोंके में था।अच्छा  तू घर पंहुच गया।हां।इत्ती जल्दी !अबे जितना टाइम लगा श्रीनगर से ऋषिकेश आने में लगा बाकी तो,ऋषिकेश से पन्द्रह मिनट में जोली ग्राण्ट।फिर वंहा से बाई एअर पलक झपकते दिल्ली।फिर एअरपोर्ट से ओला लेकर फ्लैट‌ में।नहाया धोया खाना खाया फिर सोचा अब तुझसे बात करूं।जबसे दिन में तुझसे मिलकर बतयाया हूं यार दिमाग में हास्टल ही हास्टल घूम रहा है।एक पिक्चर सी लगातार चल रही है फ्लैशबैक में।नोस्टेलजिया का हैंगोवर सर चढ़ के बोल रहा है।बता यार और दोस्तों के बारे में।सब के बारे में बता।कौन कौन कहां कहां हैं?तू तो यार सेंटर प्लेस में है।हम तो प्राइवेट नौकरी वाले ठहरे।बेशक सेलरी ,फैसेलिटी सब फर्स्ट क्लास है लेकिन शिकंजी नीबूं की तरह निचोड़ लेते हैं साले।आज बंगलौर,कल चेन्नाई,परसों कोलकोता,कभी सिंगापुर,कभी कुलाम्पुर ,कभी बैंकाक दौड़ाते रहते हैं,दो घड़ी को भी चैन नहीं है।थ्थू साले, ऐसी शान शौकत व धन दौलत का क्या करना। तुम ठीक हो यार पहाड़ों में।असली जिंदगी जी रहे हो।हम यंहा मशीन बने बैठे हैं मशीन,पैसा कमाने की मशीन,काम करने की मशीन।तो , छोड़कर आ जा,यंहा आकर अपना कोई काम स्टार्ट कर।टैलेण्ट तो तेरे अंदर है ही।यहां भी तू ठीकठाक कमा लेगा।

क्यों पड़ा है अंधाधुंध बटोरने  में।कम खा गम खा।अब तो मकड़जाल में फंस गए यार।निकलना बहुत मुश्किल है।छोड़ यार मूड खराब मत कर।दोस्तों के बारे में बात कर,कालेज जमाने की बात कर, लड़कियों की बात कर,गुलछर्रे उड़ाने की बात कर,उन मौज मस्ती व फक्कड़ी के दिनों की बात कर।अच्छा यार, ये बता वो कहां होगी वो रईस बाप की खुबसूरत हिरोइन।वो,जिसे देखकर तू गुनगुनाता था-चांदी की दीवार ना तोड़ी,प्यार भरा दिल तोड़ दिया।अबे धीरे बोल,बगल के कमरे में बच्चे जगे हैं पढ़ाई कर रहे हैं,वहीं उनकी मम्मी लैपटाप में बैठी अपना आफिस का काम कर रही है,सुन लिया तो फिर बस्स ,दूसरे किस्म का हैंगोवर चढ़ेगा सिर में।अबे वो तो बिचारी कब की स्वर्ग सिधार गयी।क्या ?अब्बे यार कब कैसे क्या हुआ उसे ?बगल के कमरे से श्रीमती की आवाज आयी किसे क्या हुआ?अरे कुछ नहीं स्टूडेण्ट लाइफ के लंगोटिया यार से बात कर रहा हूं,हमारा बचपन का एक साथी गुजर गया मैंने बड़ी सफाई से दोस्त का जेण्डर बदलते हुए अपना बचाव किया।फिर एतिहात बरतते हुए पूछा,यार वो तो बहुत पैसे वाले थे।बढ़िया इलाज नहीं करवा पाए।यार,कैंसर का अभी मुकम्मल इलाज कंहा ढूंढ पाए हैं हमारे वैज्ञानिक।ओ हो यार ये तो बड़ी बुरी खबर सुनायी तुमने।सच में मन भारी सा हो गया।अबे अब तो उसके घरवाले भी उस सदमें से उबर गए।समय अच्छे अच्छे घाव भर देता है।साथ ही एक सीख भी मिली कि पैसा ही सब कुछ नहीं होता।अबे तूने उसके बारे में भी सुना वो गज़ल गायिका नूर बानो ऊर्फ ,,,,,,।अब इसे भी कुछ हुआ क्या ? वो तो बड़ी थिएटर आर्टिस्ट बनी,फिर कई टी वी सीरिअल में भी आयी।आजकल न्यू जर्सी किसी अमेरिकन फिल्म डिवीजन में काम कर रही है।सुना है कि कुछ समय बालीवुऊड में भी काम किया।चलो हमने जिस जिस को नखरेबाज बनाया वो जिंदगी की दौड़ में कहीं तो अब्बल आया।अबे उसके बारे में बताता हूं वो नहीं थी लम्बी सी।अच्छा उसके बारे में तो अखबार में भी छपा था वो नेशनल के बाद एशियाड खेलों के लिए चुनी गयी।

....... जारी .....